दोहरी कीमतों का संकट | संपादकीय / March 21, 2022 | | | | |
सरकारी तेल विपणन कंपनियों ने डीजल के थोक उपभोक्ताओं के लिए कीमतों में 25 रुपये प्रति लीटर का इजाफा करने का निर्णय लिया है जबकि खुदरा कीमतों को अपरिवर्तित रखा गया है। इससे ईंधन के बाजार में भारी विसंगति उत्पन्न होने की आशंका है। इसके बाद मूल्य सुधारों को लेकर भी सवाल खड़े होंगे। रविवार को ईंधन बिक्री में 90 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाली तीन सरकारी कंपनियों इंडियन ऑयल, एचपीसीएल और बीपीसीएल ने थोक उपभोक्ताओं मसलन सार्वजनिक परिवहन वाली बसों, उद्योगों, हवाई अड्डों, मॉल और भारतीय रेल के लिए तेल कीमतों में इजाफा कर दिया। मुंबई में थोक उपयोगकर्ताओं के लिए डीजल की कीमत 122.05 रुपये प्रति लीटर हो गई है जबकि पंप पर खुदरा ग्राहकों को 94.14 रुपये प्रति लीटर की दर से पेट्रोल मिल रहा है। दिल्ली में यह कीमत क्रमश: 115 रुपये और 86.67 रुपये प्रति लीटर है। निश्चित तौर पर रूस-यूक्रेन जंग के कारण कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से इजाफा हुआ और इसलिए यह बढ़ोतरी भी काफी समय से लंबित थी। खासकर यह देखते हुए कि तेल कीमतें रिकॉर्ड 136 दिनों से स्थिर हैं। परंतु डीजल के लिए दोहरी दरें प्रतिगामी कदम हैं और ये कई वजहों से नुकसानदेह हैं।
पहली बात, पंप कीमतों को लंबे समय से स्थिर रखा गया है। पहले राज्यों के विधानसभा चुनावों के चलते ऐसा किया गया और अब विजयी सत्ताधारी दल के लोकलुभावनवाद चलते दाम नहीं बढ़ाए जा रहे। इस बात ने ईंधन कीमतों के स्वतंत्र होने की बात को मखौल साबित कर दिया है। इसके अलावा तेल विपणन कंपनियों का नुकसान बढऩे की आशंका है भले ही सरकार के राजस्व को क्षति न पहुंचे क्योंकि ईंधन करों में कटौती नहीं की गई। बल्कि चुनाव के बाद कीमतों में इजाफे की संभावना के चलते तेल विपणन कंपनियों से कहा गया था कि वे इन्वेंटरी लाभ तथा कच्चे तेल के प्रसंस्करण में सकल परिशोधन मार्जिन बढ़ाकर अपने विपणन के घाटे की भरपाई करें। लेकिन तेल कंपनियों का सकल विपणन मार्जिन कई सप्ताह से ऋणात्मक चल रहा है क्योंकि कच्चे तेल की कीमत दिसंबर के 70 डॉलर प्रति बैरल से बहुत अधिक बढ़ चुकी है। बीते एक महीने में यह घाटा बढ़ा है क्योंकि थोक उपभोक्ताओं मसलन बसों और ट्रकों ने तेल विपणन कंपनियों से सीधे तेल खरीदने के बजाय कीमत में बढ़ोतरी की आशंका के चलते खुदरा पंप से तेल खरीदना शुरू कर दिया।
परिणामस्वरूप इस महीने बिक्री करीब 20 फीसदी बढ़ गई जिससे न केवल तेल विपणन कंपनियों का घाटा बढ़ा बल्कि देश के लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति ढांचे पर भी दबाव पड़ा। यह अनुभव एक ऐसी संभावित समस्या की ओर इशारा करता है जो आने वाले दिनों में दोहरी कीमतों वाली व्यवस्था के कारण उभरेगी। दरअसल एक अनाधिकारिक बाजार तैयार हो सकता है जहां खुदरा डीजल उच्च मूल्य वाले थोक बाजार में जाएगा और कंपनियों का घाटा बढ़ेगा। केरोसिन की दोहरी कीमतों में हमारे लिए सबक छिपा है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि आखिर कच्चे तेल की कीमतों में लगातार इजाफे के बीच खुदरा कीमतों को कम रखकर मुद्रास्फीति को कैसे नियंत्रित किया जाएगा? क्योंकि परिवहन सेवा प्रदाताओं को ईंधन की लागत में 40 फीसदी इजाफा होने के बाद कीमतें बढ़ानी होंगी।
खुदरा कीमतों में बढ़ोतरी पर यह रोक निजी कंपनियों मसलन जियो-बीपी, नायरा एनर्जी और शेल को भी मजबूर करेगी कि वे कीमतों को सरकारी कंपनियों की तरह कम रखें। यदि वे ऐसा नहीं करेंगी तो उनके ग्राहक दूर होंगे। सन 2008 में रिलायंस ने अपने सभी आउटलेट बंद कर दिए थे क्योंकि वह सरकारी तेल कंपनियों की सब्सिडी वाली कीमतों का मुकाबला नहीं कर पा रही थी। सरकार के दबदबे को देखते हुए लगता नहीं कि प्रतिस्पर्धा आयोग के समक्ष कोई चुनौती दी जाएगी। लेकिन राजनीतिक नजरिये से ईंधन कीमतों के साथ छेड़छाड़ बीपीसीएल के विनिवेश की संभावनाओं पर असर डालेगी। बाजार में विसंगति निवेशकों को आश्वस्त करने वाला कदम नहीं है।
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