पोषण सुरक्षा में मजबूती | संपादकीय / April 13, 2022 | | | | |
सरकार ने सन 2024 तक पूरे देश में चरणबद्ध ढंग से पोषणयुक्त चावल की आपूर्ति सुनिश्चित करने का निर्णय लिया है ताकि कुपोषण की समस्या को दूर किया जा सके। हालांकि आबादी के एक बड़े हिस्से को भारी भरकम सब्सिडी और कुछ मामलों में तो नि:शुल्क अनाज वितरण के कारण बड़े पैमाने पर भूख और भूख के कारण होने वाली मौतों के मामलों का प्रबंधन करने में काफी मदद मिली है लेकिन अल्पपोषण और असंतुलित पोषण अभी भी न केवल बरकरार है बल्कि इसमें इजाफा देखने को मिल रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के निष्कर्षों के मुताबिक 15 से 49 वर्ष आयु वर्ग में रक्त की कमी का सामना कर रही महिलाओं की तादाद 2015-16 के 53 फीसदी से बढ़कर 2019-20 में 57 फीसदी हो गई। इससे भी बुरी बात यह कि लौह तथा अन्य जरूरी पोषक तत्त्वों की कमी से जूझ रहे पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की तादाद बढ़कर 67.1 फीसदी पहुंच गई, यानी इस अवधि में उनमें सालाना लगभग 8 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हुई। पोषण संंबंधी ऐसी विसंगति बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है जिसका नतीजा ठिगनेपन और वजन की कमी के रूप में सामने आता है। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि 2021 के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत को 116 देशों में 101वां स्थान मिला और वह पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों से भी पीछे रहा।
आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति की पिछली बैठक में मिली मंजूरी के मुताबिक लौह युक्त चावल की आपूर्ति की योजना से ठिगनेपन और कम वजन की समस्या में दो फीसदी तथा महिलाओं और बच्चों की रक्त अल्पता में सालाना 9 फीसदी की कमी आने की संभावना है। यह चावल लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस), एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम, स्कूली बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन योजना (जिसे अब पीएम-पोषण का नाम दे दिया गया है) तथा अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से वितरित किया जाना है। इस योजना पर लगभग 2,700 करोड़ रुपये वार्षिक व्यय होने का अनुमान है जो कुल खाद्य सब्सिडी के करीब दो फीसदी के बराबर होगा। इसे केंद्र द्वारा वहन किए जाने का प्रस्ताव है। अधिकारियों का दावा है कि इससे स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में तकरीबन 50,000 करोड़ रुपये की बचत होगी। फिलहाल 2019 से चल रही एक प्रायोगिक परियोजना के तहत 11 राज्यों के एक-एक जिले में पोषणयुक्त चावल की आपूर्ति टीपीडीएस के माध्यम से की जा रही है। हालांकि पोषण विशेषज्ञ इस बात को लेकर बहुत आशान्वित नहीं हैं कि यह चावल रक्त अल्पता और अल्पपोषण को समाप्त करने के लक्ष्य को पूरा करने में कुछ खास मदद कर पाएगा। उनकी आशंका मानव शरीर में लौह की खपत से जुड़े मसलों को लेकर है। यह अहम पोषक तत्त्व वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है लेकिन रक्त में इसकी खपत से हीमोग्लोबिन का निर्माण कई अन्य खनिजों और विटामिनों की उपलब्धता पर निर्भर है। मौजूदा सरकारी पोषण आधारित कार्यक्रमों के साथ दिक्कत यह है कि वे प्राथमिक तौर पर समग्र और पोषक भोजन मुहैया कराने के बजाय पेट भरने पर केंद्रित हैं।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के पोषणविदों तथा हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पोषण संस्थान के पोषणविदों का मानना है कि भोजन में विविधता के जरिये ही पोषक तत्त्वों की जरूरत पूरी की जा सकती है। यह तभी सुनिश्चित की जा सकती है जब भोजन में अपेक्षाकृत अधिक पोषक खाद्य पदार्थ मसलन बाजरा, ज्वार और रागी तथा दाल, अंडे, दूधे, सब्जियां और फल आदि शामिल किए जाएं।
अहम बात है कि देश का कृषि शोध नेटवर्क पारंपरिक और आधुनिक तकनीक की मदद से फसलों के जीन में बदलाव करके पोषण समृद्ध और जैविक रूप से पोषक किस्में तैयार कर रहा है। इन पोषण युक्त अनाजों को खाद्य कार्यक्रमों में शामिल करना कुपोषण से निपटने का व्यावहारिक और बेहतर तरीका है।
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