बीते कुछ वर्षों के दौरान विदेशी बैंकों ने भारत में अपने कारोबार को सीमित करने की प्रवृत्ति दिखाई है। ऐसे अधिकांश संस्थानों ने जहां संस्थागत और निवेश बैंकिंग के क्षेत्र में अपनी पहुंच बरकरार रखी है, वहीं उन्होंने खुदरा बैंकिंग से दूरी बनाई है। ऐसा करने वाला सबसे नया संस्थान है सिटीग्रुप जिसने नकद सौदे में अपना खुदरा कारोबार ऐक्सिस बैंक को बेच दिया है। यह सौदा करीब 1.6 अरब डॉलर में हुआ। इससे पहले फस्र्टरैंड यूबीएस, बार्कलेज, बीएनपी परिबा, एचएसबीसी और आरबीएस ने भी अपना खुदरा कारोबार या तो सीमित किया या उसे पूरी तरह बंद कर दिया। ऐसा भारतीय रिजर्व बैंक की जटिल अनुपालन जरूरतों की वजह से भी हुआ और खुदरा बैंकिंग क्षेत्र की प्रतिस्पर्धी प्रकृति की वजह से भी। इसमें दो राय नहीं कि देश में एक बड़ा मध्य वर्ग है जो वित्तीय योजनाओं तथा वित्तीय नियोजन में काफी रुचि रखता है। इसके अलावा भारत में अत्यधिक प्रतिस्पर्धी स्थानीय बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) तथा फिनटेक कंपनियों की एक नई श्रेणी भी है जो इस क्षेत्र में सेवाएं देने को तत्पर हैं। विदेशी बैंक कारोबार के आकार के मामले में स्थानीय बैंकों का मुकाबला नहीं कर सकते और वे इसके लिए जरूरी तकनीक में निवेश करने के अनिच्छुक हैं। उदाहरण के लिए सिटी बैंक का कहना है कि वह इस सौदे से मुक्त होने वाली 80 करोड़ डॉलर की इक्विटी को अन्य स्थानों पर कम प्रतिस्पर्धी क्षेत्रों में निवेश कर सकता है।
सिटीग्रुप 12 अन्य देशों में भी खुदरा बैंकिंग दूरी बना चुका है या दूरी बना रहा है क्योंकि खुदरा बैंकिंग में उच्च मार्जिन से ज्यादा महत्त्व बड़े आकार का है। इस क्षेत्र में प्रभावी साबित होने के लिए सेवा प्रदाता को बड़े पैमाने पर काम करने की जरूरत है और उसकी पहुंच तमाम बाजारों और क्षेत्रों तक होनी चाहिए। इसके अलावा भारतीय वित्तीय अर्थव्यवस्था पहले ही बहुत हद तक डिजिटलीकृत हो चुकी है। इसका अर्थ है देश के खुदरा बैंकिंग जगत में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए तकनीक में बड़े पैमाने पर निवेश करना होगा। इन बाधाओं के चलते किसी विदेशी बैंक के लिए स्थानीय बैंक के साथ मुकाबला करना लगभग असंभव है। उदाहरण के लिए ऐक्सिस बैंक की देश भर में 4,600 शाखाएं हैं जबकि सिटी बैंक की केवल 35। ऐक्सिस के पास ऐप संचालित प्लेटफॉर्म जो उपभोक्ताओं को आसानी से एक ही ऐप पर ढेर सारी सेवाएं मुहैया कराता है। अन्य भारतीय वित्तीय संस्थान जिनमें बैंक, एनबीएफसी और फिनटेक कंपनियां शामिल हैं, उनके पास भी ऐसे ही प्लेटफॉर्म तथा प्रोफाइल हैं जो खुदरा ग्राहकों को लक्षित करते हैं। महामारी के कारण बैंकों की जोखिम प्रबंधन अवधारणाओं में भी तब्दीली आई। संस्थागत और कॉर्पोरेट बैंकिंग के कारोबार का आकार हमेशा बड़ा रहता है और उनका मार्जिन भी अधिक रहता है। महामारी तक कॉर्पोरेट बैंकिंग में डिफॉल्ट का खतरा भी अधिक था। खुदरा ग्राहक बहुत कम डिफॉल्ट करते थे। इसका अर्थ यह था कि बैंकों ने खुदरा जोखिम को डिफॉल्ट के जोखिम के खिलाफ विविधता माना। महामारी ने यह रुझान बदल दिया क्योंकि खुदरा ऋण तेजी से डिफॉल्ट हुए। चूंकि खुदरा कारोबार में यह पहुंच अब जोखिम से बचाव नहीं मुहैया कराती इसलिए बैंकों ने अपनी खुदरा बनाम कॉर्पोेरेट की रणनीति की समीक्षा की। विदेशी बैंक जहां खुदरा कारोबार से दूरी बना रहे हैं वहीं भारतीय बैंकों को भी अपनी इस प्रतिबद्धता पर विचार करना होगा। इस क्षेत्र में कई बड़ी फिनटेक कंपनियां, एक दर्जन बड़ी एनबीएफसी, सैकड़ों छोटी एनबीएफसी तथा करीब 40 वाणिज्यिक बैंक हैं। ये सभी उन्हीं ग्राहकों पर निर्भर हैं तथा तमाम सेवाओं की पेशकश कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में पहले से कम मार्जिन और कम हो सकता है क्योंकि ग्राहक सबसे अच्छी शर्तों वाले सेवा प्रदाता को चुन सकता है। इस क्षेत्र में और हलचल देखने को मिल सकती है।
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