नरम नीति से बॉन्ड प्रतिफल पड़ा नरम | |
मनोजित साहा / मुंबई 02 10, 2022 | | | | |
बजट में अगले वित्त वर्ष के लिए अनुमान से ज्यादा उधारी की घोषणा के बाद तेजी से चढ़ चुके बॉन्ड प्रतिफल में आज नरमी दर्ज की गई। केंद्रीय बैंक द्वारा रिवर्स रीपो दर में बदलाव किए बगैर बॉन्ड की रफ्तार को आज कुछ राहत मिली। रिवर्स रीपो दरों में बड़े बदलाव की उम्मीद की जा रही थी। 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड पर प्रतिफल दिन के अंत में 7 आधार अंक घटकर 6.73 प्रतिशत पर बंद हुआ। आरबीआई द्वारा साप्ताहिक नीलामी रद्द किए जाने के बाद पिछले दो कारोबारी सत्रों में बॉन्ड प्रतिफल में नरमी आई है। यह साप्ताहिक नीलामी शुक्रवार को की जानी थी।
क्वांटम एडवायजर्स के सीआईओ अरविंद चारी ने कहा, 'बॉन्ड बाजार आने वाले महीनों में अनुकूल नीति के लिहाज से पहले ही महंगा हो गया है। शायद उनका मानना है कि बॉन्ड बाजार के कुछ सेगमेंट ज्यादा प्रतिक्रियाशील हैं और इसलिए यथास्थिति बनाए रखकर हालात में बदलाव लाना चाहते हैं।'
1 फरवरी को पेश किए गए बजट में 11.2 लाख करोड़ रुपये की शुद्घ उधारी और 14.95 लाख करोड़ रुपये की सकल उधारी की घोषणा की गई थी, जो बाजार के अनुमान से काफी ज्यादा थी। 6.68 प्रति के पूर्व-बजट से, 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड पर प्रतिफल बजट के बाद बढ़कर 6.89 प्रतिशत हो गया।
नीतिगत बैठक के बाद, आरबीआई गवर्नर ने संकेत दिया कि चूंकि अनुकूल रुख में बदलाव नहीं किया गया था, इसलिए दरें भी नहीं बदली गईं। यह 10वीं लगातार नीतिगत बैठक थी, जब मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने दरों को अपरिवर्तित रखा है। पिछली बार दरों में बदलाव मई 2020 में किया गया था।
स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में साउथ एशिया इकोनोमिक रिसर्च की प्रमुख अनुभूति सहाय ने कहा, 'हमने प्रतिकूल मांग-आपूर्ति परिदृश्य को देखते हुए भारतीय सरकारी बॉन्डों पर नकारात्मक रुख बरकरार रखा है। जहां हमारा मानना है कि नीलामियों को रद्द करने जैसे उपायों ने बाजारों को त्वरित राहत प्रदान की है, वहीं ध्यावधि आपूर्ति संबंधित चिंताएं बनी रहेंगी।'
अत्यधिक नरम रुख से विदेशी एक्सचेंज बाजार पर भी असर पड़ा है, क्योंकि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ है। घरेलू रुपया मंगलवार के अपने पिछले बंद भाव के मुकाबले 15 पैसे ऊपर बंद हुआ। सहाय ने कहा, 'हमारा मानना है कि बाजार के अनुमानों को लेकर आरबीआई की सख्ती भारतीय रुपये के लिए अन्य दबाव के तौर पर कार्य करेगी, खासकर ऐसे समय में, जब प्रमुख केंद्रीय बैंक अधिक सख्त रुख अपना रहे हैं। हमने डॉलर-रुपये के लिए अपने लक्ष्य को मार्च के अंत तक 75.50 और वर्ष के अंत तक 77.50 पर बरकरार रखा है।'
बाजार कारोबारियों का भी मानना है कि भारत को वर्ष के अंत तक वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में शामिल किए जाने को लेकर स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं हुई है (बजट में इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहा गया), लेकिन इसका मतलब होगा कि वर्ष के आखिरी हिस्से के दौरान जिस पूंजी प्रवाह की उम्मीद की जा रही थी, वह अब मजबूत बना नहीं रह सकता है।
भारत को वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में शामिल किए जाने के मुद्दे पर आरबीआई गवर्नर ने कहा कि इस कदम के फायदे और नुकसान दोनों हैं, जिसकी वजह है कि सरकार और आरबीआई इस पर सतर्क रुख अपना रहे हैं।
दास ने कहा, 'हमारे दृष्टिकोण में बदलाव आया है। पिछले साल हमने एफएआर- फुली एक्सेसिबल रूट को पेश किया, जिसमें एफआईआई या बाहर से निवेश पर कोई सीमा नहीं थी। बॉन्ड को शामिल करना दोनों तरीके से काम करेगा, आपको देश में संसाधनों का बड़ा प्रवाह मिलेगा और जब आप सूचकांक में शामिल हो जाएंगे तो कुछ खास पूंजी निकासी भी हो सकती है। हमारे डेट प्रोफाइल का मजबूत बिंदु यह है कि 90 प्रतिशत से ज्यादा दबदबा भारतीय रुपये से जुड़ा हुआ है। हमारी घरेलू सरकारी उधारी में विदेशी एक्सचेंज के लिए यह महज 5-6 प्रतिशत है।'
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