पिछले दस वर्षों के दौरान नए ब्रांड को लॉन्च करने के मोर्चे पर भारतीय दवा कंपनियां काफी उर्वर रही हैं। हाल के वर्षों में नए उत्पादों का वृद्धि में योगदान घटने के बावजूद नए ब्रांडों को उतारने की रफ्तार जारी है। उद्योग के आंतरिक सूत्रों का कहना है कि औषधि उद्योग के लिए नए ब्रांडों को लॉन्च करना काफी महत्त्वपूर्ण है। इससे मात्रात्मक बिक्री में वृद्धि और बाजार हिस्सेदारी सुनिश्चित होती है। सिस्टेमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल रिसर्च के आंकड़ों से पता चलता है कि शीर्ष दवा कंपनियों ने वित्त वर्ष 2010 से वित्त वर्ष 2020 के बीच सालाना 284 से 457 ब्रांडों को लॉन्च किया। औसतन यह आंकड़ा 300 ब्रांड का होता है जिसमें ब्रांड विस्तार भी शामिल है। इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा, 'ब्रांड लॉन्च और नई दवाओं को बाजार में उतारना औषधि उद्योग के लिए जीवन रेखा है। इसलिए एक ओर काफी मॉलिक्यूल पेटेंट के लिए जाते हैं तो दूसरी ओर तमाम नए मॉलिक्यूल के विकास पर काम चल रहा होता है। कंपनियां लाइसेंस समझौते के जरिये ऑफ-पेटेंट मालिक्यूल और पेटेंटयुक्त दवाओं को बाजार में उतारने के लिए काफी तत्परता दिखाती हैं।' जैन ने कहा कि दवा कंपनियां स्त्रीरोग, पेट की बीमारी आदि में से किसी खास श्रेणी में पूरी उत्पाद शृंखला रखने की कोशिश करती हैं। बड़ी दवा कंपनियों के पास 12 से 15 उपचार प्रभाग होते हैं और यदि उनमें से प्रत्येक कुछ दवाओं को लॉन्च करता है तो कंपनी द्वारा साल के दौरान बाजार में उतारे गए ब्रांडों की कुल संख्या 30 से 50 तक पहुंच जाती है। मुंबई की एक मझोले आकार की दवा कंपनी के विपणन प्रमुख ने कहा कि ब्रांड लॉन्च बाजार में खुद को प्रसंगिक बनाए रखने और डॉक्टरों को याद दिलाने के लिए आवश्यक है। वैश्विक महामारी में पिछले दो वर्षों 2020 और 2021 के दौरान बाजार में नई दवाओं को उतारने की रफ्तार थोड़ी सुस्त पड़ गई थी लेकिन कंपनियों ने ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस, डॉक्टरों से संपर्क कार्यक्रम आदि के जरिये ब्रांड लॉन्च को जारी रखा। बाजार अनुसंधान फर्म एआईओसीडी अवाक्स की अध्यक्ष शीतल सापले ने कहा कि पिछले दो वर्षों के दौरान ब्रांड लॉन्च मुख्य तौर पर उन्हीं श्रेणियों में हुआ जो आकर्षक दिख रही थीं। सापले ने कहा कि नई दवाओं को बाजार में उतारने के मोर्चे पर अन्य श्रेणियों की रफ्तार सुस्त रही। उन्होंने कहा, 'एजिथ्रोमाइसिन, आइवरमैक्टिन, रेमडेसिविर, एनोक्सापेरिन, फैविपिराविर आदि मॉलिक्यूल में अधिक ब्रांड लॉन्च हुए क्योंकि कोविड रोगियों के उपचार के लिए इन दवाओं की काफी मांग दिख रही थी।' मधुमेहरोधी दवा डेपाग्लिफ्लोजिन जैसी ऑफ-पेटेंट मॉलिक्यूल में अपने ब्रांड उतारने के लिए भी दवाओं कंपनियों में होड़ दिखी। सिस्टमेटिक्स के विश्लेषकों ने कहा कि पिछले पांच वर्षों के दौरान भारत पर केंद्रित कंपनियों ने निफ्टी पर जबरदस्त प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा, 'जिन कंपनियों भारतीय कारोबार से एबिटा हिस्सेदारी अधिक है उनका पूंजी पर रिटर्न निर्यात केंद्रित कंपनियों के मुकाबले बेहतर रहा। भारत केंद्रित कंपनियों ने वित्त वर्ष 2015 से 2021 के दौरान भारतीय औषधि बाजार के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया।'
