केंद्र सरकार द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी ऐक्ट (मनरेगा) के लिए वित्त वर्ष 2022 में 98,000 करोड़ रुपये की भारी भरकम राशि आवंटित किए जाने के बावजूद इस योजना का ऋणात्मक बैलेंस रहा है। हाल के 1 अप्रैल, 2022 तक के अनंतिम आंकड़ों से पता चलता है कि इस योजना पर कुल उपलब्ध राशि से करीब 20,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च हुए हैं। इस ऋणात्मक बैलेंस का बड़ा हिस्सा सामग्री लागत के बकाये के खाते में है, जो काम इस योजना के तहत साल के दौरान कराया गया है। वहीं बकाया मजदूरी का हिस्सा इसमें बहुत कम करीब 1,840 करोड़ रुपये है। इसका मतलब यह भी है कि वित्त वर्ष 2023 के लिए आवंटित 73,000 करोड़ रुपये में से बड़ा हिस्सा पिछले वित्त वर्ष के बकाये के भुगतान में जाएगा, और उसके बाद शेष राशि का इस्तेमाल साल के दौरान नए काम करने में हो सकेगा। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि वित्त वर्ष 22 की शुरुआत में भी 17,000 करोड़ रुपये पिछले साल का बकाया था, जबकि सरकार ने वित्त वर्ष 21 में 1,11,170 करोड़ रुपये इस मद में व्यय किया था। वित्त वर्ष 22 में 1 अप्रैल, 2022 तक करीब 7.24 करोड़ परिवारों को इस योजना के तहत काम मिला। यह लगातार दूसरा साल रहा है, जब मनरेगा के तहत 7 करोड़ से ज्यादा लोगों को काम मिला है। आंकड़ों से पता चलता है कि इससे पहले इस योजना के तहत सालाना औसतन 5 से 6 करोड़ परिवार काम करते थे। मनरेगा के तहत ग्रामीण इलाकों में काम की मांग बने रहने से आर्थिक रिकवरी और नौकरियों के सृजन की सुस्त रफ्तार का पता चलता है। महामारी के बाद काम घटा है, जिसकी वजह से ग्रामीण मजदूरी में वास्तविक वृद्धि की रफ्तार सुस्त रही है और एफएमसीजी और दोपहिया वाहनों की बिक्री की वृद्धि कम हुई है। वित्त वर्ष 22 के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि कुल करीब 1,27,667.63 करोड़ रुपये इस योजना पर व्यय किया गया है। इसमें पिछले साल के बकाये का भुगतान शामिल है। वहीं धन की कुल उपलब्धता 1,06,475 करोड़ रुपये रही है। मनरेगा संघर्ष मोर्चा के देवमाल्य नंदी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'इसका एक मतलब यह भी है कि वित्त वर्ष 23 का बजट 5 से 6 महीने तक चल सकता है, जैसा कि मनरेगा के मामले में पिछले कुछ साल से हो रहा है। ऐसे में बीच में ही इस योजना के लिए धन जारी करने की जरूरत हो सकती है, अन्यथा मांग कृत्रिम रूप से कम हो जाएगी या भुगतान में देरी की वजह से मांग खत्म हो जाएगी।' वित्त वर्ष 22 में केंद्र सरकार ने मनरेगा के लिए 73,000 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया था, लेकिन काम की मांग तेज होने की वजह से करीब 98,000 करोड़ रुपये खर्च हो गए। इसी तरह से वित्त वर्ष 21, जिसे इस योजना के हिसाब से अहम माना गया है, क्योंकि कोरोना के कारण शहरों से बड़े पैमाने में मजदूरों की वापसी के कारण काम की मांग बहुत बढ़ गई थी, केंद्र ने रिकॉर्ड 1,11,170 करोड़ रुपये मनरेगा पर खर्च किए। हालांकि इस वित्त वर्ष का बजट बहुत कम था।
