कीमत वृद्घि से बड़ी दवा फर्र्मों को होगा ज्यादा फायदा | हर्षिता सिंह / नई दिल्ली April 01, 2022 | | | | |
मुद्रास्फीति का प्रभाव कई उद्योगों पर पड़ा है और उनमें से कई को लागत दबाव का मुकाबला करने के लिए कीमतें बढ़ाने के लिए बाध्य होना पड़ा है। इस वजह से जरूरी दवाएं भी 1 अप्रैल से महंगी होने जा रही हैं, क्योंकि राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण ने कंपनियों को शिड्यूल्ड दवाओं की कीमतें 10.8 प्रतिशत तक बढ़ाने की अनुमति दे दी है, जो पिछले 10 वर्षों में सर्वाधिक है।
शिड्यूल्ड दवाएं (जिनका घरेलू दवा बाजार की बिक्री में 17 प्रतिशत का योगदान है) जरूरी दवाओं की राष्ट्रीय सूची (एनएलईएम) के तहत आती हैं, जिनकी कीमतें प्रत्यक्ष रूप से सरकार द्वारा नियंत्रित होती हैं और थोक बिक्री कीमत मुद्रास्फीति (डब्ल्यूपीआई) के अनुरूप हर साल बढ़ाई जाती हैं।
ताजा कीमत वृद्घि के दायरे में विभिन्न थेरेपीज में करीब 800 से ज्यादा दवाएं शामिल होंगी। विश्लेषकों का कहना है कि इस घटनाक्रम से ऊंची कच्चे माल की लागत, अमेरिकी बाजार में कीमतों में कमी और ऊंची माल ढुलाई जैसी कई समस्याओं से जूझ रहे उद्योग के लिए कुछ राहत मिलेगी।
विश्लेषकों का मानना है कि एनएलईएम दवाओं में ज्यादा निवेश से जुड़ी कंपनियों को अधिक लाभ होगा। आनंद राठी के विश्लेषकों के अनुसार, काफी हद तक सिप्ला, एल्केम लैब्स, जेबी केमिकल्स, जायडस लाइफ साइंसेज, डॉ. रेड्डीज, जीएसके फार्र्मा, ल्यूपिन, इप्का लैब्स और सन फार्मा सबसे बड़ी लाभार्थी हैं, क्योंकि इन कंपनियों का एनएलईएम दवाओं में 25-40 प्रतिशत निवेश है।
एचएसबीसी ग्लोबल की ताजा रिपोर्ट में विश्लेषक दमयंती करई ने लिखा है, 'नई प्रभावी कीमतों के साथ कंपनियां कीमत वृद्घि का कुछ बोझ लागत दबाव कम करने के लिए ग्राहकों पर डालने में सक्षम होंगी, क्योंकि पैरासीटामोल जैसे प्रमुख ऐक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रिडिएंट्स की कीमतें 15-125 प्रतिशत बढ़ी हैं, जबकि सहायक उत्पादों की कीमतें पिछले 12-15 महीनों में 20-250 प्रतिशत बढ़ी हैं।' विश्लेषक ने कहा कि कीमतों में बदलाव से नॉन-शिड्यूल्ड फॉर्मूलेशंस (घरेलू बाजार की बिक्री का 83 प्रतिशत) की कीमत वृद्घि को भी बढ़ावा मिल सकता है।
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