कपास के दाम बढऩे से कपड़ा उद्योग परेशान | शाइन जैकब और संजीव मुखर्जी / चेन्नई/नई दिल्ली March 29, 2022 | | | | |
कपास और सूती धागे की कीमतों में उतार चढ़ाव से भारत के गार्मेंट उद्योग पर बुरा असर पड़ रहा है। चीन में लॉकडाउन होने के कारण चीनी निर्यात कम होने का लाभ भारत के परिधान उद्योग को मिलता नहीं दिख रहा है। सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले संकर-6 कपास की कीमत बढ़कर अब 1,00,000 रुपये प्रति कैंडी पहुंचने को है।
यह किस्म निर्यात के लिए मानक है। संकर-6 किस्म की कपास 90,000 रुपये प्रति कैंडी पर पहुंच गई है, जो जनवरी 2021 में करीब 46,000 रुपये प्रति कैंडी थी। अगर मौजूदा कीमत में लॉजिस्टिक्स लागत भी जोड़ लें तो इसकी कीमत 100,000 रुपये प्रति कैंडी है, जबकि कुछ श्रेणियों की कीमत पहले ही इस स्तर को छू गई है।
उद्योग संगठनों का आरोप है कि कपास का स्टॉक अटकलबाजी में रोक लिया गया है, क्योंकि उम्मीद की जा रही है कि इसके दाम जल्द ही 100,000 रुपये से ऊपर पहुंचेंगे। अगर प्रति कैंडी कपास की कीमत में 1,000 रुपये की बढ़ोतरी होती है तो धागे की कीमत 4 रुपये प्रति किलो बढ़ जाती है।
तमिलनाडु के तिरुपुर में मुख्य विनिर्माण इकाई वाली दिल्ली की टीटी लिमिटेड के संजय कुमार जैन ने कहा, 'कच्चे कपास की कीमत भारत में 90,000 प्रति गांठ के ऊपर पहुंच गई है। यह पहले के साल से 40 प्रतिशत बढ़कर अब तक के सर्वोच्च स्तर पर है। इसकी वजह से पूरा उद्योग परेशान है और इस बढ़ोतरी से छोटे कारोबारी तबाह हो रहे हैं।'
उद्योग संगठनों ने पहले ही इस मसले पर सरकार के हस्तक्षेप की मांग की है।
तमिलनाडु स्पिनिंग मिल्स एसोसिएशन (तस्मा) के मुख्य सलाहकार के वेंकटचलम ने कहा, 'अक्टूबर 2021 से शुरू चालू कपास सत्र में कपास की कीमत सामान्य कीमत से दोगुनी हो गई हैं। इस समय कपास की उपलब्धता भी प्रभावित हो रही है। यहां तक कि जब मिलें ज्यादा दाम देने को तैयार हैं, गुणवत्तायुक्त कपास की आपूर्ति सुनिश्चित नहीं हो पा रही है।' एसोसिएशन ने संकेत दिया है कि तमिलनाडु में कपास का कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करने वाली तमाम मिलें बंदी के कगार पर पहुंच गई हैं, जिसकी एकमात्र वजह कपास की अनुपलब्धता है। कारोबार से जुड़े सूत्रों ने कहा कि कीमतों में बढ़ोतरी की एक वजह सरकार के उत्पादन के अनुमान व वास्तविक फसल के उत्पादन में अंतर है।
केंद्र सरकार ने अनुमान लगाया था कि 2021-22 में 362.8 लाख गांठ (1 गांठ 170 किलो की) कपास उत्पादन होगा। वहीं कारोबारियों का कहना है कि वास्तविक उत्पादन बहुत कम करीब 330 से 340 लाख गांठ ही है।
कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया का अनुमान है कि उत्पादन करीब 348 लाख गांठ रहेगा। इस साल कपास की खपत 350 लाख गांठ रहने की संभावना है, हालांकि कुछ व्यापारियों का कहना है कि खपत 335 लाख गांठ रह सकती है। अगर वैश्विक स्थिति देखें तो यूएसडीए ने कपास का वैश्विक उत्पादन कम रहने का अनुमान लगाया है। एक प्रमुख वैश्विक कारोबारी ने कहा, 'पिछले कुछ साल तक भारतीय कपास निगम (सीसीआई) के पास कुछ कपास रहता था, लेकिन पिछले कुछ महीने में सीसीआई ने अपना पूरा भंडार खाली कर बाजार में उतार दिया है।'
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