विकृत है व्लादीमिर पुतिन का अखंड रूस का स्वप्न | बाजार संकेतक | | देवांशु दत्ता / February 27, 2022 | | | | |
यूक्रेन कई बार नाना प्रकार के राजनीतिक समूहों का हिस्सा रहा है। वह रूसी साम्राज्य का हिस्सा रहा, ऑस्ट्रो-हंगरियन साम्राज्य का हिस्सा रहा और अब पोलैंड-लिथुआनिया और यूक्रेन में तब्दील गठजोड़ का हिस्सा भी रहा है।
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान उस पर नाजियों का नियंत्रण था और अखंड जर्मनी के नाजी संस्करण 'ग्रॉस डॉयचेलैंड' का हिस्सा था। यूक्रेन सोवियत समाजवादी गणराज्यों के संघ का संस्थापक सदस्य भी था और उसे संयुक्त राष्ट्र में मताधिकार हासिल था। उसके पास परमाणु हथियारों का जखीरा था जो उसने 1991 में त्याग दिया।
ऐसे में कई आधुनिक राष्ट्र एक ऐतिहासिक संबंध का हवाला दे सकते हैं और यह तर्क प्रस्तुत किया जा सकता है कि इसका अर्थ है अचल संपत्ति के एक बड़े हिस्से पर दावा। यूक्रेन का भौगोलिक आकार जर्मनी या फ्रांस से बड़ा है और उसकी आबादी चार करोड़ से अधिक है।
असहज करने वाला तथ्य यह है कि यूक्रेन के लोग स्वतंत्रता को प्राथमिकता देंगे। उनकी अपनी भाषा है जिसे लंबे समय तक दबाया गया, उनकी अपनी संस्कृति है। यूक्रेन अफगानिस्तान, चेचेन्या, जॉर्जिया या आर्र्मीनिया की तरह आर्थिक दृष्टि से महत्त्वहीन भी नहीं है। यूक्रेन उच्च शिक्षित राष्ट्र है और वहां अत्यंत उत्कृष्ट शैक्षणिक संस्थान हैं जहां बड़ी तादाद में भारतीय छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। यूक्रेन में बड़ी तादाद में प्रवासी रहते हैं। वहां अच्छे खासे उद्योग-धंधे हैं और गेहूं की फसल भी भरपूर होती है। यूक्रेन खाद्य तेल और औद्योगिक धातुओं का निर्यात करता है। यूक्रेन के लोग रूस की तुलना में बेहतर फुटबॉल खिलाड़ी होते हैं। यूक्रेन के फुटबॉल क्लब दिनामो कीव ने सोवियत संघ की फुटबॉल टीमों में जबरदस्त योगदान किया है।
जैसा कि उपरोक्त इतिहास दर्शाता है, कई सेनाएं उन हिस्सों से गुजरती रही हैं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब जर्मनी ने वहां प्रवेश किया तो वहां जबरदस्त लड़ाइयां हुईं, आखिरकार सोवियत सेनाओं ने उसे बाहर निकाला। सपाट मैदानी इलाका होने के कारण मौसम अनुकूल होने पर यह हमले की दृष्टि से भी मुफीद होता है। साल के कुछ महीनों के दौरान जब मौसम अनुकूल नहीं होता है तब वहां बेतहाशा ठंड पड़ती है या फिर बदबूदार कीचड़ होता है। काले सागर के जरिये खारे पानी तक की इकलौती पहुंच को रूसी सेना ने काट दिया है। व्लादीमिर पुतिन ने क्रीमिया को कुछ वर्ष पहले ही अलग कर दिया था।
सन 1930 के दशक में स्टालिन की सामूहिक खेती और अन्य विचित्र कृषि नीतियों के कारण दुर्भिक्ष आने तक यूक्रेन सोवियत संघ को अनाज मुहैया कराने का प्रमुख जरिया था। उस समय यूक्रेन के लाखों नागरिक भुखमरी के शिकार हुए थे और यूक्रेनवासी उसे जातीय नरसंहार की संज्ञा देते हैं।
इसके परिणामस्वरूप, जब जर्मनी ने आक्रमण किया तो कई लोगों ने उनका यह कहते हुए स्वागत किया कि वे उन्हें मुक्त कराने आए हैं। हिटलर ने लोगों द्वारा महसूस की जा रही उस शुरुआती राहत का इस्तेमाल अपनी तरह का जनसंहार करने में किया। परंतु स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे यूक्रेन के अलगाववादियों ने सन 1950 के मध्य तक अपना संघर्ष जारी रखा। सन 1953 में स्टालिन के निधन के बाद निकिता ख्रुश्चेव ने शांति बहाल की जो स्वयं यूक्रेनवासी थे।
यह भविष्य के संभावित परिदृश्यों के लिहाज से अहम बात हो सकती है। इस बात पर विचार करना जरूरी है कि शेष विश्व से एकदम अलग-थलग यूक्रेन के छापामारों ने दूसरा विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद वर्षों तक लाल सेना और केजीबी का प्रतिरोध किया।
सोवियत संघ की तुलना में मौजूदा रूस नाजुक है, आर्थिक तथा सैन्य रूप से कमजोर है और उसकी आबादी बुजुर्ग हो रही है। रूस सीरिया और कजाखस्तान में भी उलझा हुआ है। यूक्रेन पर हमले के खिलाफ रूस में आंतरिक विरोध भी हो रहा है।
सन 1991 तक यूरोप के पश्चिमी पड़ोसी सोवियत संघ के पूर्ण प्रभााव में थे अब वे भी स्वतंत्र राष्ट्र हैं। पोलैंड, हंगरी और रोमानिया आदि अब नाटो के सदस्य हैं। इस बात की पूरी संभावना है कि रूस शायद यूक्रेन पर काबिज हो जाए लेकिन इसकी भी संभावना है कि शायद वह वहां पूरा नियंत्रण न कायम कर सके या प्रतिरोध और विद्रोह को आसानी से दबा न सके।
इस आक्रमण का सबसे बुरा नतीजा परमाणु हथियारों की आग भड़कने के रूप में सामने आ सकता है। यदि ऐसा हुआ तो अनेक मौतें होंगी, संकट उत्पन्न होगा तथा वैश्विक आर्थिक गतिविधियों को भारी नुकसान पहुंचेगा। एक लंबी लड़ाई भी छिड़ सकती है जिसमें यूक्रेन और रूस दोनों को क्षति पहुंचे। ऐसी स्थिति बनी तो वैश्विक ईंधन आपूर्ति तथा धातु आपूर्ति पर बुरा असर होगा। प्रतिबंधों का असर शुरू होने पर रूस को उनसे निपटने का प्रयास भी करना होगा।
पुतिन ने ऐसा क्यों किया? उनकी वजहें तब तक अस्पष्ट नजर आएंगी जब तक आप उनके बार-बार दोहराये गए अखंड रूस के वक्तव्य को स्वीकार नहीं करेंगे। पुतिन की उम्र बढ़ रही है। वह एक ऐसी विरासत तैयार करना चाहते हैं जो उनके हमनाम कीव के प्रिंस सेंट व्लादीमिर के समान हो जिन्होंने शुरुआती दौर में रूसी राज्य की स्थापना की थी। यह ध्यान रखना होगा कि किसी भी चीज को अखंड बनाने जैसी ऐतिहासिक कल्पनाएं किसी के लिए लाभदायक नहीं होतीं। हकीकत तो यह है कि ऐसे हालात सबके लिए नुकसानदेह होते हैं।
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