एफआरबीएम अधिनियम में आवश्यक है संशोधन | ए के भट्टाचार्य / February 24, 2022 | | | | |
केंद्रीय वित्त मंत्रालय सरकार के राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी ) की तुलना में कम करने को लेकर प्रतिबद्ध है। उसका इरादा घाटे को 2021-22 के जीडीपी के 6.9 फीसदी से कम करके 2022-23 में 6.4 फीसदी करने का है। घाटे को 2025-26 तक घटाकर 4.5 फीसदी के स्तर पर लाना है। तीन वर्ष में राजकोषीय घाटे में दो फीसदी की कमी लाने के लक्ष्य से यह संकेत निकलता है कि सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया धीमी है लेकिन सरकार ने घाटे को कम करने के लिए मध्यम अवधि का लक्ष्य तय किया है।
इसके बावजूद राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की योजना की रूपरेखा तैयार करने को लेकर सवाल हैं। दो सवाल खासतौर पर उठे। राजकोषीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम में संशोधन के वादे का क्या? इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वर्ष 2023-24 और 2024-25 के दो वर्षों के लिए राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लिए क्या राह है?
यह याद रहे कि 2021-22 के बजट में एफआरबीएम अधिनियम में संशोधन का विशिष्ट वादा किया गया था। सन 2021 के अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पहले तय किए गए लक्ष्यों से विचलन का हवाला दिया। अधिनियम में कहा गया था कि राजकोषीय घाटा 2020-21 में जीडीपी के तीन फीसदी तक रह सकता है। हालांकि अर्थव्यवस्था कोविड से प्रभावित हुई और घाटा 2020-21 में घाटा 9.5 फीसदी तक जा पहुंचा। 2021-22 में उसके जीडीपी के 6.8 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया। सीतारमण ने कहा था कि केंद्र सरकार के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रयास के साथ ही वह एफआरबीएम अधिनियम में संशोधन भी पेश करेंगी।
सन 2021 के बजट में एक और वादा किया गया था। यह वादा था राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लिए मध्यम अवधि का एक मार्ग प्रस्तुत करना। मध्यम अवधि राजकोषीय नीति को 2021-22 के बजट के साथ ही प्रस्तुत किया गया था। उसमें कहा गया कि केंद्र सरकार की पंचवर्षीय व्यय योजना के निर्धारकों में एक तत्त्व यह भी था कि पंद्रहवें वित्त आयोग ने इस विषय में नवंबर 2020 में दी गई अपनी रिपोर्ट में क्या कहा था। कोविड की अनिश्चितता और वित्त आयोग की रिपोर्ट को बजट के ठीक तीन महीने पहले प्रस्तुत किए जाने के कारण वित्त मंत्रालय 2020-21 के मध्यम अवधि के व्यय ढांचे के वक्तव्य को प्रस्तुत नहीं कर पाया जबकि एफआरबीएम अधिनियम के तहत ऐसा करना जरूरी था। यही कारण है कि उस वक्तव्य के साथ 2022-23 और 2023-24 के लिए कोई राजकोषीय अनुमान जारी नहीं किया गया। एक वर्ष बाद जब 2022-23 का बजट पेश किया गया तो इस बात के पूरे अनुमान थे कि वित्त मंत्रालय मध्यम अवधि के राजकोषीय अनुमान तथा एफआरबीएम अधिनियम के संशोधन दोनों को रेखांकित करेगा। बहरहाल वित्त मंत्री के 1 फरवरी, 2022 के बजट भाषण में दोनों का कोई संकेत नहीं मिला।
उन्होंने 2021-22 में घाटे के मामूली फिसलन के साथ 6.9 फीसदी रहने की बात कही और 2022-23 के लिए 6.4 फीसदी का लक्ष्य तय किया। इसके बारे में उन्होंने कहा कि वह उनके द्वारा गत वर्ष घोषित राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के उस लक्ष्य के साथ 'निरंतरता' में है जो 2025-26 तक घाटे को 4.5 फीसदी के स्तर से नीचे लाने के लिए घोषित किया गया था। भाषण में संशोधित एफआरबीएम अधिनियम का कोई जिक्र नहीं था।
इसके बजाय एफआरबीएम अधिनियम की आवश्यकता के अनुसार राजकोषीय नीति वक्तव्यों में यह स्पष्टीकरण दिया गया कि आखिर अगले दो वर्षों के राजकोषीय घाटे को लेकर मध्यम अवधि के अनुमान क्यों नहीं प्रकट किए गए। उनमें कहा गया कि कोविड महामारी ने वैश्विक आर्थिक सुधार की गति को प्रभावित किया है। वक्तव्य में कहा गया कि देश की घरेलू आर्थिक सुधार की गति को तेज करने के लिए तथा महामारी के घातक सामाजिक-आर्थिक असर से लोगों को बचाने के लिए सरकार को इतना लचीलापन बनाए रखना चाहिए ताकि आवश्यकता पडऩे पर वह उभरते हालात और अनिश्चितताओं से सही ढंग से निपट सके।
ये वक्तव्य इस बारे में स्पष्टीकरण मुहैया कराते हैं कि क्यों मध्यम अवधि के राजकोषीय घाटे की सुदृढ़ीकरण योजना पेश नहीं की गई। वक्तव्य बताते हैं कि आखिर क्यों वृद्धि और राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के बीच संतुलन कायम करना आवश्यक था और इसलिए मध्यम अवधि के राजकोषीय अनुमान वक्तव्य में जाहिर नहीं किए गए। बहरहाल, वक्तव्यों में यह दोहराया गया कि सरकार राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के पथ पर बढ़ती रहेगी ताकि राजकोषीय घाटे को 2025-26 तक जीडीपी के 4.5 फीसदी के स्तर पर लाया जा सके।
दो वर्षों तक वित्त मंत्रालय राजकोषीय सुदृढ़ीकरण योजना पेश करने से बचता रहा। तीन वर्ष बाद के लिए 4.5 फीसदी का लक्ष्य तय करना वैसा ही नहीं है जैसे कि राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की राह स्पष्ट करना जिस पर सरकार को टिके रहना चाहिए।
संशोधित एफआरबीएम अधिनियम अथवा मध्यम अवधि की राजकोषीय सुदृढ़ीकरण योजना यह जानने में भी उपयोगी होती कि सरकार ने अगले कुछ वर्षों में अपने कर्ज को कम करने की क्या योजना बनायी। बजट में यह उल्लेख भी किया गया कि 4.5 फीसदी के राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 2025-26 तक हासिल होना चाहिये। परंतु इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है कि सरकार ऋण कम करने के लक्ष्य कैसे हासिल करने वाली है।
एफआरबीएम अधिनियम ने पहले कहा था कि केंद्र सरकार कोशिश करेगी कि 31 मार्च, 2025 तक आम सरकारी कर्ज को जीडीपी के 60 फीसदी तक सीमित रखा जाए और केंद्र सरकार के कर्ज को जीडीपी के 40 फीसदी तक सीमित रखा जाए। 2021-22 में केंद्र सरकार का कर्ज जीडीपी के 59.9 फीसदी होने का अनुमान था जो 2022-23 में 60.2 फीसदी हो जाएगा। दो वर्षों में इसमें 20 फीसदी की कमी करना वाकई बहुत मुश्किल होगा। केंद्र की ब्याज देनदारी 2022-23 में उसके शुद्ध राजस्व के 43 फीसदी के बराबर हो जाएगी जो 2021-22 के 39 फीसदी से अधिक है।
खेद की बात है कि सरकार ने एफआरबीएम अधिनियम में उपयुक्त संशोधन की अनदेखी कर दी। घाटे और ऋण के मानकों पर आने वाले वर्षों के मध्यम अवधि के अनुमान अत्यंत महत्त्वपूर्ण होंगे। कोविड को देखते हुए आर्थिक वृद्धि से जुड़ी अनिश्चितता को समझा जा सकता है। परंतु ऐसे हालात में राजकोषीय लक्ष्य तय करना और अहम हो जाता है। एफआरबीएम अधिनियम में जरूरी बदलाव तथा घाटे और ऋण प्रबंधन लक्ष्य को लेकर प्रावधानों में और देरी करना उचित नहीं।
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