अमेरिकी प्रतिफल में बदलाव चिंताजनक नहीं | निकिता वशिष्ठ / नई दिल्ली April 01, 2022 | | | | |
वैश्विक इक्विटी बाजार अमेरिका में प्रतिफल की राह में आ रहे दबाव के प्रति मजबूती दिखा रहे हैं। यह ऐसा दौर है जब दीर्घावधि बॉन्डों पर प्रतिफल अल्पावधि के मुकाबले गिरा है। पिछले सप्ताह के दौरान डाउ जोंस और एसऐंडपी 500 में 1.5 प्रतिशत और 3 प्रतिशत से ज्यादा की तेजी आई, जबकि घरेलू बीएसई सेंसेक्स और निफ्टी-50 में करीब 1-1 प्रतिशत की मजबूती दर्ज की गई।
दो वर्षीय बॉन्ड 10 वर्षीय बॉन्ड के मुकाबले तेजी से बढऩे के बावजूद यह स्थिति है और यह अंतर बुधवार को कम हुआ। इससे पहले सोमवार को, पांच वर्षीय प्रतिफल 30 वर्षीय बॉन्ड प्रतिफल को पार कर गया, जो वर्ष 2006 के बाद से पहली बार था। ऐतिहासिक तौर पर, वर्ष 1955 के बाद से अमेरिका में हरेक प्रतिफल के विपरीत (1990 को छोड़कर) था।
हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि मौजूदा प्रतिफल बदलाव बॉन्ड बाजार में अस्थायी मांग-आपूर्ति अंतर के साथ दर्ज किया गया है और इससे मंदी का संकेत अनिवार्य तौर पर नहीं माना जा सकता।
स्वतंत्र डेट बाजार विश्लेषक जयदीप सेन के अनुसार, मौजूदा प्रतिफल बदलाव कोविड-19 संबंधित मंदी से मुकाबले के लिए अमेरिकी फेड द्वारा भारी मात्रा में बॉन्ड खरीदारी की वजह से है, जिससे लंबी अवधि के प्रतिफल पर दबाव पड़ा है।
वह कहते हैं, 'जब अमेरिकी फेड ब्याज दरें बढ़ाता है, बॉन्ड बाजार में उम्मीद बढ़ती है। यदि अल्पावधि बॉन्डों में बिकवाली लंबी अवधि के बॉन्डों के मुकाबले अधिक रहती है तो विपरीत स्थिति बनी रहेगी क्योंकि संक्षिप्त अवधि के बॉन्डों की कीमतें गिर जाएंगी। इसलिए यह पलटाव अस्थायी मांग-आपूर्ति अंतर की वजह से है।'
जूलियस बेयर में प्रमुख (डिस्क्रेशनरी इक्विटीज) नितिन रहेजा का कहना है कि प्रतिफल राह के अन्य हिस्से (तीन महीने से 10 साल के बॉन्ड पर प्रतिफल) की अमेरिकी फेड द्वारा निगरानी की जाती है, क्योंकि मंदी का संकेतक विपरीत बना हुआ है और यह मौजूदा समय में 184 पर है।
बॉन्ड प्रतिफल की चाल एक ऐसा मानक है जिस पर निवेशक नजर रखते हैं क्योंकि इससे अन्य परिसंपत्ति कीमतें प्रभावित होती हैं और इससे इसका संकेतक माना जाता है कि अर्थव्यवस्था कैसी रहेगी।
निवेश रणनीति
ट्रस्टप्लूटस वेल्थ में मैनेजिंग पार्टनर विनीत बागरी का कहना है कि भारत तेज सुधार के साथ वृद्घि वाला बाजार बना हुआ है। निवेशकों के लिए निचले स्तर पर मुनाफा कमाने की जरूरत नहीं है जिससे वे निवेश से जुड़े रह सकते हैं और परिसंपत्ति आवंटन मानकों पर अमल कर सकते हैं।
रहेजा का कहना है, 'भारतीय बाजारों को पिछले कई महीनों से एफपीआई बिकवाली का सामना करना पड़ा है, जिससे केंद्रीय बैंक द्वारा नीतियों को नरम बनाने और संभावित दर वृद्घि की आशंका बढ़ी है।'
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