रूस और यूक्रेन संकट के साथ ही कृषि जिंसों में सामान्य तेजी के कारण उन 24 जिंसों की कीमत एमएसपी से ऊपर चल रही है जिनके लिए केंद्र न्यूनतम समर्थन मूल्य (एसएसपी) की घोषणा करता है। कीमत में उछाल के लिहाज से यह स्थिति लंबे वक्त बाद नजर आ रही है। इस तेजी के माहौल में चना और कुछ अन्य दलहन अपवाद हैं। फसलों के दाम में आए इस उछाल से विशेष तौर पर ऐसे किसानों को खुशी मिली है जिनके पास अभी भी पिछली खरीफ पैदावार का भंडार बचा है या फिर रबी की फसल की कटाई कर रहे हैं। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि इसके कारण आगे चलकर खुदरा और थोक मूल्य मुद्रास्फीति पर असर पड़ सकता है। विभिन्न बाजार एजेंसियों और व्यापारियों से जुटाए गए आंकड़ों से पता चलता है कि चालू रबी सीजन में जिन फसलों की कटाई हो रही है जैसे कि सीजन की दो सबसे बड़ी फसलें सरसों और गेहूं की कीमत एमएसपी से ऊपर बनी हुई है लेकिन देश में दलहनों में सबसे बड़ी फसल चना की कीमत बेंचमार्क से नीचे बोली जा रही है। अधिकांश बड़े बाजारों में चना की कीमत बुधवार तक 4,700-4,800 रुपये प्रति क्विंटल बोली जा रही थी जो कि एमएसपी से 9 से 11 फीसदी तक कम है। मूंग की बिक्री भी प्रमुख व्यापारिक केंद्रों पर एमएसपी से काफी नीचे 7,275 रुपये प्रति क्विंटल पर हो रही है। आईग्रेन में जिंस विश्लेषक राहुल चौहान ने कहा, 'इस वर्ष चना का उत्पादन अधिक है और इसके अलावा सरकार भी अपने भंडार में कमी कर रही है जिससे कीमत नीचे बनी हुई है।' सरकार ने अपने भंडार से चना की बिक्री 4,701 रुपये से 4,950 रुपये प्रति क्विंटल की है जो कि 5,230 रुपये के एमएसपी से कम है। कुछ समय पहले जारी हुए खाद्यान्न उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक 2021-22 में चने का उत्पादन 1.312 करोड़ टन के साथ सर्वकालिक उच्च स्तर पर रह सकता है। यह पिछले वर्ष से 10.16 फीसदी अधिक है। रूस-यूक्रेन संकट के मद्देनजर निर्यात मांग चढऩे के कारण पिछले कुछ हफ्तों से देश में भर में गेहूं के दाम बढ़े हुए हैं। बजाार सूत्रों का कहना है कि अधिकांश जगहों पर गेहूं की बिक्री कुछ दिनों पहले तक 2,300-2,500 रुपये प्रति क्विंटल हो रही थी जबकि गेहूं का एमएसपी 2,015 रुपये है। वैश्विक बाजारों में भारतीय गेहूं की कीमत कुछ दिनों पहले 360 डॉलर प्रति क्विंटल पर पहुंच गई थी जो नरम होकर 340-350 डॉलर प्रति टन पर आ गई। गेहूं उत्पादक सभी देशों में भारतीय गेहूं सबसे सस्ता है और अगले कुछ महीने तक वैश्विक बाजारों में यूक्रेन और रूस की अनुपस्थिति के कारण भारतीय व्यापारियों के लिए मौजूदा और अगले वित्त वर्ष में भी वहां रिकॉर्ड मात्रा में गेहूं ले जाने का अच्छा अवसर है। सरसों की कीमत एमएसपी से काफी ऊपर बनी हुई है जिसकी प्रमुख वजह वैश्विक खाद्य तेल बाजारों में नजर आ रही तेजी है। यह तेजी रूस-यूक्रेन संकट की वजह से और बढ़ गई है। व्यापारिक आंकड़ों से पता चलता है कि जयपुर में सरसों 7,000-7,100 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रही है जो कि 5,050 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी से 39-41 फीसदी तक अधिक है। भरतपुर में सरसों 6,595 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रही है। चौहान ने कहा कि वैश्विक कारणों से सरसों की कीमत एमएसपी से ऊपर बने रहने के आसार है लेकिन होली के बाद आवक बढऩे पर दाम में मामूली कमी आ सकती है। 2021-22 में सरसों का उत्पादन 1.149 करोड़ टन रहने का अनुमान है जो कि पिछले वर्ष से 12.54 फीसदी अधिक है।पिछले साल के मुकाबले बढ़ गया गर्मी की फसलों का रकबा गर्मी की सीजन में उगाई जाने वाली फसलों के रकबे में इस वर्ष मामूली इजाफा नजर आ रहा है। इस सीजन में मोटे तौर पर धान और चुनिंदा दलहनें उगाई जाती हैं जिनका रकबा बुधवार तक करीब 38 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया जो कि पिछले वर्ष की समान अवधि में रहे 37.8 लाख हेक्टेयर के रकबे से मामूली अधिक है। गुरुवार तक धान की बुआई 25.3 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले वर्ष 26.6 लाख हेक्टेयर में हुई थी। वहीं, दलहन की बुआई 3.4 लाख हेक्टेयर में की गई है जबकि पिछले वर्ष इसका रकबा 2.7 लाख हेक्टेयर था। तिलहनों की बुआई 5.2 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले वर्ष यह रकबा 5.4 लाख हेक्टेयर रहा था। गर्मी की फसलों की बुआई रबी की कटाई और खरीफ की बुआई के बीच की अवधि में किया जाता है।
