यूक्रेन पर आक्रमण अवैध लेकिन अनपेक्षित नहीं | नितिन देसाई / March 02, 2022 | | | | |
प्राचीन काल के राजाओं से लेकर आधुनिक काल के राष्ट्रपतियों तक सभी के लिए वैधता एक वांछित आवरण रही है। फिर चाहे वह पुजारियों के आशीर्वाद के रूप में हो या किसी विदेशी भूमि पर आक्रमण को संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के माध्यम से मंजूरी दिलाना। यूक्रेन में अपने सैन्य हस्तक्षेप के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन द्वारा वैधता का आवरण कितना विश्वसनीय है?
आज वैधता का प्रमुख स्रोत अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक कदमों से आता है जिनकी इजाजत संयुक्त राष्ट्र के चार्टर (घोषणापत्र) से मिलती है। चार्टर की प्रस्तावना में उल्लिखित उसके कुछ लक्ष्य इस प्रकार हैं:
'आने वाली पीढिय़ों को युद्ध के संकट से बचाना', 'छोटे और बड़े देशों के समान अधिकारों में आस्था को मजबूती से दोहराना', 'एक दूसरे के साथ अच्छे पड़ोसियों की तरह शांतिपूर्वक रहना'। जाहिर है रूस ने यूक्रेन पर जो आक्रमण किया उसमें इन सभी का उल्लंघन किया गया।
संयुक्त राष्ट्र का चार्टर किसी भी देश के पूरी तरह आंतरिक मामले में हस्तक्षेप की बात नहीं कहता। इस मामले में यह पूरी तरह राज्य की संप्रभुता का मामला है। यह हर देश को आश्वस्त करता है कि किसी बाहरी आक्रमण से सामूहिक सुरक्षा की जाएगी और बाहरी ताकत के बल पर वर्तमान सीमाओं को बदलने की किसी भी कोशिश से बचाव किया जाएगा।
चार्टर में अध्याय सात शामिल नहीं है जो सुरक्षा परिषद को अधिकार देती है कि अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त कदम उठाए जाएं, भले ही प्रभावित राज्य इसके विरुद्ध हो। सन 1990 के दशक तक अधिकार को सैन्य आक्रमण के खतरे के संदर्भ में समझा जाता था। बहरहाल, अब इसमें मानवाधिकार हनन या जनसंहार के खतरे को भी शामिल माना जा सकता है। मानव हस्तक्षेप का सिद्धांत हालिया विचार है जो किसी राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप को तब उचित ठहराता है जब मानवाधिकारों का गंभीर हनन हो रहा हो। परंतु जमीनी तथ्यों के निर्धारण की बहुपक्षीय प्रक्रिया की कमी है। यह भी परिभाषित नहीं है कि क्या स्वीकार्य नहीं है। बिना भय या पक्षपात के इसे लागू करने की इच्छा तथा एक निर्णय पर पहुंचने की एक बहुपक्षीय प्रक्रिया की भी आवश्यकता है। किसी देश के आंतरिक मामलों में वैध हस्तक्षेप को लेकर संयुक्त राष्ट्र के नजरिये का हालिया इतिहास भ्रामक है। दक्षिण अफ्रीका में नस्लभेदी सरकार का मामला इसका उदाहरण है।
संयुक्त राष्ट्र ने नस्लभेदी सरकार के खिलाफ जो कदम उठाए उन्हें अध्याय सात के तहत सुरक्षा परिषद से अध्यादेशित नहीं किया गया। सुरक्षा परिषद कुछ राज्यों द्वारा उठाए गए एकतरफा कदमों के भी पक्ष में नहीं थी। उदाहरण के लिए युगांडा के ईदी अमीन के शासन के दौरान जनसंहार केखतरे और मानवाधिकार हनन को लेकर तंजानिया के कदम, बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना के खिलाफ भारत के कदम और कंबोडिया के पोलपोत शासन के खिलाफ वियतनाम के कदम।
पुतिन ने यूक्रेन हमले को उचित करार देते हुए कहा कि पूर्वी यूक्रेन के रूस समर्थित अलगाववादी क्षेत्र में जनसंहार की प्रतिक्रिया में ऐसा किया गया। यह मानव हस्तक्षेप की आड़ लेकर वैधता पाने की कोशिश है। हालांकि 21 फरवरी के अपने भाषण में जब उन्होंने पूर्वी यूक्रेन के दो अलग हुए प्रदेशों को मान्यता दी तो उस समय एक अलग दलील पेश की। उन्होंने इतिहास का जिक्र करते हुए संप्रभुता पर यूक्रेन के अधिकार पर ही सवाल खड़े कर दिये। उन्होंने कहा कि वे प्रांत रूसी संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिकता का हिस्सा हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आधुनिक यूक्रेन पूरी तरह रूस द्वारा या कहें बोल्शेविक, वामपंथी रूस द्वारा बनाया गया था। पुतिन ने कहा कि जो गणराज्य सोवियत संघ के सदस्य थे उनका कोई संप्रभु अधिकार नहीं है।
उन्होंने अपने भाषण में दूसरी वजह उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के विस्तार को उत्तरदायी ठहराया। नाटो ने पूर्वी खेमे के कई देशों को अपना सदस्य बना लिया है। यूक्रेन की पश्चिम से करीबी बढ़ रही थी और उसके नाटो में शामिल होने की संभावना थी। पुतिन ने कहा कि सन 2000 में उन्होंने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से कहा था कि वह रूस के नाटो में शामिल होने को कैसे देखेंगे? इस पर उन्हें बहुत प्रतिरोध के साथ उत्तर मिला। उन्होंने इससे यही अनुमान लगाया कि शायद नाटो के पूर्व में विस्तार का कारण रूस को सीमित रखना है।
पुतिन ने 24 फरवरी के भाषण में रूसी सैन्य हस्तक्षेप के लिए संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुच्छेद 51 का हवाला दिया। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि यदि संयुक्त राष्ट्र के किसी सदस्य के खिलाफ सशस्त्र हमला होता है तो आत्मरक्षा के व्यक्तिगत या सामूहिक अधिकार को किसी तरह कम नहीं किया जा सकता है, बशर्ते कि सुरक्षा परिषद ने अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उपाय न कर दिए हों। नाटो के यूक्रेन में विस्तार की संभावना को इस अनुच्छेद के इस्तेमाल की वजह नहीं माना जा सकता। इतना ही नहीं यूक्रेन की संप्रभुता को इस तरह खारिज नहीं किया जा सकता है। यह चार्टर में उल्लिखित राष्ट्रीय संप्रभुता का साफ अनादर और उल्लंघन है।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने स्पष्ट कहा है कि रूसी संघ के कदम क्षेत्रीय एकता और यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन हैं और ये संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के सिद्धांतों का भी उल्लंघन करते हैं। सैद्धांतिक तौर पर देखा जाए तो इसके लिए सुरक्षा परिषद को कदम उठाने चाहिए।
परंतु ऐसा नहीं होगा। संयुक्त राष्ट्र का जन्म 19वीं सदी के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के इसी तंत्र के टूटने से हुआ था। सुरक्षा परिषद के रूप में कुलीन तंत्र का सिद्धांत बरकरार रखा गया हालांकि शांति और संरक्षा को परिषद के दायरे में लाकर बहुपक्षीय सिद्धांत को भी मजबूत किया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा को भी व्यापक भूमिका सौंपी गई। ऐसी तमाम व्यवस्थाओं की तरह यह भी तब पूरे प्रभावी ढंग से काम नहीं कर सकी जब मामला कुलीनों और उनका अनुसरण करने वाले देशों का आया।
बहुपक्षीयता से तात्पर्य शक्ति और सहमति के संतुलन से है। फिर भी इसकी आवश्यकता का अर्थ शक्तिशाली के वर्चस्व को चिह्नित करने से नहीं है। यह यथार्थवाद नहीं है। यथार्थवाद में तो निर्णय प्रक्रिया में शक्तिशाली वर्ग की असंगत भूमिका होती है। वे इसे लोकतांत्रिक सहमति के खाके में स्वीकार्य मानकों पर अंजाम देते हैं जहां अन्य संदर्भ भी होते हैं। यह संतुलन 2003 में नदारद था जब अमेरिका और ब्रिटेन ने इराक पर हमला किया था। उस पर यह झूठा आरोप मढ़कर हमला किया गया था कि उसने घातक हथियारों का प्रसार किया है। यूक्रेन पर रूस के हमले में यह तथ्य सामने नहीं आया है। ऐसे में माना जा सकता है कि रूस के कदम अनुमान के अनुरूप लेकिन अवैध हैं।
(लेखक 1993 से 2003 तक संयुक्त राष्ट्र के अवर महासचिव थे)
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