राजकोषीय परिषद की जरूरत | संपादकीय / March 17, 2022 | | | | |
केंद्र सरकार ने इस सप्ताह संसद को बताया कि पंद्रहवें वित्त आयोग तथा वित्तीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) पैनल ने भले ही राजकोषीय परिषद की स्थापना की अनुशंसा की है लेकिन उसका ऐसा कोई इरादा नहीं है। सरकार का तर्क है कि मौजूदा संस्थान मसलन भारतीय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, वित्त आयोग तथा राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग लगभग उन सभी कामों को अंजाम दे रहे हैं जो ऐसी परिषद के लिए प्रस्तावित हैं। सरकार के लिए बेहतर यही होगा कि वह अपने रुख की समीक्षा करे और एक के बाद एक वित्त आयोगों तथा एफआरबीएम समीक्षा पैनल द्वारा दिए गए तर्कों पर बारीकी से नजर डाले। देश के सार्वजनिक वित्त की स्थिति को देखते हुए आज एक स्वतंत्र राजकोषीय परिषद की आवश्यकता पहले से कहीं ज्यादा है।
देश के सार्वजनिक ऋण तथा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुपात के बढ़कर 90 फीसदी होने का अनुमान है जबकि सरकार का सामान्य बजट घाटा भी निकट भविष्य में ऊंचा बना रह सकता है। केंद्र सरकार चालू वर्ष में शायद राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल न कर पाए, उसने सन 2022-23 तक उसे कम करके जीडीपी के 6.4 फीसदी करने का लक्ष्य रखा है। सरकार ने 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को कम करके जीडीपी के 4.5 फीसदी तक लाने का भी लक्ष्य तय किया है। हालांकि उसने इसकी राह नहीं सुझायी है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि 4.5 फीसदी का लक्ष्य कैसे तय किया गया। साफ कहा जाए तो राजकोषीय स्थिति से विचलन अवश्यंभावी था और सरकार को यह श्रेय दिया जाना चाहिए कि उसने महामारी के दौरान अपना रुख रूढि़वादी रखा। बहरहाल, अभी भी यह आवश्यक है कि सरकार मध्यम अवधि के लिए विश्वसनीय राजकोषीय योजना पेश करे, खासतौर पर सार्वजनिक ऋण के स्तर को देखते हुए। इससे बाजार का आत्मविश्वास मजबूत होगा और सरकार की दीर्घावधि की उधारी लागत कम होगी।
ऐसे में स्वतंत्र राजकोषीय परिषद की जरूरत महत्त्वपूर्ण हो जाती है और बीते वर्षों में विश्व स्तर पर इस विचार को स्वीकार्यता मिली है। जैसा कि पंद्रहवें वित्त आयोग ने भी कहा, सन 2005 के बाद से स्वतंत्र राजकोषीय आयोग वाले देशों की तादाद तीन गुना बढ़ी है। अनुभव बताता है कि इससे बेहतर राजकोषीय नतीजे हासिल होते हैं।
इस संदर्भ में यह बात ध्यान देने लायक है कि परिषद का स्वतंत्र और स्पष्ट विधिक ढांचे में काम करना जरूरी है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में देश की मौद्रिक नीति में सुधार करके अच्छा किया था। उसने ऐसा मुद्रास्फीति को लक्षित करने का लचीला ढांचा तैयार करके तथा मौद्रिक नीति समिति गठित करके किया। हालांकि स्वतंत्र राजकोषीय परिषद के पास कोई निर्णय लेने का अधिकार नहीं होगा लेकिन इससे देश की वृहद आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। जैसा कि पंद्रहवें वित्त आयोग ने सुझाया, परिषद मध्यम अवधि के वृहद आर्थिक पूर्वानुमान लगा सकती है, सरकार के सभी स्तरों पर तय लक्ष्यों के समक्ष प्रदर्शन का आकलन कर सकती है, दीर्घावधि के राजकोषीय स्थायित्व वाले आकलन कर सकती है, सरकार के उपायों तथा उनके राजकोषीय प्रभाव का आकलन कर सकती है। इससे वित्त आयोगों तथा अन्य संस्थाओं को बेहतर विश्लेषण में मदद मिलेगी।
भारत में अभी सरकार को कई क्षेत्रों में काम करने की आवश्यकता है। सरकार को केवल अपने दायित्वों के निर्वहन के लिए संसाधनों की आवश्यकता नहीं है बल्कि सभी स्तरों पर समझदारीपूर्वक व्यय करने की भी आवश्यकता है। मसलन यह अनुमान लगा पाना मुश्किल है कि आखिर सरकारी व्यय का कितना हिस्सा कल्याण योजनाओं तथा सब्सिडी में व्यय होता है। केंद्र तथा राज्य सरकार दोनों ने विभिन्न स्तरों पर नकदी हस्तांतरण की योजना शुरू की है जिन्हें ज्यादा प्रभावी बनाया जा सकता है। परिषद कुछ सवालों को हल कर सकती है और बेहतर निर्णय में मददगार हो सकती है। व्यापक स्तर पर इससे नीतिगत प्रबंधन सुधरेगा, बाजार का भरोसा बढ़ेगा और सरकार की जोखिम प्रबंधन की क्षमता बढ़ेगी।
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