मार्च में विनिर्माण गतिविधि में आई नरमी | निकुंज ओहरी / नई दिल्ली April 04, 2022 | | | | |
मार्च महीने में देश की विनिर्माण गतिविधि में नरमी आई। एसऐंडपी ग्लोबल की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक मार्च महीने में कंपनियों ने नए ऑर्डर और उत्पादन में कम विस्तार होने की बात कही। साथ ही नए निर्यात आर्डरों में भी कमी आई है।
मार्च में एसऐंडपी ग्लोबल इंडिया मैन्यूफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) 54.0 दर्ज किया गया जबकि फरवरी में यह 54.9 रहा था। इससे सितंबर 2021 के बाद मार्च महीने में उत्पादन और बिक्री में सबसे धीमी गति से वृद्घि के संकेत मिलते हैं। पीएमआई में 50 से ऊपर पाठ्यांक विस्तार और नीचे संकुचन को दर्शाता है।
एसऐंडपी ग्लोबल में अर्थशास्त्र के एसोसिएट निदेशक पॉलियाना डी लीमा ने कहा, 'यह नरमी अपने साथ तीव्र मुद्रास्फीति जनित दबाव लेकर आया है भले ही इनपुट लागतों में वृद्घि की दर 2021 के अंत में नजर आई दर से कम पर बनी हुई।'
रसायन, ऊर्जा, वस्त्र, खाद्य सामग्री और धातु की लागतें मार्च में फरवरी के मुकाबले अधिक होने से वित्त वर्ष 2021-22 के अंत में दूसरी बार इनपुट लागतों में इजाफा हुआ।
सर्वेक्षण में कहा गया, 'मुद्रास्फीति की समग्र दर में तेजी आई और इसने लंबी अवधि के औसत को पीछे छोड़ दिया लेकिन छह महीने में यह दूसरी सबसे धीमी रफ्तार थी।'
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा मापी गई देश की खुदरा मुद्रास्फीति फरवरी में 6.04 फीसदी पहुंच गई थी जो आठ महीने का सर्वोच्च स्तर था और आगामी महीनों में इसके बढ़े रहने के आसार है। इसकी वजह है कि रूस और यूक्रेन के बीच चालू युद्घ से उपजे भूराजनीतिक तनावों की पृष्ठभूमि में तेल और जिंस की ऊंची कीमतों का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि वस्तु निर्माताओं द्वारा अतिरिक्त लागत बोझ का कुछ हिस्सा अपने ग्राहकों के ऊपर डाले जाने से मार्च में आउटपुट कीमतों में बढ़ोतरी हुई।
लीमा ने कहा कि फिलहाल कीमत वृद्घि का सामना करने के लिए मांग पर्याप्त रूप से मजबूत है लेकिन यदि मुद्रास्फीति में तेजी जारी रहती है तो बिक्री में एकमुश्त संकुचन भले नहीं आए लेकिन बहुत अधिक नरमी नजर आ सकती है।
उन्होंने कहा, 'कंपनियां अपने स्तर पर कीमत दबावों को लेकर काफी चिंतित हैं जो कारोबारी विश्वास को दो वर्ष के निचले स्तर पर लाने में एक अहम कारक रहा।'
मार्च के आंकड़ों से भारतीय विनिर्माताओं में वृद्घि की संभावनाओं को लेकर कमजोर आशावाद के संकेत मिलते हैं जबकि धारणा का समग्र स्तर फिसलकर दो वर्ष के निचले स्तर पर पहुंच गया है। सर्वेक्षण में कहा गया कि ऐसा मुद्रास्फीति संबंधी चिंताओं और आर्थिक अनिश्चितता के कारण हुआ है।
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