बढ़ेगा उर्वरक सब्सिडी का बोझ | अरूप रायचौधरी / नई दिल्ली March 13, 2022 | | | | |
चालू वित्त वर्ष में उर्वरक सब्सिडी पर केंद्र सरकार का बोझ और बढ़ सकता है क्योंकि रूस और यूक्रेन में युद्घ छिडऩे के कारण जिंसों के दाम ऊंचे बने हुए हैं। वित्त वर्ष 2022 में उर्वरक सब्सिडी बिल 79,530 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया था जिसे संशोधित कर 1.4 लाख करोड़ रुपये कर दिया गा था। हालांकि इसमें 10,000 से 15,000 करोड़ रुपये का और इजाफा हो सकता है।
एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, 'इस साल हमारा उर्वरक सब्सिडी का बोझ बढ़ेगा। हम इसमें 10,000 से 15,000 करोड़ रुपये या इससे अधिक बढऩे का अनुमान लगा रहे हैं।' वित्त र्वा 2022 के संशोधित अनुमान उतने पर ही बना रहेगा और करीब 15,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त उर्वरक सब्सिडी होने से राजकोषीय घाटे पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि संशोधित अनुमान सकल घरेलू उत्पादक का करीब 6.9 फीसदी ही रहेगा। चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को लेकर सबसे बड़ा मसला यह है कि सरकार 31 मार्च से पहले भारतीय जीवन बीमा निगम का आईपीओ लाती है या नहीं।
खबरों के मुताबिक अगले वित्त वर्ष में भी उर्वरक सब्सिडी बजट अनुमान से अधिक रह सकता है क्योंकि जिंसों के दाम काफी बढ़ गए हैं। हालांकि नीति निर्माता अभी संशोधित आंकड़ा जारी करने के इच्छुक नहीं हैं। वित्त वर्ष 223 में उर्वरक सब्सिडी का बोझ 1.05 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगायया गया है।
उक्त अधिकारी ने कहा, 'वित्त और विनियोग विधेयक अभी लोक सभा में पारित नहीं हुआ है, ऐसे में तकनीकी रूप से बजट के आंकड़ों को बदला जा सकता है। हालांकि केवल एक आंकड़े को ही नहीं बदलना होगा बल्कि कुल व्यय सहित कई आंकड़ों में फेर-बदल करना होगा।' एक शख्स ने कहा, 'स्थिति अनिश्चितता भरी है। यूरोप ने रूस के हाइड्रोकार्बन पर प्रतिबंध नहीं लगाया है। हमें पता नहीं है कि जिंसों के दाम अगले दो महीने, छह महीने या आठ महीने में कहां रहेंगे।'
वित्त वर्ष 2023 के बजट अनुमान में उर्वरक सब्सिडी को कम करके आंका गया है जबकि यूरिया के दाम में लगातार तेजी देखी जा रही है और कच्चा तेल एवं गैस के दाम में वृद्घि से अन्य कच्चे माल जैसे कि फॉस्फेट और अमोनिया के दामों पर भी दबाव देखा जा सकता है। अधिकारियों ने पहले बताया था कि उर्वरक सब्सिडी के लिए 1.50 लाख करोड़ रुपये की जरूरत हो सकती है।
अधिकारियों को उम्मीद है कि यूरिया के दाम में कुछ कमी आ सकती है, क्योंकि नवंबर 2021 से वैश्विक बाजारों में इसके दाम करीब 4 फीसदी कम हुए हैं और डीएपी 900 डॉलर प्रति टन के भाव पर बिक रहा है। रूस पोटाश का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है जिसका इस्तेमाल डीएपी बनाने में किया जाता है।
व्यापार से जुड़े सूत्रों ने कहा कि भारत के लिए गैस के दाम मौजूदा 16 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू से बढ़कर 18 डॉलर तक पहुंच सकती है। मोटे अनुमान के अनुसार गैर के दाम में 1 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू की वृद्घि से यूरिया सब्सिडी की आवश्यकता 4,000 से 5,000 करोड़ रुपये बढ़ जाती है। इसके अलावा इस बात की भी चर्चा है कि भारत रूस के उर्वरक निर्माताओं से डीएपी और एनसीके लिए तीन साल के अनुबंध के लिए मुलाकात कर सकता है। लेकिन मौजूदा संकट के कारण इस पर बातचीत अटक सकती है।
यूक्रेन भी भारत की कुल जरूरत का करीब 10 फीसदी उर्वरक की आपूर्ति करता है। लेकिन युद्घ की वजह से वहां से आपूर्ति प्रभावित हुई है। हालांकि सरकार को भरोसा है कि मौजूदा संकट का असर उर्वरक सब्सिडी से इतर अन्य अनुमानों पर ज्यादा नहीं पड़ेगा। अधिकारियों ने पेट्रोलियम सबिसडी बढ़ाने की संभावना पर कोई बात नहीं की।
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