यूरोप से अपने राजस्व का 30 से 40 फीसदी हासिल करने वाले भारतीय आईटी उद्योग को रूस-यूक्रेन संकट से यूरोप में परिचालन पर कोई असर नहीं दिख रहा है। विश्लेषकों और कंपनियों ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, चूंकि यूक्रेन में सीधी मौजूदगी नहीं है, लिहाजा इस संकट का उस पर असर नहीं पड़ा है। टेक महिंद्रा के सीईओ व एमडी सी पी गुरनानी ने कहा, अस्थिरता पैदा करने वाली कोई भी चीज चिंतित करती है और चूंकि वहां कारोबार को लेकर कोई खतरा नहींं है, लिहाजा वे क्लाइंटों के डेटा की सुरक्षा व निरंतरता को लेकर सतर्क हैं। गुरनानी ने कहा, जो चीजें अस्थिरता लाती हैं वह हमेशा ही चिंता में डालती है। पहला, हमारे काफी क्लाइंटों के डेवलपमेंट सेंटर यूक्रेन में हैं। जब आपके वैश्विक डिलिवरी सेंटर होते हैं तो आपको इस वास्तविकता पर नजर डालनी होती है कि अवरोध एक तरह का खतरा है और मौका भी है। दूसरा, हमारा मानना है कि सभी कॉरपोरेट के लिए साइबर सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता बन गई है क्योंंकि हमें नहींं पता कि कहां युद्ध लड़ा जाना है और तीसरी वास्तविकता यह है कि हर युद्ध के कुछ प्रभाव होते हैं और हमें नहींं पता कि यह कितने समय तक रहेगा और यह असर खास तौर से वैश्विक आपूर्ति शृंखला पर होगा। दूसरी सबसे बड़ी कंपनी टीसीएस ने एक बयान में कहा, यूक्रेन के दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम को देखते हुए टीसीएस बताना चाहती है कि हमारे कोई कर्मचारी या कार्यालय उस इलाके में नहीं हैं। हम मौजूदा स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। हम समझते हैं कि हमारे कुछ सहायकोंं के परिवार व मित्र यूक्रेन में हैं और हम संकट की इस घड़ी में हर तरह की सहायता दे रहे हैं। आईटी पर नजर रखने वाले विश्लेषकों ने कहा, रूस-यूक्रेन संकट अभी तक खतरा नजर नहींं आ रहा है। कोटक इंस्टिट्यूशनल इक्विटीज रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है, कंपनियों ने भरोसा जताया है कि विकसित देशों में उच्च महंगाई और रूस-यूक्रेन संकट आईटी खर्च पर किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाएगा। कारोबारी खर्च में बदलाव को लेकर दबाव सामान्य तौर पर संकट की ऐसी घड़ी देखने बना रहेगा क्योंकि ये अब वैकल्पिक नहींं हैं और बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिहाज से यह आवश्यक बन गया है। 227 अरब डॉलर वाले आईटी सेवा उद्योग का करीब 60 फीसदी राजस्व अमेरिका व यूरोप से आता है। यूरोप में ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस की इसमें बड़ी हिस्सेदारी है। यूरोप के ज्यादातर छोटे देश प्रतिभा के स्रोत हैं और कई देशोंं मसलन पोलैंड व बेलारूस में अपने सेंटर बनाए हुए हैं। एक विश्लेषक ने कहा, चिंता इसे लेकर है कि यह अन्य इलाकों में न फैल जाए, अन्यथा यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं होगा और भारतीय आईटी कंपनियों के लिए भी क्योंंकि कई की पोलैंड में खासी मौजूदगी है।
