खपत असमानता घटकर 4 दशक के निचले स्तर पर : आईएमएफ पत्र | इंदिवजल धस्माना / नई दिल्ली April 07, 2022 | | | | |
कोविड-19 से प्रभावित 2020-21 में भारत में खपत में असमानता घटकर पिछले 40 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है। इससे आश्चर्य हो सकता है, लेकिन प्राथमिक रूप से 80 करोड़ लोगों को मुफ्त खाद्यान्न वितरण व कुछ अन्य वजहों से ऐसा हुआ है। हाल में प्रकाशित आईएमएफ के कार्य पत्र से यह जानकारी मिलती है।
'पैनडेमिक, पॉवर्टी ऐंड इनक्वैलिटी : एविडेंस फ्रॉम इंडिया' नाम के पत्र से पता चलता है कि अगर मुफ्त खाद्यान्न वितरण को हटा दें तो 2020-21 में उसके पहले के साल की तुलना में खपत में असमानता बढ़ी है।
इसके अलावा 2019-20 में कैजुअल और रोज मजदूरी करने वाले कामगारों के वेतन में असमानता 2011-12 की तुलना में अभूतपूर्व रूप से कम हुई है, लेकिन यह पहले के साल 2018-19 की तुलना में बढ़ी है।
असमानता का मापन गिनी कोएफिशिएंट से होता है। गिनी कोएफिशिएंट 100 होने का मतलब पूरी तरह से असमानता है, जबकि 100 होने का मतलब पूरी तरह समानता है।
पत्र में कहा गया है कि 2020-21 के दौरान खपत में गिनी कोएफिशिएंट घटकर 29.4 रहा है, जो 1993-94 के न्यूनतम स्तर 28.4 के सबसे निचले स्तर के करीब है। इस मानक पर 2019-20 में स्कोर 30.4 रहा है, जो इसके पहले के साल के 30.6 से कम है।
पत्र में कहा गया है, 'गरीबी में खाद्य सब्सिडी के समायोजन का असर अधिक है। वास्तविक असमानता, जिसे गिनी कोएफिशिएंट में मापा जाता है, पिछले 40 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है।'
बहरहाल अगर सब्सिडी वाले खाद्यान्न के हस्तांतरण को शामिल न किया जाए तो कोएफिशिएंट 2020-21 के दौरान मामूली बढ़कर 31.5 हुआ है, जो 2019-20 में 31.4 था।
इन आंकड़ों की गणना 2011-12 के बाद वास्तविक निजी अंतिम खपत व्यय में वृद्धि के आधार पर की गई है। कार्य पत्र में गणना के लिए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के उपभोक्ता व्यय सर्वे का इस्तेमाल किया गया है। लेकिन इस तरह का अंतिम सर्वे 2011-12 में आया है। सरकार ने 2017-18 का हाल का सर्वे नहीं कराया है।
आईएमएफ ने स्पष्ट किया है कि इस पत्र में दिए गए विचार फंड मेंं भारत के कार्यकारी निदेशक सुरजीत भल्ला, पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद विरमानी, नीति शोधकर्ता किरण भसीन के हैं, जिन्होंने रिपोर्ट लिखी है। यह जरूरी नहीं है कि बहुपक्षीय एजेंसी के विचार इस रिपोर्ट से मिलते हों।
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