खाद कंपनियों ने बढ़ाना शुरू किया दाम | संजीव मुखर्जी / नई दिल्ली April 01, 2022 | | | | |
खाद बनाने में काम आने वाले कच्चे माल के दाम में तेज बढ़ोतरी के कारण उर्वरक कंपनियों ने इसका बोझ किसानों पर डालना शुरू कर दिया है। सूत्रों ने कहा कि उर्वरक क्षेत्र की दिग्गज इफको ने डीएपी की कीमत 1,200 रुपये प्रति 50 किलो बोरी से बढ़ाकर 1,350 रुपये प्रति बोरी कर दिया है। यह 12.5 प्रतिशत वृद्धि है। वहीं एक और किस्म एनपीकेएस की कीमत 1,290 रुपये प्रति बोरी से 8.5 प्रतिशत बढ़ाकर 1,400 रुपये प्रति बोरी की गई है।
एनपीके उर्वरक की अन्य किस्मों एनपीके-1 और 2 की कीमत में 20 रुपये प्रति बोरी की मामूली बढ़ोतरी की गई है और यह 1,470 रुपये प्रति बोरी है। पुराने स्टॉक की बिक्री पुरानी दरों पर होगी।
इफको डीएपी के बड़े उत्पादकों में से एक है और साथ ही कुल मिलाकर गैर यूरिया उर्वरक के क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण उत्पादक है।
सूत्रों ने कहा कि अन्य निजी कंपनियां भी या तो गैर यूरिया उर्वरक की खुदरा कीमतों में बढ़ोतरी पर विचार कर रही हैं, या पहले ही ऐसा कर चुकी हैं।
कारोबार और बाजार से जुड़े सूत्रों ने कहा कि एनपीके के विभिन्न ग्रेड और कंपोजिशन का खरीफ की फसल में इस्तेमाल देश के पश्चिमी और दक्षिणी इलाकों में सामान्य रूप से होता है।
एनपीके की कीमत उसके ग्रेड और विभिन्न कच्चे माल की मात्रा पर निर्भर है, जिसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम और सल्फर मिलाया जाता है। एनपीके के करीब 15 से 20 ग्रेड हैं।
उद्योग के सूत्रों ने कहा कि एनपीके की 50 किलो की बोरी के दाम की वास्तविक तस्वीर सब्सिडी की मात्रा के बाद ही सामने आ सकेगी, जो सरकार द्वारा 2022-23 के लिए पोषण आधारित सब्सिडी के लिए अधिसूचित किया जाना है।
उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'सब्सिडी की अधिसूचना की घोषणा जल्द ही किसी समय हो सकती है।'
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद न सिर्फ तैयार डीएपी, एनपीकेएस और मूयरिएट आफ पोटाश (एमओपी) की कीमत बढ़ी है, बल्कि इसके विनिर्माण के इस्तेमाल में लगने वाले कच्चे माल की कीमत भी बहुत तेजी से बढ़ी है।
भारत अपने एमओपी जरूरतों का करीब पूरा-पूरा आयात करता है, जबकि डीएपी की सालाना खपत के भी एक बड़े हिस्से, करीब आधे का आयात किया जाता है।
एनपीके की सालाना जरूरतों का करीब 80 प्रतिशत घरेलू उत्पादन होता है। वहीं यूरिया की सालाना मांग का एक तिहाई आयात किया जाता है।
फरवरी के आखिर में तैयार डीएपी का आयात मूल्य 900 डॉलर प्रति टन से बढ़कर करीब 1050 से 1100 डॉलर प्रति टन हो गया है और इसमें 17 से 22 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वहीं फास्फोरिक एसिड का आयात मूल्य, जिसका निर्धारण तिमाही आधार पर किया जाता है, जनवरी मार्च तिमाही में 1,530 डॉलर प्रति टन हो गया है, जो इसके पहले की तिमाही में 1,330 डॉलर प्रति टन था। इसमें करीब 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
एमओपी के आयात की कीमत नवंबर 2021 तक के सौदे के लिए करीब 280 डॉलर प्रति टन थी, जो युद्ध के बाद से अब 78.57 प्रतिशत बढ़कर 500 डॉलर प्रति टन पर पहुंच चुकी है।
टकराव के पहले अमोनिया की कीमत 900 डॉलर प्रति टन थी, जो अब बढ़कर 1,050 से 1,100 डॉलर प्रति टन हो गई है। यह 1995 के बाद से अमोनिया की सर्वाधिक कीमत है, जिसका आयात पश्चिम एशिया से होता है।
सल्फर की कीमत वैश्विक ब्रेंट क्रूड के मुताबिक होती है। इसकी बिक्री युद्ध के पहले करीब 300 डॉलर प्रति टन के भाव होती थी जो अब 450 से 500 रुपये प्रति टन पहुंच गया है और इसमें 50 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है।
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