देश में सूक्ष्म वित्त से जुड़े भ्रम एवं वास्तविकता | बैंकिंग साख | | तमाल बंद्योपाध्याय / March 09, 2022 | | | | |
इन दिनों भारत में सूक्ष्म वित्त कंपनियों में निवेश करने वाले कुछ परंपरागत निवेशक हतोत्साहित दिख रहे हैं। उनका कहना है कि सूक्ष्म ऋण की मदद से लोगों के जीवन में बदलाव आने की बातें बढ़ा-चढ़ा कर की जाती हैं जबकि जमीनी हकीकत कुछ और है। निवेशक शुरुआती कुछ वर्षों में तो लाभ कमाते हैं मगर बाद के वर्षों में विभिन्न कारण से अपनी रकम गंवा बैठते हैं। इन कारणों में राज्य चुनावों के दौरान ऋ ण माफी में राजनीतिक हस्तक्षेप, प्राकृतिक आपदा और अब कोविड-19 महामारी शामिल हैं।
वे यह जानने के लिए भी उत्सुक हैं कि सूक्ष्म या अत्यधिक छोटे ऋण ने किस तरह गरीबी उन्मूलन में मदद की है। अनौपचारिक वित्तीय स्रोतों पर गरीब लोगों की निर्भरता कम हुई है मगर सूक्ष्म वित्त कंपनियां आंशिक रूप से ही उनकी जरूरतें पूरी करती हैं। लोगों को स्वास्थ्य, आपातकालीन जरूरतें और शिक्षा के लिए अनौपचारिक स्रोतों से ऋण लेना पड़ता है। सूक्ष्म वित्त संस्थान (एमएफआई) खासकर एनबीएफसी-एमएफआई एवं बैंक केवल सृजनात्मक या आय अर्जित करने वाले साधनों के लिए ऋण देते हैं। बांग्लादेश में एमएफआई बेहतर काम कर रहे हैं और लोगों को गरीबी से निकालने में मदद कर रहे हैं। इंडोनेशिया में तो एमएफ आई निवेश पर आकर्षक प्रतिफल भी दे रहे हैं। पिछले वर्ष अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अल्फ्रेड शिपके ने कहा था कि दुनिया में 1.90 डॉलर प्रति दिन आय पर जीवन-यापन करने वालों की संख्या बढ़कर 10 करोड़ हो गई है और इसका लगभग आधा हिस्सा भारत में है। विश्व बैंक के अनुसार भारत में गरीबी दर कम होगी मगर तब भी यह 10 प्रतिशत के इर्द-गिर्द रहेगी। सूक्ष्म वित्त उद्योग पर नजर रखने वाले संगठन माइक्रोफाइनैंस इंस्टीट्यूशंस नेटवर्क (एमएफआईएन) का दावा है कि पिछले एक दशक के दौरान वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में सूक्ष्म वित्त ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस संगठन के अनुसार यह उद्योग लोगों को उनके घर तक ऋण एवं बीमा सुविधाएं मुहैया करा रहा है और सूक्ष्म-उद्यम विकास के जरिये लोगों को रोजगार भी दे रहा है।
मार्च 2012 और दिसंबर 2021 के बीच सूक्ष्म वित्त उद्योग का सकल ऋण खाता 17,264 करोड़ रुपये से बढ़कर 2.51 लाख करोड़ रुपये हो गया। कर्जधारकों की संख्या भी बढ़कर 20 करोड़ से 57 करोड़ हो गई है। एमएफआईएन का कहना है कि इस उद्योग में काम करने वाले लोगों की संख्या भी पिछले एक दशक में 69,000 से बढ़कर 4,00,000 हो गई है। एमएफआईएन ने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि 2018-19 के दौरान सूक्ष्म वित्त ने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से करीब 1.28 करोड़ रोजगार सृजित किए। करीब 12 करोड़ लोगों को बीमा सुविधा (ऋण एवं जीवन दोनों के लिए) मिली। सूक्ष्म वित्त उद्योग से ऋण लेने वाली 98 प्रतिशत ग्राहक महिलाएं हैं।
जितने ऋण आवंटित हो रहे हैं उनमें 90 प्रतिशत सीधे बैंक खातों में डाले जा रहे हैं और ऋण भुगतान भी तेजी से डिजिटल माध्यम से हो रहा है। नकदी रहित ऋण आवंटन से लोगों में बचत करने की आदत भी विकसित हो रही है। इस उद्योग पर नजर रखने वाले एक अन्य संगठन सा-धन का कहना है कि मार्च 2010 से सूक्ष्म वित्त संस्थानों के शाखाओं की संख्या लगभग दोगुनी-11,459 से 20,065- हो गई है। हां, इन संस्थानों की संख्या में कमी आई है और यह 264 से कम होकर 208 रह गई है। इन आंकड़ों की पृष्ठभूमि में एक प्रश्न उठता है कि सूक्ष्म वित्त संस्थानों की वर्तमान स्थिति को नकारात्मक या सकारात्मक नजरिये से देखा जाना चाहिए? भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सूक्ष्म वित्त संस्थानों के संबंध में अपनी नीति तैयार कर ली है। जून 2021 में केंद्रीय बैंक ने सूक्ष्म वित्त नियमन पर एक परामर्श पत्र जारी किया किया था जिसमें बड़े बदलावों का जिक्र किया गया था। इस दस्तावेज में वह शर्त समाप्त करने की योजना है जिसके तहत दो से अधिक एनबीएफसी-एमएफआई किसी एक कर्जधारक को ऋण नहीं दे सकते हैं और ऋण की रकम परिवार के कर्ज-आय के अनुपात पर आधारित होगी। आरबीआई सभी बकाया ऋणों पर ब्याज और मूलधन का भुगतान कर्जधारक के परिवार की आय का 50 प्रतिशत तक सीमित रखना चाहता है।
मगर आरबीआई ने यह नहीं कहा है कि सूक्ष्म कर्जधारक कहलाने के लिए किसी परिवार की अधिकतम आय कितनी होगी। वर्तमान में ऋण की सीमा 1.25 लाख रुपये (पहले चक्र में यह 75,000 रुपये से अधिक नहीं हो सकती है) है। इसे बढ़ाए जाने की जरूरत है।
कई सूक्ष्म कर्जधारकों को अधिक रकम की जरूरत है और अगर हम उन्हें महाजनों के चंगुल में जाने से बचाना चाहते हैंं तो उन्हें और रकम दी जानी चाहिए।
आरबीआई का प्रस्ताव वह प्रावधान भी हटाने के पक्ष में है जिनमें ऋण का 50 प्रतिशत हिस्सा आय सृजन के लिए इस्तेमाल होना चाहिए। आय सृजन करने वाले और उपभोग ऋण के बीच अंतर समाप्त किया जा रहा है। कर्जदाता शिक्षा, स्वास्थ्य खर्चों, पारिवारिक परिसंपत्ति, उपभोग एवं यहां तक कि महाजनों से ऊंची ब्याज दर पर लिए गए ऋण के भुगतान के लिए ऋ ण का इस्तेमाल कर सकते हैं। आरबीआई ऋण दरों पर तय सीमा भी समाप्त करना चाहता है। यह बाजार पर छोड़ दिया जाएगा। ये सभी स्वागतयोग्य कदम हैं क्योंकि इनसे सूक्ष्म वित्त उद्योग में दोहराव बढ़ जाएगा और इस उद्योग को नई जगहों में विस्तार करने में मदद मिलेगी। आरबीआई को यह मौजूदा नियम भी बदलना चाहिए कि एनबीएफसी-एमएफआई अपने 85 प्रतिशत ऋण बिना किसी गारंटी के देंगे। कुछ ऋण के एवज में कर्जधारकों से क्यों गारंटी नहीं लेनी चाहिए? बैंक समाज में पिछड़े वर्ग को प्राथमिकता के आधार पर ऋण देते हैं मगर वे सभी असुरक्षित नहीं होते हैं। ऋण की अवधि दो वर्ष तय की गई है। अगर हम गरीबी दर में कमी लाना चाहते हैं तो बड़े ऋण के मामले में भी यह अवधि बढ़ाई जानी चाहिए।
(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक, लेखक और जन स्मॉल फाइनैंस बैंक में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)
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