भारत में वैकल्पिक निर्यात रणनीति की जरूरत | अमिता बत्रा / March 15, 2022 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कुछ दिनों पहले एक साक्षात्कार में सुझाव दिया था कि सलाहकार, विधि, दवा, लेखा आदि पेशेवर सेवाओं के साथ सूचना-प्रौद्योगिकी संबद्ध एवं समर्थित सेवाएं (आईटीईएस) भारत की निर्यात नीति का प्रमुख हिस्सा होना चाहिए। राजन ने कहा कि विनिर्माण की जगह इन सेवाओं को निर्यात में प्रमुखता दी जानी चाहिए।
यह सच है कि देश से होने वाले निर्यात में आईटीईएस, सॉफ्टवेयर और सलाहकार सेवाओं की बड़ी हिस्सेदारी रही है। कोविड-19 खासकर महामारी के समय यह हिस्सेदारी और बढ़ गई। मगर निर्यात बढ़ाने में इन सेवाओं को प्रमुख हथियार बनाने की बात पूरी तरह तर्कसंगत नहीं लगती है। पेशेवर सेवाओं में अधिक प्रशिक्षित कर्मियों की जरूरत होती है, इसलिए ये वर्तमान में देश के समक्ष बढ़ती बेरोजगारी एवं अनौपचारिक क्षेत्र में कम प्रशिक्षित लोगों के समक्ष रोजगार की कमी की समस्या दूर नहीं कर सकती हैं। देश में अनौपचारिक क्षेत्र की रोजगार सृजन में 85 प्रतिशत तक हिस्सेदारी होती है। कोविड महामारी के दौरान अनौपचारिक क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हैं। इस वजह से संरचनात्मक समस्याएं और गहरा गई हैं। अधिक कौशल की जरूरत वाली गतिविधियों से ऊंची योग्यता वाले सलाहकारों और पेशेवरों की मांग तो बढ़ेगी मगर इससे महामारी के दौरान दिखा असमान सुधार का संकट और विकराल हो जाएगा।
इसके अलावा इन सेवाओं के उदारीकरण के लिए आवश्यक नियामकीय नीतियों में अन्य बातों के अलावा डेटा निजता से जुड़े विषय, भंडारण और स्थानीयकरण के मुद्दे शामिल हैं। तरजीही व्यापार समझौतों (पीटीए) में और बहुपक्षीय स्तर पर भारत के लिए इन विषयों पर अपनी बात रखना चुनौतीपूर्ण रहा है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के छत्र तले इन सेवाओं या इनसे जुड़े नियमों के उदारीकरण के लिए बहुपक्षीय समूहों द्वारा शुरू की गई चर्चा पूर्व में सदस्य अर्थव्यवस्थाओं में पीटीए के प्रावधानों पर आधारित रही है। भारत ने डब्ल्यूटीओ के तहत बहुपक्षीय समझौतों की वैधता पर संदेह जताया है। भारत कॉम्प्रिहेन्सिव ऐंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (सीपीटीपीपी) जैसे बड़े क्षेत्रीय व्यापार समझौतों का सदस्य नहीं रहा है। सीपीटीपीपी जैसे संगठनों ने डब्ल्यूटीओ से इतर डिजिटल व्यापार क्षेत्र में उदारीकरण में अहम भूमिका निभाई है। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह रही है कि 'मोड-4'/पेशेवरों की आवाजाही भारत के लिए तरजीही व्यापार समझौतों और डब्ल्यूटीओ दोहा डेवलपमेंट एजेंडा में सेवा क्षेत्रा पर थमी चर्चा की एक प्रमुख वजह रही है।
भारत-जापान समग्र आर्थिक साझेदारी सहित द्विपक्षीय समझौतों में 'मोड-4' उदारीकरण का विषय शामिल किया गया है मगर पेशेवरों की वास्तविक आवाजाही में कई तरह की चुनौतियां पेश आई हैं। इनमें वीजा मिलने से लेकर भाषा और जीवन-शैली से जुड़ीं बाधाएं हैं। इन बातों को ध्यान में रखते हुए भारत को सेवाओं के निर्यात को लेकर अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करना चाहिए। भारत के लिए विनिर्माण क्षेत्र के निर्यात का अभिन्न हिस्सा समझे जाने वाली सेवाओं पर विचार करने का यह उपयुक्त समय है। देश को सेवा क्षेत्र के निर्यात, उदारीकरण और अंतरराष्ट्रीय संवादों के प्रति एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इस एकीकृत दृष्टिकोण के तहत विनिर्माण को मदद करने वाले अधिक रोजगार सृजित करने वाले सेवाओं पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। यह फिलहाल भारत के लिए अधिक वास्तविक एवं लाभकारी निर्यात रणनीति साबित होगी। मूल्य वद्र्धित आंकड़ों के संदर्भ में वैश्विक व्यापार दर्शाता है कि सेवा क्षेत्र की गतिविधियां किस तरह विनिर्मित वस्तुओं एवं प्रक्रियाओं में समाहित और जोड़ कर दुनिया के दूसरे देशों तक जाती हैं। इसे विनिर्माण के 'सेवाकरण' के नाम से जाना जाता है। इनके तहत जो सेवाएं आती हैं उनमें थोक/खुदरा, वितरण, विपणन, परिवहन, रखरखाव/मरम्मत, तकनीकी समर्थन, वारंटी/बीमा, बिक्री पश्चात सेवाएं, परिवहन और शोध एवं विकास, अभियांत्रिकी, सूचना-प्रौद्योगिकी एवं बैक ऑफिस आदि शामिल हैं। अब अधिक से अधिक कंपनियां बढ़ती प्रतिस्पद्र्धा से निपटने और अपने उत्पादों में मूल्य वद्र्धन के लिए इन सेवाओं की पेशकश करती है। कुछ विनिर्मित वस्तुएं तभी बेची जा सकती हैं जब उपयुक्त श्रम सेवाएं भी इनके साथ जुड़ी होती हैं। स्थापना, मरम्मत एवं रखरखाव की आवश्यकता वाले उपकरण इसका एक उहदारण हैं।
वर्ष 2000 से 2018 तक सकल विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात में कुल कारोबारी सेवाओं का मूल्य-वद्र्धित योगदान लगभग चार गुना (ओईसीडी और जी20 अर्थव्यवस्थाओं) बढ़ गया। व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (अंकटाड) में जिक्र किया गया है कि कुछ खास अर्थव्यवस्थाओं के संदर्भ में विनिर्माण के तहत सेवाओं के मिश्रण पर विचार किया जाता है तो कुल निर्यात में सेवा क्षेत्र का मूल्य वद्र्धन दो तिहाई तक पहुंच जाता है। गतिशील वैश्विक मूल्य शृंखला (जीवीसी) के क्षेत्रों जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स और मोटर वाहन में सेवाकरण तो बढ़ा ही है साथ ही खाद्य प्रसंस्करण एवं रसायन आदि खंडों में भी इसकी उपस्थिति में इजाफा हुआ है। खाद्य प्रसंस्करण और रसायन क्षेत्र भारत में अग्रणी निर्यात क्षेत्र हैं।
ओईसीडी अर्थव्यवस्थाओं के बाद जिन देशों के सकल निर्यात के मूल्य-वद्र्धन में समाहित सेवाओं की अधिक हिस्सेदारी दिखती है उनमें तुर्की, पोलैंड और चीन शामिल हैं। इस विषय पर हाल में प्रकाशित आलेख दर्शाते हैं कि ऐसी सेवाएं किस तरह विनिर्माण क्षेत्र की उत्पादकता, निर्यात क्षमताएं और रोजगार सृजन क्षमता बढ़ाने में मदद कर रही हैं। कई अध्ययनों में पाया गया है कि प्रमुख विनिर्माण कार्यों की तुलना में सहायता सेवाओं/विनिर्माण संबंधित रोजगार में कर्मियों की संख्या अधिक बड़ी है। सेवाओं की आपूर्ति पर अनुचित पाबंदी और विदेशी सेवाओं या वस्तुओं के प्रवेश पर पक्षपात पूर्ण नियमों से इन सेवाओं से सकारात्मक आर्थिक लाभ सीमित हो जाते हैं।
2021 के आंकड़ों के अनुसार भारत का सेवा व्यापार प्रतिबंध सूचकांक (एसटीआरआई) ओईसीडी के ज्यादातर देशों की तुलना में अधिक है। सर्वाधिक रोजगार देने वाली रेल से माल ढुलाई एवं वितरण सेवाओं पर भारत में तुलनात्मक रूप से अधिक प्रतिबंध लगे हैं। 2014 से इन क्षेत्रों में भारत के एसटीआरआई स्तर में लगभग कोई बदलाव नहीं आया है। 2018 में भारत के सकल निर्यात में परिवहन एवं भंडारण औरी थोक/खुदरा जैसी अधिक रोजगार देने वाली सेवाओं का मूल्य वद्र्धन योगदान सूचना एवं संवाद और कंप्यूटर, प्रोग्रामिंग, सलाह एवं सूचना सेवाओं के मूल्य वद्र्धन योगदान का क्रमश: एक तिहाई और आधा रहा है।
इन क्षेत्रों में निजी/विदेशी नियंत्रण और भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करने वाला नियामकीय ढांचा तैयार करने से न केवल सेवाएं बढ़ेंगी बल्कि विनिर्माण उत्पादकता में भी इजाफा होगा। वैश्विक मूल्य शृंंखला और समय रहते भंडार प्रबंधन के लिए सक्षम परिवहन एवं वितरण सेवाएं महत्त्वपूर्ण हैं। इन क्षेत्रों की अधिक उत्पादकता स्वत: ही विपणन एवं संबंधित गतिविधियों तक पहुंच जाती है। भारत के मामले में रेल माल ढुलाई सेवा क्षेत्र में सुधार पर ध्यान देने से 'मेक इन इंडिया' पहल के तहत समर्पित माल 'गलियारा' ऌपरियोजना को भी मदद मिल सकती है। माल परिवहन की क्षमता भी इस प्रक्रिया में बढ़ जाएगी।
लिहाजा सेवाओं और विनिर्माण को एक दूसरे का पूरक समझा जाना चाहिए, न कि इन्हें अलग-अलग देखना चाहिए। सेवाओं को विनिर्माण क्षेत्र का अभिन्न हिस्सा मानने वाली और इसी सिद्धांत के आधार पर नियामकीय एवं व्यापार नीतियां तैयार करने वाली निर्यात रणनीति के कई लाभ होंगे। इससे उत्पादकता बढऩे के साथ-साथ विनिर्माण क्षेत्र में देश अधिक प्रतिस्पद्र्धी बनेगा और रोजगार सृजन की क्षमता भी बढ़ेगी। कोविड महामारी के बाद मजबूत सुधार दर्ज करने के लिए ये सभी आवश्यक हैं।
(लेखिका जेएनयू में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में प्राध्यापक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)
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