पंजाब में कुछ दिनों में चुनाव होने हैं। सभी की निगाहें इस बात पर टिकी होंगी कि राज्य का ग्रामीण क्षेत्र किसे वोट डालेगा। हाल में वापस लिए गए तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ राज्य के किसानों ने सबसे बड़े किसान आंदोलनों में से एक में अहम भूमिका निभाई थी, ऐसे में मतदान अधिक दिलचस्प हो सकता है। इस महीने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2023 के लिए अपना बजट भाषण देते हुए दावा किया था कि 2021-22 के रबी और खरीफ के खरीद सीजन में देश भर में गेहूं और धान की खरीद लगभग 12.1 करोड़ टन रहने की उम्मीद है जिससे लगभग 1.63 करोड़ किसान लाभान्वित होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि इस खरीद के माध्यम से लगभग 2.37 लाख करोड़ रुपये का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सीधे किसानों के बैंक खाते में स्थानांतरित किया जाएगा। गेहूं और चावल की खरीद के लिए जिम्मेदार केंद्र की नोडल एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफ सीआई) की वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2015-16 और 2020-21 के बीच धान की खरीद से फायदा पाने वाले किसानों की संख्या में लगभग 80 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि गेहूं की खरीद से लाभान्वित होने वाले किसानों की संख्या में लगभग 140.37 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इतना ही नहीं, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि 2019-20 के रबी सीजन में लगभग 436,858 तिलहन किसानों को खरीद से फायदा मिला जो 2020-21 के रबी सीजन में 11.1 लाख से अधिक किसानों तक पहुंच गया।खरीद की बदलती रूपरेखा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021-22 में खरीद प्रक्रिया के बारे में जो कुछ कहा उससे परे इसके कई आयाम हैं। एफसीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि 2015-16 और 2020-21 के बीच प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और यहां तक कि पश्चिम बंगाल में भी सरकारी खरीद से लाभान्वित होने वाले किसानों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। लेकिन, मोटे तौर पर पंजाब में ऐसे धान के किसानों की संख्या 1 से 1.2 करोड़ तक बनी हुई है। इसी तरह, गेहूं के मामले में भी एफसीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि 2015-16 के बाद से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में राज्य की खरीद से लाभान्वित होने वाले किसानों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है लेकिन पंजाब में इसी अवधि के दौरान ऐसे किसानों की तादाद केवल 5.3 प्रतिशत बढ़ी है। पंजाब में हर साल लगभग 84-88 लाख किसानों को गेहूं की खरीद से फायदा मिला। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि खरीद में बदलाव लाना भी देश में गेहूं और चावल की खरीद को व्यापक आधार देने के प्रयास का हिस्सा है और इसे कुछ क्षेत्रों तक सीमित नहीं किया जा सकता है।विविधता की जरूरत बजट में और इससे पहले की कई रिपोर्टों और सिफारिशों में पंजाब जैसे राज्यों में गेहूं से चावल के उत्पादन में विविधता लाने के साथ-साथ अधिक मूल्य और आकर्षक पेशकश की मांग की गई है जिसके लिए किसानों को खुली खरीद के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कहा गया है। बजट में घरेलू तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक नया कार्यक्रम शुरू करने की बात कही गई है जिसके लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के व्यापक कार्यक्रम के तहत वित्त वर्ष 2023 में 600 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई थी। इस कार्यक्रम का मकसद 2020-21 से 2025-26 तक अगले पांच वर्षों में तिलहनों का उत्पादन 3.61 करोड़ टन से बढ़ाकर 5.41 करोड़ टन करना है। बजट में यह भी कहा गया है कि 35 लाख हेक्टेयर (2.87 करोड़ हेक्टेयर से 3.23 करोड़ हेक्टेयर तक) के अतिरिक्त तिलहन क्षेत्र को चावल परती, अंतर फसल, उच्च क्षमता वाले जिलों और गैर-पारंपरिक राज्यों के माध्यम से तिलहन खेती के तहत लाया जाएगा जो तेल आयात निर्भरता को कम कर 52 से 36 प्रतिशत तक कर देगा। इस वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा उचित सहायता उपायों के माध्यम से पंजाब से मिल सकता है।खुली खरीद का नुकसान केंद्र के पास गेहूं और चावल का विशाल भंडार है जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से वितरण के लिए सालाना आवश्यकता से कहीं अधिक है। ऐसे में सरकार के मुख्य कृषि मूल्य निर्धारण पैनल, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने पिछले कई वर्षों से सरकार पर वित्तीय और लॉजिस्टिक बोझ कम करने के लिए खुली खरीद नीति की समीक्षा करने की सिफारिश की है। मोटे अनुमानों से पता चलता है कि खुली खरीद नीति के कारण जिसमें सरकार मंडियों में किसानों से गेहूं और चावल खरीदती है और इस तरह भारत सालाना लगभग 8 करोड़ टन गेहूं और चावल खरीदती है जबकि इसकी आवश्यकता लगभग 5.5 करोड़ टन है। सीएसीपी ने पिछले साल जारी रिपोर्ट में कहा था, 'पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में सरकार ने रबी विपणन मौसम 2019-20 में गेहूं उत्पादन और बाजार में आने वाली अन्य फसलों के एक बड़े हिस्से की खरीदारी की जिसमें पंजाब में लगभग 73 प्रतिशत उत्पादन और हरियाणा में 80 प्रतिशत उत्पादन की खरीद शामिल है। आयोग सिफारिश करता है कि खुली खरीद नीति की समीक्षा करने की आवश्यकता है।' इसमें कहा गया है कि चावल और गेहूं के लिए खुली खरीद नीति के कारण खाद्य भंडार बढ़ रहा है और फसल विविधीकरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'अतिरिक्त स्टॉक से भंडारण की समस्याएं बढ़ती हैं और अधिक भंडारण और वित्तीय लागत भी खाद्य सब्सिडी बोझ बढ़ाते हैं। इसीलिए आयोग सिफारिश करता है कि खुली खरीद नीति की समीक्षा की जानी चाहिए।' अधिकारियों ने कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को चलाने के लिए आवश्यक खाद्यान्नों और खरीदे गए अनाज की मात्रा के बीच एक बड़े अंतर की वजह से अतिरिक्त स्टॉक की स्थिति बनी है। आंकड़ों से पता चलता है कि पीडीएस के लिए 5-5.4 करोड़ टन की आवश्यकता की तुलना में केंद्रीय पूल के लिए हर साल 7.8-8 करोड़ टन गेहूं और चावल की खरीद की जाती है।
