भारतीय बाजारों में अपने सर्वाधिक ऊंचे स्तरों से दो अंकों में गिरावट देखी गई है। देश के प्रमुख फंड प्रबंधकों का कहना है कि हालांकि मूल्यांकन महंगे दायरे में बने हुए हैं और इनमें गिरावट बढऩे की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। जहां निफ्टी का कीमत-आय (पी/ई) मल्टीपल अक्टूबर 2021 के करीब 28 गुना के अपने ऊंचे स्तरों से काफी नीचे आ चुका है, लेकिन यह ऐतिहासिक औसत से ऊपर बना हुआ है। मौजूदा समय में निफ्टी 17 गुना के दीर्घावधि औसत के मुकाबले अपनी 12 महीने की आगामी अनुमानित आय से करीब 21.5 गुना पर कारोबार कर रहा है। शेयरों में कमजोरी बनी हुई है, क्योंकि रूस और यूक्रेन के बीच भू-राजनीतिक तनाव बढऩे, कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंचने, और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर वृद्घ की आशंका जैसी समस्याएं बरकरार हैं। विश्लेषकों का कहना है कि मौजूदा गिरावट से निवेशकों को दो से पांच वर्ष की अवधि के लिहाज से खरीदारी का अच्छा अवसर मिल सकता है। आदित्य बिड़ला सनलइफ ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी ए बालासुब्रमण्यन का कहना है, 'भारत के नजरिये से हमने भारी गिरावट दर्ज की है। अतिरिक्त मूल्यांकन सामान्य हो गया है। हम फिर से विकास की पटरी पर हैं और अब यहां से गिरावट सीमित होगी।' पिछले सप्ताह, सेंसेक्स 3.5 प्रतिशत गिर गया था और तेल एवं गैस, दूरसंचार सूचकांक तथा स्मॉलकैप क्षेत्र के शेयरों में भारी गिरावट दर्ज की गई थी। पिछले गुरुवार को सेंसेक्स और निफ्टी ने 20 महीने में अपनी एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की और उस दिन इनमें करीब 5 प्रतिशत की कमजोरी आई थी। हालांकि शुक्रवार को बाजारों में सुधार दर्ज किया गया, और सेंसेक्स 1,328 अंक या 2.4 प्रतिशत चढ़कर आखिर में 55,858 पर, जबकि निफ्टी सूचकांक 410 अंक की बढ़त के साथ 16,658 पर बंद हुआ था। आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी के कार्यकारी निदेशक एवं मुख्य निवेश अधिकारी एस नरेन का कहना है, 'इक्विटी मूल्यांकन रिकॉर्ड ऊंचे स्तरों से गिरने के बावजूद यह उतना ज्यादा सस्ता नहीं है, जितना कि मार्च 2020 के दौरान था। अल्पावधि परिदृश्य अनिश्चित बना हुआ है। हम इसे लेकर अनिश्चित बने हुए हैं कि रूस-यूक्रेन टकराव कितने समय तक चलेगा। यदि इसका जल्द समाधान निकलता है तो इक्विटी में अल्पावधि कारोबारी तेजी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।' विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) द्वारा लगातार बिकवाली से पिछले कुछ महीनों के दौरान बाजार प्रदर्शन पर दबाव पड़ा है। अब तक, एफपीआई ने भारतीय इक्विटी में 9.3 अरब डॉलर की बिक्री की है और घरेलू निवेशकों ने 8 अरब डॉलर के शेयर खरीदे हैं। अब बाजार की नजर आय के आंकड़ों और तेल कीमतों पर लगी रहेगी।आईडीएफसी एएमसी में इक्विटी प्रमुख अनूप भास्कर का कहना है, 'मूल्यांकन नीचे आया है, क्योंकि बाजारों में अक्टूबर 2021 के ऊंचे स्तरों से गिरावट आई है। अभी इसे लेकर स्थिति अनिश्चित बनी हुई है कि आय अनुमान कैसे रहेंगे। अब तक, हमारे पास आय अपग्रेड की लगातार 6 तिमाहियां थीं, क्योंकि कंपनियां आगामी परिदृश्य को लेकर सकारात्मक बनी हुई हैं। हालांकि कच्चे तेल, कोयल और मुख्य धातुओं में मजबूती को देखते हुए 2022-23 के आय अनुमानों में कमी आ सकती है।' घरेलू बाजार के लिए मुख्य समस्या तेल कीमतों में तेजी आना है। विश्लेषकों का कहना है कि यदि तेल कीमतों में तेजी बरकरार रही, तो उभरते बाजार प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले भारत का मूल्यांकन और सीमित हो सकता है। क्रेडिट सुइस में इक्विटी रिसर्च के प्रमुख (निदेशक) जितेंद्र गोहिल का कहना है, 'अंतर्राष्ट्रीय इक्विटी निवेशकों के लिए मुख्य चिंता यह है कि भारत का मूल्यांकन प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले ज्यादा है। एमएससीआई इंडिया इंडेक्स 90 प्रतिशत के एमएससीआई ईएम इंडेक्स के रिकॉर्ड ऊंचे स्तर के मुकाबले 75 प्रतिशत के 12 महीने के आगामी पीई प्रीमियम पर कारोबार कर रहा है। जहां हमें विश्वास है कि भारत महंगे मूल्यांकन का हकदार है, वहीं तेल कीमतों में ताजा तेजी और निजीकरण और अन्य सुधारों की धीमी प्रक्रिया से कुछ और गिरावट को बढ़ावा मिल सकता है।' अनिश्चित परिदृश्य को देखते हुए फंड प्रबंधकों का कहना है कि निवेशकों को अपने एसआईपी के साथ जुड़े रहना चाहिए और लार्ज-कैप पर ध्यान देना चाहिए। ऐक्सिस एएमसी के इक्विटी प्रमुख जिनेश गोपानी का कहना है, 'मौजूदा स्थिति में, लार्ज-कैप का आकर्षण मिड-कैप और स्मॉल-कैप के मुकाबले ज्यादा है।'
