यह अच्छी खबर है कि आखिरकार देश के नीतिगत हलकों में समुचित कार्बन क्रेडिट कारोबार प्रणाली की समस्या का हल तलाश करने के प्रयास में रुचि ली जा रही है जहां किसानों की पहुंच हो। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान निजी क्षेत्र की एक कंपनी के साथ साझेदारी करके कार्बन क्रेडिट का एक बाजार तैयार कर रहा है जो किसानों पर केंद्रित होगा। ऐसे बाजार के पीछे का सिद्धांत एकदम सहज है। किसानों को यह दर्शाकर कारोबार करने लायक कार्बन क्रेडिट मिलता है कि वे कार्बन को अलग कर रहे हैं या कार्बन उत्सर्जन कम कर रहे हैं। ऐसे कदमों में पौधरोपण, जैविक खेती जैसी जलवायु संवेदी कृषि तकनीक अपनाना आदि शामिल हैं। ऐसे प्रत्येक कदम से निश्चित मात्रा में कार्बन या तो अलग होगा यानी वातावरण से हटे या उसका उत्सर्जन नहीं होगा जो कि सामान्य परिस्थितियों में होता। इस क्रेडिट को बाजार में बेचा जा सकता है और कार्बन के इस्तेमाल वाली कंपनियां मसलन उर्वरक और सीमेंट क्षेत्र की कंपनियां अपनी कार्बन इस्तेमाल की छाप कम करने के लिए इसे खरीदेंगी। इस प्रकार कार्बन की कीमत निर्मित होगी जिसे बाजार में प्रयोग किया जा सकता है। आशा की जानी चाहिए कि ऐसे प्रयास सफल होंगे लेकिन इससे संबंधित बाधाओं पर भी ध्यान देना होगा। अन्य देशों में बेहतर विकसित कार्बन क्रेडिट बाजार होने के बावजूद वहां किसानों को बाजार तक पहुंच बनाने में दिक्कत हुई। एक हालिया नीलामी में माइक्रोसॉफ्ट ने लाखों की तादाद में कार्बन क्रेडिट खरीदने की आशा जताई लेकिन वह अमेरिकी किसानों से केवल 200,000 कार्बन क्रेडिट खरीद सकी क्योंकि प्रमाणन और निगरानी की समस्या थी। ऐसे में बाजार में डिजाइन की अहम समस्या है: इस बात की विश्वसनीय निगरानी तैयार करना कि कार्बन का उत्सर्जन कम हो रहा है। यदि कार्बन के उत्सर्जन में कमी आ रही है तो यह सुनिश्चित करना होगा कि ये कदम नहीं उठाने पर कितना कार्बन उत्सर्जन हुआ होता। वहीं कार्बन को अलग करने की बात करें तो इसकी पुष्टि करनी होगी। उदाहरण के लिए उक्त जमीन पर दोबारा कभी खेती नहीं की गई क्योंकि खेती होती तो वातावरण में कार्बन उत्सर्जन होता। अतीत में पौधरोपण जैसे साधारण कदमों की निगरानी करने में भी समस्या आई है। एक बड़ा उदाहरण दो दशक पुराना है जब ब्रिटिश बैंड कोल्ड प्ले ने दक्षिण भारत में आम के 10,000 पौधे लगाकर अपने कार्बन उत्सर्जन की भरपायी करनी चाही थी। बाद में पता चला कि पौधरोपण के बाद जल्दी ही इनमें से आधे पौधे सूख गये क्योंकि वहां का वातावरण उनके अनुकूल नहीं था, उन्हें लगाने के दौरान सही तकनीक नहीं इस्तेमाल की गई और सिंचाई तथा उर्वरकों आदि की कमी रही। ऐसे में किसानों के लिए प्रोत्साहन आसान नहीं है और बाजार को कारगर बनाने के लिए इस दिशा में काम करना होगा। हालांकि इसमें संभावनाएं भी हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वैच्छिक कार्बन क्रेडिट कारोबार से भारतीय किसानों को यह सुविधा मिलेगी कि वे दुनिया के अन्य स्थानों की कंपनियों से संभावित राजस्व जुटा सकें जो अपनी गतिविधियों के बदले कार्बन ट्रेडिंग करना चाहती हैं। बैंक ऑफ इंगलैंड के पूर्व गवर्नर मार्क कार्नी एक ऐसे कार्य बल का नेतृत्व कर रहे हैं जो स्वैच्छिक कार्बन बाजारों का आकार बढ़ाने पर काम कर रहा है और ऐसेे सीमा पार कारोबार को आसान बनाना चाहता है। फिलहाल वैश्विक स्वैच्छिक बाजार महज एक अरब डॉलर का है। गत वर्ष आयोजित सीओपी26 जलवायु सम्मेलन में इन क्रेडिट को पेरिस समझौते के अकार्बनीकरण लक्ष्यों के अनुरूप संतुलित करने की प्रणाली पेश की गई थी। परंतु उस समय कार्यकर्ताओं ने कहा था कि ये प्रयास औद्योगिक उत्सर्जन को लेकर छद्म रचने के समान हैं। इन चिंताओं को निराधार साबित करना नीति निर्माताओं, निजी क्षेत्र और नियामकों पर निर्भर करता है।
