गतिविधियों को रोजगार से अलग कर पता लगेगा रोजगारों का पेशा | श्रम-रोजगार | | महेश व्यास / March 03, 2022 | | | | |
जमीनी रिपोर्टिंग कर रहे संवाददाताओं और टैक्सी चालकों से बात करके निष्कर्ष निकालने वाले चुनाव विश्लेषक ऐसी तस्वीर पेश करते हैं जहां बेरोजगार गलियों के मुहाने पर, चाय के ठेलों पर या सिगरेट की दुकानों पर छोटे समूहों में खड़े नजर आते हैं। यह बेरोजगारों का एकदम निराधार चित्रण भी नहीं है, लेकिन यह पूरी तरह सही भी नहीं है। अधिकांश युवा बेरोजगार बाहर खड़े होकर गप्पें नहीं लगाते। संवाददाता भी लोगों से यह नहीं पूछते कि वे दूसरों के साथ घूमफिर क्यों रहे हैं। आमतौर पर यह माना जाता है कि ऐसा इसलिए है कि उन्हें उपयुक्त रोजगार नहीं मिला है और उनके पास करने को और कोई काम नहीं है। हम इसी विषय पर बात करेंगे।
नुक्कड़ों और चाय की दुकानों की बात करें तो ऐसा लगता है कि यह दलील महिलाओं के साथ भेदभाव करती है। बेरोजगारों के उपरोक्त खांचे में आने वाले लोग आमतौर पर पुरुष हैं। महिलाएं उस तरह बाहर निकलकर गपशप नहीं करतीं जिस तरह पुरुष करते हैं। दिलचस्प बात है कि जमीनी रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार और चुनाव विश्लेषक भी ज्यादातर पुरुष ही हैं। देश में लाखों की तादाद में बेरोजगार महिलाएं भी हैं। जिस तरह बेरोजगार पुरुषों के बारे में खबरें आती हैं, वैसे ही शायद बेरोजगार महिलाओं की प्रवृत्तियों को सामने लाने का काम महिला पत्रकारों को करना होगा।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) के कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे (सीपीएचएस) से हमें बेरोजगारों के पेशे के बारे में समझने में मदद मिलती है। बेरोजगार अक्सर यूंही बेमतलब दोस्तों के साथ नहीं घूमते। उनमें से अधिकांश खासे व्यस्त रहते हैं। और महिलाएं जो चौक-चौराहों पर नहीं नजर आतीं, वे भी काफी व्यस्त रहती हैं। हम इस सवाल का जवाब दे सकते हैं कि बेरोजगार क्या करते हैं, क्योंकि सीपीएचएस रोजगार की स्थिति के प्रश्न को एक अन्य सवाल के साथ नहीं मिलाता। खासतौर पर यह रोजगारशुदा/बेरोजगारी के दर्जे को गतिविधियों के साथ नहीं मिलाता।
किसी व्यक्ति के रोजगारशुदा होने की स्थिति कुछ अन्य गतिविधियों से संबद्ध होती है, मसलन नियोक्ता होना अथवा कर्मचारी होना या फिर स्वरोजगार करना। जबकि बेरोजगारी की स्थिति के साथ यह आवश्यक नहीं है कि उसके साथ कुछ अन्य गतिविधियां जुड़ी हों, बशर्ते कि हम दोस्तों के साथ घूमने-फिरने को गतिविधि न मानते हों। नौकरी के लिए आवेदन करना, परीक्षाएं देना, साक्षात्कार में शामिल होना, काम की तलाश में बाजार में भटकना आदि ऐसी गतिविधियां हैं जो प्राय: बेरोजगारों के साथ जुड़ी रहती हैं। परंतु ऐसी गतिविधियों को अक्सर अन्य गतिविधियों के साथ आजमाया जाता है। उदाहरण के लिए बतौर छात्र भी किसी रोजगार की तलाश की जा सकती है। साथ ही यह भी संभव है कि जब तक किसी को रोजगार न मिल जाए वह घरेलू काम करना जारी रखे या रोजगार सुरक्षित होने तक असंगठित क्षेत्र में अवैतनिक काम करता रहे। इसके अलावा ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बिना सक्रिय ढंग से काम की तलाश किए, काम के लिए उपलब्ध होना बेरोजगारी तो है लेकिन उसे गतिविधि नहीं माना जा सकता।
ऐसे में किसी व्यक्ति की बेरोजगारी की स्थिति को प्रमुख या अनुषंगी 'गतिविधि' के रूप में दर्ज करना भ्रामक हो सकता है। आवधिक श्रम शक्ति सर्वेक्षण की प्रश्नावली के वर्ग 5.1, 5.2 और 6 यही करते हैं। ये सवाल इस प्रश्न का उत्तर नहीं देने देते कि बेरोजगार क्या करते हैं?
सीपीएचएस में नमूने में शामिल हर परिवार का प्रत्येक सदस्य पेशे की प्रकृति से जुड़ा होता है। इसे पेशा नहीं समझ लिया जाना चाहिए क्योंकि उसे सीपीएचएस अलग से दर्ज करता है। पेशे की परिभाषा में कार्यरत और गैर कार्यरत पेशे दोनों आते हैं। व्यापक तौर पर देखा जाए तो पेशे की प्रकृति में किसान, कारोबारी, वेतनभोगी, श्रमिक और छोटे विक्रेता, छात्र, गृह कार्य करने वाले, सेवानिवृत्त एवं गैर कार्यरत तमाम लोग आते हैं। इसके साथ ही हम बेरोजगारों के पेशे की प्रकृति को जांच सकते हैं।
बेरोजगारों की बड़ी आबादी ने अपना पेशा छात्र का बताया। दिसंबर 2021 में समाप्त तिमाही में रोजगार की तलाश कर रहे 77 फीसदी बेरोजगार छात्र थे। यह बात इस आंकड़े से मेल खाती है कि 77 फीसदी बेरोजगार 15 से 24 की आयु के थे।
रोजगार की तलाश कर रहे 15 फीसदी बेरोजगारों ने अपना पेशा घरेलू काम करने वाले का बताया। एक ओर जहां 49 लाख गृहकार्य करने वाले सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रहे थे, वहीं 61 लाख लोग रोजगार के लिए उपलब्ध तो थे लेकिन वे रोजगार की तलाश नहीं कर रहे थे। बेरोजगार महिलाएं गलियों-मोहल्लों में नहीं खड़ी होतीं। वे घरों को संभालती हैं। यह एक बड़ी संभावित श्रम शक्ति है, शायद उन पुरुषों से अधिक जो घरों के बाहर खड़े रहते हैं।
दिसंबर 2021 में समाप्त तिमाही में केवल 0.01 फीसदी घरेलू काम करने वाले रोजगारशुदा थे। यह अनुपात तेजी से गिरा है और 2016 के 0.1 फीसदी से घटकर 2021 में यह 0.01 फीसदी रह गया।
केवल सात फीसदी बेरोजगारों ने कहा कि उनके पास कोई विशिष्ट पेशा नहीं है। शायद ये वे लोग हैं जो गलियों के मुहाने पर या चाय के ठेलों पर खड़े रहते हैं।
दिलचस्प है कि करीब एक फीसदी बेरोजगारों ने कहा कि उनके पेशे की प्रकृति वेतनभोगी कर्मचारी जैसी है। इससे भी दिलचस्प यह है कि अप्रैल-जून 2020 की लॉकडाउन वाली तिमाही में करीब आठ फीसदी बेरोजगारों ने कहा था कि उनके काम की प्रकृति वेतनभोगी कर्मचारियों की है।
अगर हम गतिविधियों को रोजगार के दर्जे से अलग कर पाएं तो हम इस बात को बेहतर समझ पाएंगे कि बेरोजगार क्या करते हैं या फिर जैसा कि सीपीएचएस हमें बताता है, बेरोजगारों के पेशे की प्रकृति क्या है।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
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