खाद्य उत्पादन को जलवायु परिवर्तन का झटका! | संजीव मुखर्जी और श्रेया जय / नई दिल्ली March 02, 2022 | | | | |
जलवायु परिवर्तन पर कई सरकारों की समिति (आईपीसीसी) की हाल की रिपोर्ट में भारत पर पर्यावरण संबंधी वजहों के असर को लेकर धुंधली तस्वीर पेश की गई है, वहीं खासकर कृषि व खेती पर गंभीर असर पडऩे का खतरा बताया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के बुरे असर से भारत में फसलों की पैदावार कम होगी। साथ ही इससे हिलसा और बॉम्बे डक जैसी मछलियों की प्रजाति का उत्पादन कम होगा और कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की क्षमता में कमी आएगी।
आईपीसीसी की रिपोर्ट में फसलों की उत्पादकता के बारे में कहा गया है कि धान, गेहूं, दलहन और मोटे अनाज का उत्पादन 2050 तक करीब 9 प्रतिशत घट सकता है। अगर उत्सर्जन उच्च स्तर पर बना रहता है तो देश के दक्षिणी इलाकों में मक्के का उत्पादन 17 प्रतिशत गिर सकता है।
संयुक्त राष्ट्र के आईपीसीसी ने सोमवार को जारी अपने छठे आकलन रिपोर्ट के दूसरे हिस्से में कहा है, 'फसल उत्पादन में इन व्यवधानों से भारत में कीमतों में बढ़ोतरी, खाद्यान्न खरीदने की क्षमता को लेकर जोखिम बढऩे, खाद्य सुरक्षा व आर्थिक वृद्धि को लेकर जोखिम की उम्मीद है।'
रिपोर्ट में कहा गया है कि मछली पालन के लिए समुद्री पौधों व शैवाल के माध्यम से ऊर्जा मिलना अहम है, इस पर असर पड़ सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की श्रम क्षमता, खासकर कृषि क्षेत्र में, गर्मी बढऩे के साथ कम होगी।
रिपोर्ट में कहा गया है, 'रिपोर्ट में एक अध्ययन से पता चलता है कि अगर मौजूदा उत्सर्जन जारी रहा तो कृषि श्रमिकों की क्षमता में 17 प्रतिशत तक की गिरावट आएगी। अगर उत्सर्जन में कटौती बढ़ाई जाती है तो क्षमता में 11 प्रतिशत की कमी आएगी।'
इसमें यह भी कहा गया है कि ज्यादा उत्सर्जन जारी रहने का कुल मिलाकर असर वैश्विक आय में 23 प्रतिशत की कमी ला सकता है और भारत में 2100 में औसत आमदनी 92 प्रतिशत कम हो जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला, बाजारों, वित्त व व्यापार में बाधा आएगी और भारत में वस्तुओं की उपलब्धता कम होगी जिससे कीमतों में बढ़ोतरी होने के साथ भारत के निर्यात के बाजार पर असर पड़ेगा।
आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान में बढ़ोतरी और पानी की उपलब्धता कम होने की वजह से जलवायु परिवर्तन जल की गुणवत्ता को लेकर नई चुनौतियां पेश करेगा, जिसमें घुला हुआ ऑर्गेनिक कार्बन और जहरीली धातुओं का मिश्रण शामिल है। इसका सीधा असर शुद्ध जल की उपलब्धता और जमीनी इलाके में मत्स्य पालन पर पड़ेगा।
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