भारतीय उद्योग जगत के बारे में कही जाने वाली बातों में एक यह भी है कि वह सार्वजनिक रूप से तो सरकार की सराहना करता है लेकिन अनौपचारिक बातचीत में उसका कटु आलोचक है। परंतु गत 12 फरवरी को दिवंगत हुए राहुल बजाज (83 वर्ष) ऐसे नहीं थे। निरंतर बदलते नीतिगत परिदृश्य में प्रतिस्पर्धा करते हुए एक कारोबारी से लेकर भारतीय कारोबारी जगत में अत्यंत प्रभावशाली हैसियत रखने तक बजाज ने हमेशा बेबाक राय सामने रखी, भले ही कोई भी दल सत्ता में रहा हो। वह एक ऐसे कारोबारी परिवार से ताल्लुक रखते थे जिसका संबंध आजादी की लड़ाई से भी रहा था, यकीनन उनकी इस पहचान ने कुछ हद तक उन्हें बचाव भी मुहैया कराया होगा लेकिन यह भी सही है कि बजाज ने अपना कारोबार लाइसेंस-परमिट राज की तमाम विसंगतियों और विचित्रताओं के बीच खड़ा किया। सन 2014 में बिज़नेस स्टैंडर्ड को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि कैसे दोपहिया वाहन बनाने का पहला औद्योगिक लाइसेंस हासिल करने के मामले में वह चेन्नई के एम ए चिदंबरम से पिछड़ गए थे। बजाज ने कहा था कि चिदंबरम को उस समय लाइसेंस मिला जब तत्कालीन उद्योग मंत्री टी टी कृष्णमाचारी ने उनसे कहा कि वह इटली की दोपहिया निर्माता कंपनी लैंब्रेटा के साथ साझेदारी करें। बजाज की साझेदारी पियाजिओ के साथ थी और उनकी कंपनी को अपनी बारी के लिए दो वर्ष और प्रतीक्षा करनी पड़ी। एक समय देश के दोपहिया वाहन बाजार की पहचान बनने वाला चेतक स्कूटर, बजाज का सबसे अधिक बिकने वाला ब्रांड भी बना। उसे खुले बाजार का लाभ भी मिला। चेतक जब शिखर पर था तब उसकी प्रतीक्षा सूची 10 वर्ष लंबी हो चली थी। इससे बजाज की कारोबारी कुशाग्रता का अनुमान लगाया जा सकता है। सन 1970 के दशक के आरंभ में जब एकाधिकार एवं प्रतिबंधित व्यापार व्यवहार आयोग ने उन्हें क्षमता के उल्लंघन के लिए तलब किया तो वह उसे कारोबार विस्तार के लिए मनाने में सफल रहे। बजाज को 'बॉम्बे क्लब' के नेतृत्व के लिए भी जाना जाता है। बॉम्बे क्लब पारिवारिक स्वामित्व वाले 14 ऐसे कारोबारी घरानों का अनौपचारिक समूह था जिसने सन 1991 के बजट के बाद आयात शुल्क में भारी कमी का विरोध किया था। उस दौर के अधिकांश कारोबारियों के वंशज अब जोर देकर कहते हैं कि ऐसा कोई क्लब कहीं नहीं था। केवल बजाज ने इसे स्वीकार किया और दावा किया कि वित्त मंत्रालय द्वारा तलब किए जाने के बाद बाकी सभी खामोश हो गए। वह मौजूदा सरकार से टकराने में भी पीछे नहीं हटे और 2019 में वरिष्ठ राजनेताओं के साथ एक सार्वजनिक बैठक में उन्होंने खुलकर कहा कि 'डर का माहौल' है। बजाज के प्रभावशाली व्यक्तित्व और अपनी बेबाक बयानी के चलते इस तथ्य पर से ध्यान हट गया कि वह हर मायने में एक भारतीय कारोबारी थे, यानी एक साथ पितृसत्तात्मक भी और समझदार भी। उन्होंने खुद माना कि उन्होंने कार बनाने से संबंधित कई समझौतों का प्रतिरोध किया क्योंकि इससे प्रबंधन पर उनका नियंत्रण कमजोर होता। सन 2000 के दशक के आरंभ में समूह के चीनी, सीमेंट और उपभोक्ता कारोबार के स्वामित्व और नियंत्रण को लेकर अपने भाई के साथ उनका विवाद छह वर्ष तक सार्वजनिक आरोप-प्रत्यारोप के बाद समाप्त हुआ। उन्होंने सबक लिया और अपने दोपहिया और फाइनैंस कंपनी के काम को दोनों बेटों राजीव और संजीव के बीच बांट दिया। दोनों ने अपनी कंपनियों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। राजीव ने पिता की सलाह के विरुद्ध स्कूटर से मोटरसाइकिल का रुख किया और उन्हें न केवल मोटरसाइकिल बाजार में बल्कि निर्यात बाजार में भी सफलता मिली। उनके राजस्व का 40 फीसदी हिस्सा इसी से आता है। एक समूह के रूप में फाइनैंस कारोबार अभी भी टर्नओवर में ज्यादा का हिस्सेदार है। राहुल बजाज अपने पीछे सफल कारोबारी विरासत छोड़ गए हैं। वह अपनी तरह के विशिष्ट व्यक्ति थे लेकिन अभी भी यह परिवार द्वारा नियंत्रित रूढि़वादी कारोबार है।
