परंपरागत क्षेत्र के बेहद अमीर और मशहूर लोगों ने कई सालों से परोपकार के लिए निजी तौर पर फंडिंग करने में अहम भूमिका निभाई है लेकिन अब उससे अलग रुझान दिख रहे हैं। तकनीकी उद्यमियों की नई युवा पीढ़ी भले ही अति धनाढ्य लोगों (यूएचएनआई) में शामिल हो गई और उनकी संख्या भी बढ़ रही है लेकिन अब भी वित्त वर्ष 2021 में कुल यूएचएनआई संपत्ति में संभवत: उनका योगदान केवल 8 प्रतिशत है। हालांकि एक बड़ा बदलाव यह है कि इन नए उद्यमियों ने परोपकार के क्षेत्र में अपना अहम योगदान देना शुरू कर दिया है। बेन ऐंड कंपनी और एक गैर-लाभकारी संगठन दासरा द्वारा कराए गए अध्ययन से जुड़े नए इंडिया फिलैन्थ्रॉपी रिपोर्ट 2022 के मुताबिक नए तकनीकी उद्यमियों ने परोपकार के लिए कुल दान में 35 प्रतिशत का योगदान दिया। पिछले साल उन्होंने कुल दान में 25 प्रतिशत का योगदान दिया था। यूएचएनआई को उन लोगों के रूप में वर्गीकृत किया गया है जिनके पास 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की हैसियत है और वे 5 करोड़ रुपये से अधिक दान दे रहे हैं। वित्त वर्ष 2021 में कुल मिलाकर यूएचएनआई की संपत्ति में तेज वृद्धि देखी गई है और वित्त वर्ष 2021 में 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति रखने वाले लोगों की संचयी हैसियत में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और पिछले वर्ष की तुलना में उनकी संख्या में 28 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वहीं 50,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति रखने वाले लोगों में यह रुझान और भी तेज था (यह 80 प्रतिशत तक बढ़ गया)। हालांकि परोपकार के लिए निजी फंडिंग में उनका समग्र योगदान वित्त वर्ष 2015 के 16,000 करोड़ रुपये से घटकर वित्त वर्ष 2021 में 12,000 करोड़ रुपये हो गया है। इसी अवधि में निजी फंडिंग में उनकी हिस्सेदारी लगभग 19 प्रतिशत से 12 प्रतिशत तक है। यह रिपोर्ट इस तथ्य को भी सामने लाती है कि उनकी हैसियत के हिस्से के आधार पर देखा जाए तो परोपकार से जुड़े कामों में उनका योगदान अमेरिका, ब्रिटेन और यहां तक कि चीन जैसे अन्य देशों में अमीर और मशहूर लोगों की तुलना में बहुत कम है। वित्त वर्ष 2021 में 50,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति वाले भारतीय यूएचएनआई का अपनी हैसियत के प्रतिशत के रूप में दान का औसत योगदान केवल 0.09 प्रतिशत था जबकि चीन में 1.48 प्रतिशत, ब्रिटेन में 0.44 प्रतिशत और अमेरिका में 2.52 प्रतिशत था। वहीं 1,000 करोड़ रुपये से 10,000 करोड़ रुपये की हैसियत वाले लोगों का योगदान चीन के 1.41 प्रतिशत, ब्रिटेन में 1.82 प्रतिशत और अमेरिका में 1.19 प्रतिशत की तुलना में 0.14 प्रतिशत था। लेकिन बेन-दासरा की रिपोर्ट आशावादी है और यूएचएनआई फिर से एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है लेकिन इस बार इसका नेतृत्व तकनीकी उद्यमियों द्वारा किया जाएगा। इसमें कहा गया है कि 2026 तक कुल यूएचएनआई का योगदान वर्ष 2021-26 के बीच 14 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ेगा और 2015-2021 के बीच 5 प्रतिशत की ऋणात्मक वृद्धि की तुलना में 23,000 करोड़ रुपये को छू लेगा। उनका कहना है कि जैसे-जैसे अधिक तकनीकी उद्यमी और नई पीढ़ी के परोपकार करने वाले लोग इसमें आएंगे वैसे ही देश के सामाजिक क्षेत्र की फंडिंग को पूरा करने में उनकी भूमिका अहम होगी। समग्र स्तर पर रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2021 में निजी फंडिंग 103,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है जो वित्त वर्ष 2020 में 64,000 करोड़ रुपये से अधिक थी और वित्त वर्ष 2026 में इसके 180,000 करोड़ रुपये को पार करने की उम्मीद है। इसके अलावा कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) विशेष रूप से सरकार द्वारा अनिवार्य किए जाने के बाद कंपनियों को अपने पिछले तीन साल के शुद्ध लाभ का 2 प्रतिशत सीएसआर के लिए निर्धारित करना पड़ता है, ऐसे में सीएसआर का भी एक प्रमुख योगदान है। ऐसे में निजी फंडिंग में कुल हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2015 के 26 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2021 में 23 प्रतिशत हो गई है और वित्त वर्ष 2026 में इसके 32 प्रतिशत तक पहुंचने की उम्मीद है। हालांकि सीएसआर में योगदान देने वाली 90 प्रतिशत कंपनियां गैर-सूचीबद्ध थीं, उनमें से केवल 3 प्रतिशत ने वित्त वर्ष 2020 में 10 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए और 70 प्रतिशत ने 50 लाख रुपये से कम का योगदान दिया।
