लड़ाकू विमानों के लिए भी हो आत्मनिर्भर योजना | दोधारी तलवार | | अजय शुक्ला / March 14, 2022 | | | | |
भारत ने जब से लड़ाकू विमान डिजाइन करने, विकसित करने और उन्हें बनाना शुरू किया है, तब से उसने 1960 के दशक में 147 एचएफ-24 मारुत लड़ाकू विमान और नई सदी की शुरुआत के बाद करीब 40 तेजस हल्के युद्धक लड़ाकू विमान तैयार किए हैं। इस दौरान भारतीय विमानन इंजीनियरों तथा तकनीकविदों ने कई तरह की विशेषता और कौशल हासिल किए हैं।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ), हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स (एचएएल), नैशनल एरोस्पेस लैबोरेटरीज (एनएएल) और निजी क्षेत्र की आईटी इंजीनियरिंग कंपनियों के साथ भारत ने विमानन डिजाइन, उड़ान और नियंत्रण विधि आदि आधुनिक लड़ाकू विमानों के लिए जरूरी अनेक तरह के कौशल में महारत हासिल की है। इसके बावजूद जब बात इन स्वदेशी विमानों के इंजन की आती है तो प्रश्न यही होता है कि इंजन कहां से खरीदा जाए? ऐसी तमाम वजह हैं जिनकी बदौलत हमें इंजन विदेश से खरीदना होता है।
दुनिया की बड़ी इंजन निर्माता कंपनियों अमेरिका की प्रैट ऐंड व्हिटनी, जनरल इलेक्ट्रिक और हनीवेल, यूरोप की रॉल्स-रॉयस और स्नेक्मा और रूस की क्लिमोव और एनपीओ सैटर्न आदि भारत को इंजन बेचने से हिचकिचाती हैं। ऐसा तकनीकी संरक्षण के मसले की वजह से है। विमानन इंजन की रिवर्स इंजीनियरिंग करना कठिन है। इस क्षेत्र की अहम तकनीक उच्च ताप सहन करने वाली धातुओं तथा विशिष्ट इंजीनियरिंग से संबद्ध हैं जिनकी नकल कर पाना लगभग असंभव है।
वर्षों के प्रयास के बावजूद चीन भी उच्च क्षमता वाले विमानन इंजन की अनुकृति नहीं बना सका। दो दशक तक गिझाऊ एयरक्रॉफ्ट इंडस्ट्री कॉर्पोरेशन ने ताइशान टर्बोफैन इंजन बनाने का प्रयास किया ताकि उसे चीनी-पाकिस्तानी जेएफ-17 थंडर लड़ाकू विमान में इस्तेमाल किया जा सके लेकिन ताइशान का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा।
भारत में भी ऐसा नहीं हो रहा। बीते दशकों में डीआरडीओ की विमानन इंजन प्रयोगशाला यानी गैस टर्बाइन रिसर्च इस्टैब्लिशमेंट (जीटीआरई)- ने तेजस हल्के लड़ाकू विमान के लिए कावेरी इंजन के विकास में कुछ खास प्रगति नहीं की है। तेजस को 82-90 किलोन्यूटन (केएन) शक्ति का इंजन चाहिए जबकि कावेरी ने रूस में परीक्षण के दौरान केवल 72 केएन क्षमता प्रदर्शित की। यह कमी केवल तकनीकी अक्षमता की वजह से नहीं है बल्कि सीमित संसाधन भी इसका कारण हैं। वैश्विक मूल उपकरण निर्माता जहां इंजन विकास पर अरबों डॉलर की राशि व्यय करते हैं, वहीं रक्षा मंत्री ने दिसंबर 2012 में संसद को बताया था कि कावेरी इंजन कार्यक्रम को शोध एवं विकास के लिए केवल 2,839 करोड़ रुपये दिए थे जिसमें इंजीनियरिंग और परीक्षण व्यवस्था सभी शामिल थे।
रक्षा मंत्रालय का अनुमान है कि वह अगले दो दशक में 3.4 लाख करोड़ रुपये मूल्य के इंजन खरीदेगा। लेकिन सरकारें इंजन विकास की अनदेखी करती आ रही हैं। जबकि नए सैन्य विमान की लागत का एक तिहाई अकेले इंजन का मूल्य होता है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आत्मनिर्भर भारत पर ध्यान दिया है और रक्षा बजट में 68 फीसदी हिस्सा घरेलू खरीद के लिए निर्धारित है। आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करने के लिए इंजनों का घरेलू निर्माण जरूरी है।
भारत-फ्रांस शक्ति इंजन पर भी यह बात लागू होती है जो भारत के मौजूदा हेलीकॉप्टर कार्यक्रम के लिए जरूरी है। एचएएल दो इंजन वाले 400 ध्रुव और 180 हल्के लड़ाकू विमान बनाएगा। इसके अलावा 400 एक इंजन वाले हल्के उपयोगी हेलीकॉप्टर मौजूदा चेतक और चीता का स्थान लेंगे। प्रत्येक हल्के उपयोगी हेलीकॉप्टर की पूरी सेवा अवधि में 3 से 3.5 इंजन लगते हैं जबकि दोहरे इंजन वाले हेलीकॉप्टरों को 6-7 इंजनों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार कुल मिलाकर 5,000 शक्ति इंजनों की आवश्यकता हो सकती है। अगर एक इंजन की कीमत 8-10 करोड़ रुपये मान ली जाए तो इन इंजनों पर 40,000 से 50,000 करोड़ रुपये की राशि व्यय करनी होगी। मुद्रास्फीति तथा खराब होने वाले कलपुर्जों की कीमत जोड़ दी जाए यह राशि आराम से 50,000 करोड़ रुपये का स्तर प्राप्त कर जाएगी।
विकास और निर्माण के अलावा इंजन कार्यक्रमों के लिए जांच की सुविधा भी आवश्यक है। जब डीआरडीओ को कावेरी के परीक्षण की आवश्यकता हो तो उसे पूरी टीम के साथ रूस ले जाना पड़ता है। वहां उसे रूसी आईएल-76 विमान में फिट कर उसकी जांच की जाती है। परीक्षण उड़ान के पहले मॉस्को के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एविएशन मोटर्स में उसकी जांच की जाती है। भारत में ऐसे परीक्षण केंद्र बनाने से हजारों करोड़ रुपये बचेंगे।
पहला कदम यह होगा कि डीआरडीओ फ्रांसीसी इंजन निर्माता सफ्रान के साथ साझेदारी करे और एडवांस मीडियम कांबैट एयरक्राफ्ट का इंजन बनाए। भारत सरकार जीटीआरई को सफ्रान से इंजन तकनीक हासिल करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है ताकि कावेरी इंजन को तैयार कर तेजस मार्क दो को गति प्रदान की जा सके। सफ्रान भारत को इंजन तकनीक देने की अनिच्छुक रही है। वह जीटीआरई को कावेरी के विकास के लिए तकनीकी मदद के रूप में ऑफसेट जवाबदेही निभाना भी नहीं चाहती।
अमेरिकी सरकार से कहा जा रहा है कि वह उन्नत इंजन तकनीक जारी करने पर प्रतिबंध कम करे ताकि भारत को जनरल इलेक्ट्रिक के एफ-414 इंजन पाने में दिक्कत न हो। यह इंजन तेजस मार्क 2 को शक्ति प्रदान कर सकता है। भारत पहले ही कम शक्तिशाली जीई एफ-404 का इस्तेमाल तेजस मार्क 1 के लिए कर रहा है लेकिन मार्क 1 भारी और बड़ा विमान है जिसे शक्तिशाली एफ-414 की जरूरत होगी। अतीत में अमेरिका ने जेट इंजन तकनीक पर भारत से सहयोग से इनकार किया है लेकिन अब राजनीतिक स्तर पर इसमें रुचि दिख रही है और जानकारी के मुताबिक अमेरिका पुन: संभावनाओं पर विचार कर रहा है।
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