देश में उपभोक्ताओं की धारणा में लगातार सुधार मगर धीमी रफ्तार | श्रम-रोजगार | | महेश व्यास / April 07, 2022 | | | | |
देश में उपभोक्ताओं की धारणा में लगातार सुधार हो रहा है मगर इसकी गति धीमी है। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के कारण अप्रैल, मई और जून में नीचे फिसलने के बाद सूचकांक में लगातार सुधार हो रहा है, केवल दिसंबर एक अपवाद रहा है। जून 2021 और मार्च 2022 के बीच उपभोक्ता धारणा सूचकांक संचयी आधार पर 36.8 प्रतिशत उछला है। मई 2020 में फिसलने के बाद से इसमें 56.6 प्रतिशत की शानदार तेजी आई है।
मगर परेशान करने वाली बात है कि सुधार की गति न केवल धीमी रही है बल्कि इसमें कमी भी आ रही है। वर्ष 2020 में फरवरी से मई के बीच उपभोक्ता धारणा सूचकांक में 60 प्रतिशत से अधिक नाटकीय गिरावट दर्ज हुई थी। मई 2020 के बाद से इसमें 56.6 प्रतिशत तेजी जरूर आई है लेकिन यह तब भी कोविड महामारी से पहले फरवरी की तुलना में 38 प्रतिशत कम है। फरवरी और मई 2020 के बीच उपभोक्ता धारणा में दर्ज 60 प्रतिशत गिरावट औसतन प्रति महीने 26.6 प्रतिशत होती है। इसकी तुलना में सुधार की गति काफी धीमी रही है। कोविड-19 महामारी की पहली लहर के मध्य और दूसरी लहर की शुरुआत से ठीक पहले की बीच की अवधि (मई 2020 से मार्च 2021) से उपभोक्ता धारणा सूचकांक प्रत्येक महीने केवल 3.1 प्रतिशत दर से बढ़ा है। यह धीमी गति भी दूसरी लहर की वजह से बरकरार नहीं रह पाई।
कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान प्रति महीने उपभोक्ता धारणा सूचकांक में 5.5 प्रतिशत दर से गिरावट दर्ज हुई थी। यह गिरावट पहली लहर के दौरान आई गिरावट की तरह तेज तो नहीं थी मगर यह सुधार पर भारी पड़ती है। इसका नतीजा यह हुआ कि तीन महीने पहले की अवधि की तुलना में दूसरी लहर के तीन महीनों में उपभोक्ता धारणा में अधिक गिरावट आई। वास्तव में सितंबर 2020 से मार्च 2021 की छह महीनों की अवधि में जितनी बढ़त दर्ज हुई थी उस पर पानी फिर गया। कहानी यहीं खत्म नहीं हुई और अब उपभोक्ता धारणा में सुधार कोविड महामारी की दूसरी लहर के बाद धीमी हो गई है। पहली लहर के बाद प्रत्येक महीने धारणा में सुधार की दर 3.1 प्रतिशत थी मगर दूसरी लहर के बाद सुधार की दर कम होकर प्रति महीने 2.6 प्रतिशत रह गई।
अगर चालू वित्त वर्ष की समाप्ति तक यानी मार्च 2023 तक उपभोक्ता धारणा सूचकांक में तेजी इसी दर से बनी रही तब भी सूचकांक फरवरी 2020 की तुलना में करीब 15 प्रतिशत कम रहेगा। भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए यह अच्छी बात नहीं कही जा सकती। उपभोक्ता धारणा कमजोर रहने से उनके द्वारा होने वाले व्यय पर असर होगा जिससे निजी उपभोग व्यय प्रभावित होगा। निजी उपभोग व्यय की भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में करीब 55 प्रतिशत हिस्सेदारी होती है।
हाल के महीनों में उपभोक्ता धारणा सूचकांक में बदलाव की दर काफी बेहतर रही है। मार्च 2022 में उपभोक्ता धारणा सूचकांक में 3.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। जनवरी और फरवरी में सूचकांक में क्रमश: 5 प्रतिशत और 4 प्रतिशत तेजी आई थी। पिछले तीन महीनों में प्रत्येक महीने औसत बढ़ोतरी 4.23 प्रतिशत रही है। अगर यह मान लें कि उपभोक्ता धारणा सूचकांक मार्च 2023 तक लगातार इसी दर से बढ़ता रहेगा तो अंतत: यह कोविड-19 पूर्व की अवधि को पार कर जाएगा।
सुधार की प्रक्रिया तभी सफल होगी जब इसकी राह में अचानक कोई आर्थिक बाधा नहीं आएगी। उपभोक्ता धारणा देश व्यापी बंद (लॉकडाउन) आदि बड़े झटकों से काफी प्रभावित होता है। अखिल भारतीय स्तर पर धारणा छोटे-मोटे झटके संभाल लेती है। चुनावी नतीजों या राजनीतिक उठापटक के दौरान उपभोक्ता सूचकांक अखिल भारतीय स्तर पर कमोबश स्थिर रहा है। ऐसा नहीं लगता कि चुनावी नतीजे निकट भविष्य या भविष्य को लेकर उपभोक्ताओं की सोच बदल पाएंगे।
कोविड महामारी की अवधि के दौरान कृषि क्षेत्र का अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन उपभोक्ता धारणा के ग्रामीण सूचकांक पर साफ दिख रहा है। मार्च 2022 में उपभोक्ता धारणा सूचकांक फरवरी 2020 की तुलना में 38 प्रतिशत कम था। शहरी क्षेत्रों में उपभोक्ता सूचकांक में 44 प्रतिशत गिरावट दर्ज हुई थी मगर ग्रामीण क्षेत्रों में सूचकांक में 35 प्रतिशत गिरावट आई थी। कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन 2022-23 में भी अच्छा रहा तो साल के अंत तक उपभोक्ता सूचकांक को संभलने में मदद मिलेगी। वर्ष 2020-21 में दर्ज आर्थिक सुधार के साथ महंगाई और बेरोजगारी दरों में भी इजाफा हुआ है। मगर इससे इस अवधि के दौरान उपभोक्ता सूचकांक में वृद्धि पर असर नहीं हुआ है। ऊंची महंगाई दर का जोखिम कायम है और बेरोजगारी दर में किसी तरह की कमी आने की भी गुंजाइश नहीं है मगर 2022-23 में उपभोक्ता धारणा सूचकांक पर इन बातों का असर उतना अधिक नहीं रहेगा।
पुराने आंकड़े बताते हैं कि आर्थिक झटकों का जोखिम कायम है और कृषि क्षेत्र में सतत वृद्धि से मदद भी मिलती है लेकिन उपभोक्ता सूचकांक में वृद्धि के स्पष्ट कारण भी नहीं दिख रहे हैं। हाल में कोई वित्तीय प्रोत्साहन भी नहीं आया है जिससे परिवारों की धारणा मजबूत होती। लिहाजा धारणा में सुधार स्वत: ही आगे बढ़ता जा रहा है। अगर कोई बड़ी बाधा सामने नहीं आई तो मार्च 2023 तक सुधार कोविड महामारी से पूर्व के स्तर पर पहुंच जाएगा।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
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