पूंजीगत व्यय आवंटन से कई राज्य नाखुश | बीएस संवाददाता / नई दिल्ली/ कोलकाता/ चेन्नई/ मुंबई/ अहमदाबाद/बेंगलूरु February 09, 2022 | | | | |
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 23 में पूंजीगत व्यय के लिए राज्यों को 1 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया है। गैर भाजपा शासित राज्य लचीलापन न होने के कारण इस योजना की आलोचना कर रहे हैं।
अपने बजट भाषण में सीतारमण ने घोषणा की थी कि 'पूंजी निवेश के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता की योजना' के तहत राज्यों को 50 साल के ब्याज मुक्त कर्ज के माध्यम से सहायता बढ़ाई जाएगी। यह योजना पिछले साल 10,000 करोड़ रुपये के शुरुआती आवंटन के साथ शुरू की गई थी, लेकिन राज्यों की ओर से बढ़ती मांग को देखते हुए इसके आवंटन में संशोधन कर 15,000 करोड़ रुपये कर दिया गया था। इसे लेकर ज्यादा मुखर राज्यों में पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु शामिल हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रधान मुख्य सलाहकार और राज्य के पूर्व वित्त मंत्री अमित मित्रा ने इसे 'संघवाद विरोधी' लऔर तमिलनाडु के वित्त मंत्री पीटीआर पलानिवेल त्यागराजन ने इसे 'विशुद्ध लेखा' करार दिया है।
मित्रा ने कहा, 'बढ़ा हुआ आवंटन अर्थव्यवस्था में निवेश को प्रेरित करने वाला नजर आता है, लेकिन इसे गति शक्ति व अन्य कुछ पूंजीगत निवेश तक सीमित कर दिया गया है। उसके बाद इसे विभिन्न घटकों में तोड़़कर समेट दिया गया है। इस तरह से देश के संघीय ढांचे के साथ समझौता किया गया है और निवेश करने के उनके फैसले को प्रभावित किया गया है। यह संघवाद विरोधी है और इससे नियंत्रण अपने हाथ लेने की मंशा का पता चलता है।'
वित्त वर्ष 22 में आवंटन के तीन हिस्से थे, जिसमें पहाड़ी व गैर पहाड़ी राज्यों को आवंटन और बुनियादी ढांचा संपत्तियों के मुद्रीकरण को प्रोत्साहन और राज्य की सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों के विनिवेश के तहत आवंटन शामिल था। पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्य इस आधार पर भी आलोचना कर रहे हैं कि यह 'सहायता' कर्ज है, न कि अनुदान।
केरल के वित्त मंत्री केएन बालगोपाल ने कहा, 'अगर आप पूरे देश के हिसाब से देखते हैं तो 1 लाख करोड़ रुपये बहुत मामूली राशि है। इसे अनुदान के रूप में दिया जाना चाहिए था।'
बालगोपाल का यह भी कहना है कि केंद्रीय करों का विभाजन इस साल 15,000 करोड़ रुपये कम हुआ है। मित्रा ने भी कहा कि विभाजन 2020-21 में 11,000 करोड़ रुपये कम हुआ है।
तमिलनाडु के वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार ने अनुदानों और योजनाओं में राजस्व व्यय कम कर दिया है और कई विभागों में यह पूर्ववत है या मामूली कम हुआ है या मामूली बढ़ा है।
वित्त मंत्री के मुताबिक यह विशुद्ध लेखा है। उन्होंने कहा, 'उन्होंने अनुदान और योजनाओं को कर्ज में तब्दील कर दिया। उन्होंने कई राजस्व व्यय खत्म कर दिए। ऐसे में राजस्व घाटा कम और राजकोषीय रूप से दायित्वपूर्ण नजर आ रहा है और इसे पूंजीगत व्यय में दिखा दिया गया है। पूंजीगत व्यय के आंकड़े ज्यादा नजर आ रहे हैं और सालाना आधार पर कैपेक्स को अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा प्रोत्साहन बताया जा रहा है।'
केंद्र सरकार का कोविड से उबरने का ट्रंप कार्ड पूंजीगत व्यय को लेकर है, न कि खपत बढ़ाकर। लेकिन इंडिया रेटिंग्स के प्रधान अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा का कहना है कि पूंजीगत व्यय में कम अवधि और दीर्घावधि का हिसाब बेहतर हो सकता था। उन्होंने कहा, 'तीन मंत्रालयों- रेलवे, राजमार्ग और रक्षा की कुल 7.5 लाख करोड़ रुपये पूंजीगत व्यय में हिस्सेदारी करीब दो तिहाई है, जो दीर्घावधि की योजनाएं हैं। कम अवधि की और कम वक्त लगने वाली परियोजनाएं सामान्यतया राज्यों के हाथ में हैं। ऐसे में राज्यों द्वारा 1 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का विचार बेहतर है, लेकिन यह अव्यावहारिक भी लगता है क्योंकि राज्य संभवत: शर्तें पूरा करने में सफल न हो पाएं।'
लेकिन कुछ राज्य खुश हैं, और वे सिर्फ भाजपा शासित राज्य नहीं हैं। महाराष्ट्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'यह एक अच्छा कदम है और हम इसका स्वागत करते हैं।' पिछले साल राज्य को करीब 600 करोड़ रुपये केंद्र से कर्ज के रूप में इस योजना के तहत मिले थे।
उन्होंने कहा, 'शुरुआत में करीब 600 करोड़ रुपये हमें आवंटित किए गए थे। लेकिन बाद में केंद्र ने हमसे अन्य प्रस्ताव भेजने को कहा। इस तरह से हमें शुरुआती कोटे का दोगुना मिल गया। इस धन का इस्तेमाल सिंचाई और सड़क परियोजनाओं के लिए किया गया।'
भाजपा शासित गुजरात और कर्नाटक ने इस फैसले का जोरदार स्वागत किया। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोंबई ने कहा, 'पिछली बार हमें 26,000 करोड़ रुपये मिले थे और इस साल हम 29,000 करोड़ रुपये पा सकते हैं।'
गुजरात के आर्थिक मामलों के सचिव मिलिंद तारवाणे ने कहा कि यह आवंटन 50 साल के ब्याजमुक्त कर्ज के रूप में है और यह सामान्य उधारी की अनुमति से ऊपर है और राज्य इसका इस्तेमाल पीएम गतिशक्ति परियोजनाओं के लिए कर सकते हैं।
(असित रंजन मिश्र, ईशिता आयान दत्त, शाइन जैकब, विनय उमरजी, दीपशेखर चौधरी और अनीश फडणीस की रिपोर्ट)
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