गोवंश के अलावा अन्य पशुओं की भी उपयोगिता भुनाने की जरूरत | |
खेती-बाड़ी | सुरिंदर सूद / 03 27, 2022 | | | | |
बकरी, भेड़, ऊंटनी, गधी और याक जैसे गैर-गोवंशी पशुओं (गाय और भैंस के अलावा) के दूध की मांग बढऩे लगी है क्योंकि उनके दूध के पोषक और सेहतमंद गुणों को लेकर जागरूकता बढ़ रही है। स्टार्टअप और स्थापित डेयरी ब्रांडों समेत बहुत से वाणिज्यिक उद्यमों ने गैर-गोवंश के दूध से दूध पाउडर, चीज, योगर्ट, आइसक्रीम, चॉकलेट, कॉस्मेटिक उत्पाद और अन्य विशेष उत्पाद बनाने शुरू कर दिए हैं।
बकरी और ऊंटनी का दूध और उनके उत्पाद प्रमुख डेयरी उत्पाद आउटलेट और ऑनलाइन विपणन शृंखलाओं में आसानी से उपलब्ध हैं। यूरोप में बेबी फूड विनिर्माताओं की मांग पूरी करने के लिए गाय डेयरी फार्मों की तर्ज पर गधी फार्म बन गए हैं। इस दूध को संघटन और पाचन के मामले में मानव दूध के नजदीक माना गया है और इसे बहुत से देशों में मां के दूध के विकल्प के रूप में सदियों से इस्तेमाल किया जा रहा है। अब इसका खिलाडिय़ों के लिए स्टेमिना बढ़ाने वाले पेय के रूप में भी इस्तेमाल होने लगा है क्योंकि इसमें कोलेस्ट्रॉल एवं फैट कम और ऊर्जा अधिक होती है।
गैर-गोवंश के दूध के उत्पादों का सेहतमंद खाद्यों और विभिन्न दवाओं में प्रोबायोटिक्स (योगर्ट जैसे उत्पादों में पाए जाने वाले सेहतमंद सूक्ष्मजीव) के वाहक के रूप में भी इस्तेमाल बढ़ रहा है। अब बहुत से डॉक्टर ऑटिज्म (बच्चों में सामाजिक संवाद का विकार) से पीडि़त बच्चों को ऊंटनी का दूध, डेंगू मरीजों को बकरी का दूध और अन्य बहुत सी बीमारियों में गधी एवं अन्य जानवरों का दूध पिलाने का परामर्श दे रहे हैं। इससे इस तरह के दूध के लिए खास बाजार बन गया है और इस दूध की कीमतें भी बढ़ रही हैं। ऐसे में इस बात में कोई अचंभा नहीं होना चाहिए कि पिछले साल सितंबर में डेंगू फैलने के दौरान अमृतसर (पंजाब) में बकरी का दूध 300 रुपये प्रति लीटर से भी अधिक महंगा बिका। माना जाता है कि बकरी के दूध से खून में प्लेटलेट की संख्या बढ़ती है और डेंगू के मरीज जल्दी ठीक होते हैं।
विभिन्न गैर-गोवंशी पशुओं के दूध के विशेष उपचारात्मक गुणों और अन्य अहम खूबियों के बारे में राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी के प्रकाशन (पॉलिसी संख्या 97) में बहुत अच्छे तरीके से बताया गया है। इस अकादमी के अध्यक्ष और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्र ने इस प्रकाशन की प्रस्तावना में कहा है कि गैर-गोवंश का दूध एक शानदार खाद्य और चिकित्सा उत्पादों का एक अहम घटक हो सकता है। इस दूध का इस्तेमाल कोविड सहित विभिन्न बीमारियों के खिलाफ मानव की रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाने के लिए सुपर फूड्स, जैव-कार्यात्मक रोग प्रतिरोधी खाद्य अनुपूरक और औषधियों में किया जा सकता है।
इस दस्तावेज के मुताबिक ऊंटनी का दूध ऑटिज्म के अलावा मधुमेह, तपेदिक और वायरस एवं बैक्टीरिया जनित संक्रमण से बचाव में उपयोगी है। ऐसा माना जाता है कि बकरी का दूध डेंगू के अलावा कार्डियो हृदय या रक्त कोशिकाओं से संबंधित बीमारियों, एलर्जी, सूजन, दस्त, चिकनगुनिया, अस्थमा और खुजली में उपयोगी है। भेड़ का दूध बायोएक्टिव पेप्टाइड (अमीनो एसिड) का बहुत अच्छा स्रोत है, जो हृदय की बीमारियों, बच्चों में मिर्गी, सिस्ट, पित्ताशय की पथरी और बैक्टरिया एवं वायरस जनित संक्रमणों में उपयोगी होता है।
गधी का दूध डर्माटाइटिस एवं त्वचा की अन्य बीमारियों, हेपेटाइटिस, गैस्ट्रिक अल्सर और हृदय एवं रक्त कोशिकाओंं से संबंधित विकारों के उपचार में फायदेमंद साबित हो सकता है। याक का दूध ऊपरी पहाड़ी इलाकों में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, जिसे हाइपरटेंशन, मधुमेह, हृदय एवं रक्त वाहिकाओं से संबंधित समस्याओं और कैंसर में उपयोगी माना जाता है।
दूध की वाणिज्यिक अहमियत के अलावा इन गैर-गोवंशी पशुओं पर अन्य वजहों से भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इनका पालन आम तौर पर गरीब एवं भूमिहीन लोग अपनी आजीविका के लिए करते हैं। ये जानवर अपने मांस एवं बाल (ऊन) एवं त्वचा (चमड़ा) जैसे उत्पादों के लिए भी अहमियत रखते हैं। उनमें से कुछ का इस्तेमाल परिवहन एवं कृषि कार्यों में भी होता है।
इन पशुओं के पालन में घटते चारागाह एक प्रमुख समस्या बन रहे हैं। इसके नतीजतन इन प्रजातियों में से कुछ की आबादी स्थिर है या घट रही है। खास तौर पर उन इलाकों में, जहां अब साझा चरागाह भूमि नहीं रही है या मामूली है। इस दिक्कत को शीघ्रता से दूर करने की जरूरत है। इसके अलावा इन गैर-गोवंशी पशुओं की उत्पादकता बढ़ाने के लिए उनके जीन संवर्धन के लिए उचित नस्ल सुधार योजनाएं बनाने की दरकार है। ऐसा करने का एक तरीका यह है कि गोवंश के लिए उपलब्ध स्वास्थ्य एवं कृत्रिम वीर्यारोपण नेटवर्क को गैर-गोवंश पशुओं के लिए भी खोल दिया जाए।
हालांकि इन जानवरों के लिए विकास नीतियां सावधानीपूर्वक बनाई जाएं। इसमें उस पारिस्थितिकी का ध्यान रखा जाना चाहिए, जिसमें इनका पालन समाज के वंचित वर्ग द्वारा किया जाता है। ऐसे भी कई उदाहरण मिलते हैं, जिनमें उनकी तादाद में गिरावट रोकने के उपायों का उल्टा असर पड़ा है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण राजस्थान का ऊंट संरक्षण कानून- ऊंट वध रोकथाम एवं अस्थायी आप्रवास एवं निर्यात नियमन) है। इसे ऊंटों की घटती संख्या को रोकने के लिए अच्छे इरादे से लागू किया गया, लेकिन इससे गिरावट और तेज हुई है। ऊंटों को राजस्थान के बाहर ले जाने पर रोक से इन पशुओं का बाजार लगभग खत्म हो गया। इस कानून से ऊंट पालक ऊंट पालने और उन्हें बेचने के लिए लाने को हतोत्साहित हुए हैं। इसके नतीजतन ऊंटों की संख्या 35 फीसदी घटने का अनुमान है।
ऐसे में इस बात की जरूरत है कि औषधि और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य उद्योगों को गैर-गोवंश के दूध के औषधीय गुणों को भुनाकर घरेलू एवं निर्यात बाजार के लिए विशिष्ट उत्पाद विकसित करने को बढ़ावा दिया जाए। इससे गैर-गोवंश दूध क्षेत्र में मांग आधारित एवं नियमित वृद्धि सुनिश्चित होगी।
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