निर्यात का अवसर | संपादकीय / April 06, 2022 | | | | |
उद्योग एवं वाणिज्य तथा खाद्य मामलों के मंत्री पीयूष गोयल ने आशा जतायी है कि वित्त वर्ष 2023 में भारत का गेहूं निर्यात नयी ऊंचाइयों पर पहुंचेगा। उनकी बात तथ्यों पर आधारित है। हालांकि करीब एक करोड़ टन निर्यात का उनका अनुमान अवश्य थोड़ा कम नजर आ रहा है। आपूर्ति की कमी को देखते हुए तथा रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतों में उछाल के चलते वास्तविक निर्यात उक्त अनुमान से काफी अधिक रह सकता है। हकीकत में 2021-22 में गेहूं का निर्यात 75 लाख टन का स्तर पार कर चुका है और कारोबारी हलकों के अलावा कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण का मानना है कि 2022-23 में यह दोगुने से अधिक हो सकता है।
वैश्विक बाजार में कुल गेहूं निर्यात में रूस और यूक्रेन की हिस्सेदारी करीब 25 से 30 फीसदी है। उनकी अनुपस्थिति की भरपाई भारत काफी हद तक कर सकता है क्योंकि यह इकलौता देश है जिसके पास इतनी बड़ी मात्रा में अधिशेष गेहूं भंडार है। बल्कि अफ्रीका, पश्चिम एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के गेहूं आयात करने वाले अधिकांश देश जो गेहूं खरीदने के लिए काला सागर क्षेत्र पर निर्भर थे, उन्होंने अपनी जरूरत के लिए भारत की बाट जोहनी शुरू कर दी है। आसान उपलब्धता के अलावा भारत को इन देशों को गेहूं की आपूर्ति करने का भौगोलिक लाभ भी हासिल है। कुछ राज्य मसलन मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात आदि पहले ही निर्यात बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। रेलवे ने उन्हें आश्वस्त किया है कि वह कांडला तथा अन्य बंदरगाहों तक प्राथमिकता के साथ गेहूं पहुंचाने में पूरी मदद करेगा।
भारत के लिए खाद्यान्न निर्यात अवसर आधारित पहल के बजाय एक आवश्यकता है। देश का खाद्यान्न उत्पादन निरंतर खपत पर भारी है और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत निरंतर सब्सिडी पर अनाज आवंटित करने तथा महामारी के बाद बनी कुछ कल्याण योजनाओं के तहत गरीब तबके को नि:शुल्क अनाज वितरण के बावजूद अनाज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। सरकार के अनाज गोदाम पहले ही भरे हुए हैं और अब एक बार फिर रिकॉर्ड 10.9 करोड़ टन गेहूं के उत्पादन के साथ फसल कटाई का सिलसिला शुरू है। यही कारण है कि गेहूं के गोदाम, जिनमें फिलहाल दो करोड़ टन गेहूं का भंडार है, उनके मई में मौजूदा रबी सत्र समाप्त होते-होते बढ़कर छह करोड़ टन हो जाने का अनुमान है।
इसके अलावा अन्य वजह भी हैं जिनके चलते भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह मौजूदा अवसरों का लाभ लेकर नियमित और विश्वसनीय अन्न निर्यातक बन जाए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें घरेलू बाजार से काफी अधिक हैं। ऐसे में निर्यातक किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य की तुलना में ऊंचे दाम पर गेहूं खरीद रहे हैं, फिर भी उन्हें फायदा हो रहा है। इसके अलावा घरेलू गेहूं उत्पादन में भी तब तक कमी आने की संभावना नहीं है जब तक सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद जारी रखती है। इस नीति ने गेहूं और चावल को वाणिज्यिक फसल बना दिया है जिस पर उत्पादकों को तयशुदा कीमत मिलती है। निजी कारोबारी जो सरकारी खरीद की प्रक्रिया के कारण खाद्यान्न बाजार से दूर थे उन्हें भी निर्यात के लिए समर्थन मूल्य से ऊंची दर पर खरीदने की इजाजत देकर वापस बाजार से जोड़ा जा सकता है। इससे सरकारी खाद्यान्न भंडार को कम करके प्रबंधन लायक बनाया जा सकेगा तथा लगातार बढ़ती खाद्य सब्सिडी पर लगाम लगेगी। निर्यात के अवसर को अगर ढिलाई करके गंवाया गया तो हम अधिशेष अनाज के लिए जरूरी निर्यात केंद्र बनने का अवसर गंवा देंगे।
|