देश में परियोजना कार्यान्वयन पर ध्यान देने का वक्त | बुनियादी ढांचा | | विनायक चटर्जी / February 14, 2022 | | | | |
देश के बुनियादी ढांचे की विकास यात्रा के पिछले तीन दशकों में परियोजना कार्यान्वयन के लिए धन जुटाने की खातिर गहन प्रयास हुए हैं। इस दिशा में न केवल बजट परिव्यय में वृद्धि की गई, बल्कि संस्थागत वित्त पोषण कार्यक्रमों की शृंखला भी शुरू की गई। सबसे पहली थी वर्ष 1987 में इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशियल सर्विसेज। इसके बाद इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फाइनैंस कंपनी (1997), इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस कंपनी (2006), नैशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड इनवेस्टमेंट फंड (2015) और नैशनल बैंक फॉर फाइनैंसिंग इन्फ्रास्ट्रक्क्चर ऐंड डेवलपमेंट (2021) आई। सार्वजनिक-निजी साझेदारी का ढांचा भी स्थापित किया गया। इससे पहले के समय में क्षेत्र-विशिष्ट वित्त पोषण कार्यक्रम चलाए गए थे। इनमें ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (1969), आवास एवं शहरी विकास निगम (1970), पावर फाइनैंस कॉरपोरेशन (1986) और भारतीय रेलवे वित्त निगम (1986) शामिल हैं। पिछले दो दशकों में कई निजी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां और निजी इक्विटी फंड भी बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं के वित्त पोषण में काफी सक्रिय हो गए हैं। कई वैश्विक दीर्घकालिक संस्थागत निवेशक भी आ गए हैं। पूंजी बाजार उपकरणों की एक नई पीढ़ी वजूद में आई-जैसे रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स।
अब भारत लगभग 22 लाख करोड़ रुपये की वार्षिक बुनियादी ढांचागत वित्त पोषण क्षमता को साकार रूप देने के लिए भली-भांति तैयार है, जो राष्ट्र का घोषित लक्ष्य है। इस क्षमता को मोटे तौर पर केंद्रीय बजट परिव्यय (7 लाख करोड़ रुपये), राज्यों की ओर से संयुक्तनिवेश (6 लाख करोड़ रुपये), सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और अतिरिक्त बजट संसाधनों (2 लाख करोड़ रुपये), नैशनल बैंक फॉर फाइनैंसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड डेवलपमेंट (3 लाख करोड़ रुपये) तथा घरेलू और विदेशी निजी पूंजी (4 लाख करोड़ रुपये) से निर्मित माना जा सकता है। इसलिए अब जोर अनिवार्य रूप से जमीनी स्तर पर दक्ष कार्रवाई अर्थात समय पर परियोजना कार्यान्वयन पर होना चाहिए। हालांकि वित्त पोषण क्षमता के नितांत विपरीत परियोजना कार्यान्वयन के संबंध में जमीनी हकीकत काफी खराब है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की दिसंबर 2021 तक की नवीनतम सूचना में 1,679 परियोजनाएं शामिल हैं। ये केंद्रीय क्षेत्र की परियोजनाएं हैं, जिनमें से प्रत्येक की लागत 150 करोड़ रुपये या अधिक है।
इनमें 10 क्षेत्र-सड़क, रेलवे, बिजली, पेट्रोलियम, शहरी विकास, कोयला, पानी, परमाणु ऊर्जा, इस्पात और दूरसंचार शामिल हैं। इनमें से 11 परियोजनाएं निर्धारित समय से आगे हैं, 292 निर्धारित समय पर हैं, 541 विलंबित हैं और फिर 835 ऐसी परियोजनाएं हैं, जहां न तो चालू होने का वर्ष और न ही पूरा होने की अपेक्षित तिथि उपलब्ध है। रिपोर्ट के अनुसार इन 1,679 परियोजनाओं के कार्यान्वयन की कुल मूल लागत 22.3 लाख करोड़ रुपये थी, लेकिन अब अनुमानित लागत करीब 26.68 लाख करोड़ रुपये है, जो 4.38 लाख करोड़ रुपये की अधिक लागत को दर्शाती है। यह मूल लागत का 20 प्रतिशत है। नवंबर तक इन सभी परियोजनाओं पर लागत का लगभग 48 प्रतिशत भाग व्यय किया जा चुका है। 4.38 लाख करोड़ रुपये की यह अधिक लागत वित्त वर्ष 22 के बजट में प्रस्तावित 5.54 लाख करोड़ रुपये के संपूर्ण बुनियादी ढांचागत परिव्यय की 79 प्रतिशत राशि है। राज्य सरकारों के नियंत्रण वाली विशाल परियोजनाओं की स्थिति उपलब्ध नहीं है। और अधिक कड़े प्रशासनिक हस्तक्षेपों में से एक संभवत: वर्ष 2013 की गर्मियों में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा स्थापित परियोजना प्रबंधन समूह (पीएमजी) था। इसके लिए यह अनिवार्य था कि 'अवरुद्ध परियोजनाओं' के लगभग 17 लाख करोड़ रुपये की राशि छुड़ाई जाए और यह कथित तौर पर करीब सात लाख करोड़ रुपये की औद्योगिक और बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं को फिर से आगे बढ़वाने में सक्षम था।
भले ही पीएमजी को मंत्रिमंडल सचिवालय में एक विशेष प्रकोष्ठ के रूप में स्थापित किया गया था, लेकिन बाद में इसे वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रशासनिक नियंत्रण में लाया गया था। वर्ष 2019 में पीएमजी को उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग के साथ मिला दिया गया था। अब इसे प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग-इन्वेस्ट इंडिया सेल के रूप में जाना जाता है। इसके तहत ईसुविधा परियोजना प्रबंधन प्रणाली सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों की विशाल परियोजनाओं के डेटाबेस की निगरानी करती है।
प्रधानमंत्री कार्यालय में 'प्रगति' (प्रो-एक्टिव गवर्नेंस ऐंड टाइमली इम्प्लीमेंटेशन) भी है। वर्ष 2015 में शुरू किया गया यह मंच केंद्र सरकार के महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों और परियोजनाओं के साथ-साथ राज्य सरकारों द्वारा चिह्नित परियोजनाओं की भी समीक्षा करता है। बढ़ती समस्या को स्वीकार हुए नीति आयोग और भारतीय गुणवत्ता परिषद (क्यूसीआई) ने अक्टूबर, 2020 में राष्ट्रीय कार्यक्रम एवं परियोजना प्रबंधन नीति ढांचे की शुरुआत की थी, जिसका लक्ष्य भारत में बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं के कार्यान्वयन के तरीके में आमूलचूल सुधार लाना था। इसकी प्रमुख सिफारिशों में शामिल हैं-(1) क्यूसीआई के अंतर्गत नैशनल इन्स्टीट्यूट फॉर चार्टर्ड प्रोग्राम ऐंड प्रोजेक्ट प्रोफेशनल्स की स्थापना करना (2) कार्यान्वयन के सर्वोत्तम क्रियाकलापों का इंडियन इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉडी ऑफ नॉलेज नामक का एक तकनीकी भंडार विकसित करना (3) परियोजना कार्यान्वयन के पेशेवरों के लिए चार-स्तरीय प्रमाणन प्रणाली और (4) क्षमता निर्माण कार्यक्रम। आखिर में प्रौद्योगिकी-संचालित दो हालिया मंच-ऑनलाइन मंजूरी और अनुमति के लिए नैशनल सिंगल विंडो सिस्टम तथा गति शक्ति परियोजना कार्यान्वयन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए शक्तिशाली उपकरण हैं। इसलिए अब हमारे पास परियोजना कार्यान्वयन में चिरकालीन विलंब की समस्या को हल करने के लिए संस्थागत स्वरूपों का एक समूह है।
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