उपभोक्ता महंगाई में अमेरिका ने भारत को पीछे छोड़ा | कृष्ण कांत / मुंबई February 15, 2022 | | | | |
भारत जैसे उभरते बाजारों में महंगाई दर हमेशा विकसित देशों जैसे अमेरिका और पश्चिमी यूरोप से ज्यादा रहती है। लेकिन पिछले 30 साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि अमेरिका में लगातार 5 महीनों से उपभोक्ता मूल्य पर आधारित महंगाई दर भारत से ज्यादा है।
जनवरी 2022 में अमेरिका में सीपीआई दर 7.5 प्रतिशत रही, जो भारत में 6.01 प्रतिशत है। विश्लेषकों को उम्मीद है कि कम से कम कुछ महीने तक यह धारणा जारी रहेगी।
इसके पहले अमेरिका में सिर्फ 4 बार नवंबर 1999, दिसंबर 1999, मई 2004 और जून 2017 में महंगाई दर भारत से ज्यादा रही थी। पिछले 30 साल में भारत में महंगाई दर अमेरिका की तुलना में ज्यादा ही रही है, जिसका औसत 4.75 प्रतिशत है।
अमेरिका में तेजी से बढ़ती महंगाई दर से इस बात का डर बढ़ गया है कि विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें तेजी से बढ़ेंगी, जिसकी वजह से भारत व अन्य उभरते बाजारों में पूंजी प्रवाह प्रभावित हो सकता है।
कम महंगाई सामान्यतया अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेतक माना जाता है, वहीं तमाम विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में तुलनात्मक रूप से कम सीपीआई लाभदायक नहीं है, बल्कि इससे अर्थव्यवस्था में मांग की कमी के संकेत मिल रहे हैं।
जेएम फाइनैंस इंस्टीट्यूशनल इक्विटी के प्रबंध निदेशक और मुख्य रणनीतिकार धनंजय सिन्हा ने कहा, 'भारत में कम सीपीआई व्यापक रूप से उपभोक्ता मांग की कमी का संकेतक है। इससे इनपुट लागत बढऩे के बावजूद कंपनियों को कीमतें बढ़ाने में मुश्किल आ रही है। वहीं दूसरी तरफ अमेरिका में कोविड के बाद उपभोक्ताओं का खर्च बहुत बढ़ गया है, जिससे फर्मों को कीमतें बढ़ाने का मौका मिल रहा है।'
इससे इन दो अर्थव्यवस्थाओं की जीडीपी में व्यक्तिगत या निजी खपत की हिस्सेदारी का पता चलता है।
दोनों देशों में जीडीपी का सबसे बड़ा घटक निजी अंतिम खपत व्यय अमेरिका में भारत की तुलना में पिछली लगातार 5 तिमाहियों में तेजी से बढ़ा है। परिणामस्वरूप ग्राहकों की मांग या व्यक्तिगत खपत अमेरिका में महामारी के झटकों से उबर चुकी है और यह सितंबर 2021 तिमाही में कोविड के पहले के स्तर मार्च 2020 तिमाही से 11 प्रतिशत ज्यादा है।
इसके विपरीत अगर डॉलर के हिसाब से देखें तो भारत में मौजूदा भाव पर उपभोक्ताओं की मांग महामारी के पहले के स्तर से अभी भी 1 प्रतिशत कम है।
उपभोक्ताओं की मजबूत मांग और लॉकडाउन के कारण आपूर्ति संबंधी व्यवधानों के कारण खुदरा महंगाई को बल मिला है और अमेरिका व अन्य विकसित देशों में महंगाई बढ़ी है। पिछले 2 साल में सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर खर्च किए जाने से अमेरिका में उपभोक्ताओं की मांग तेजी से बढ़ी है।
इक्वीनॉमिक्स रिसर्च ऐंड एडवाइजरी सर्विसेज के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक जी चोकालिंगम ने कहा, 'अमेरिका में महंगाई के ज्यादा दबाव की बड़ी वजह यह है कि वहां वित्तीय प्रोत्साहन भारत की तुलना में बहुत ज्यादा था।' अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक जनवरी 2020 से महामारी की राहत पर अमेरिका सरकार ने करीब 5.3 लाख करोड़ डॉलर खर्च किया है। यह देश की जीडीपी के 25.5 प्रतिशत के बराबर है। वहीं भारत में अतिरिक्त वित्तीय व्यय 109 अरब डॉलर रहा है, जो जीडीपी का 4 प्रतिशत है।
महंगाई दर में अंतर दोनों देशों के मूल्य संकेतकों के घटकों में अंतर की वजह से भी है।
बैंक आफ बड़ौदा में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, भारत के सीपीआई में खाद्य का अधिभार सबसे ज्यादा करीब 45 प्रतिशत है। इसके विपरीत अमेरिका के मूल्य सूचकांक में ईंधन, परिवहन, विनिर्मित वस्तुओं व सेवाओं की हिस्सेदारी ज्यादा है, जिस पर धातुओं की कीमत और ईंधन के दाम में वैश्विक तेजी का व्यापक असर पड़ा है।
भारत में रिकॉर्ड उत्पादन के कारण खाद्य महंगाई कम रही है, साथ ही महामारी के दौरान इसकी मांग भी कम रही है।
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