सरकार द्वारा सब्सिडी में कटौती से पड़ सकता है खपत पर असर | |
कृष्ण कांत / मुंबई 02 09, 2022 | | | | |
उपभोक्ता मांग से जुड़े क्षेत्रों की कंपनियों के लिए वित्त वर्ष 2022-23 कठिन साबित हो सकता है। सब्सिडी में कटौती, तेल के ज्यादा दाम और ब्याज दरों में बढ़ोतरी सहित कुछ वजहों से रोजमर्रा के इस्तेमाल वाली उपभोक्ता वस्तुओं (एफएमसीजी) और ऑटोमोटिव जैसे क्षेत्रों को कठिन दौर से गुजरना पड़ सकता है।
वित्त वर्ष 23 में खपत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा खाद्य, उर्वरक और ईंधन सब्सिडी में कटौती और राजस्व व्यय में कमी है। विश्लेषकों का कहना है कि यह परिवारों की क्रय शक्ति पर बुरा असर डालेगा, जो आमदनी के निचले स्तर पर हैं और इससे उपभोक्ता वस्तुओं व सेवाओं पर खर्च में कमी आएगी।
2022-23 के केंद्रीय बजट में खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम पर सब्सिडी में 26.6 प्रतिशत की कटौती का प्रस्ताव किया गया है और यह वित्त वर्ष 22 के 4.33 लाख करोड़ रुपये से घटाकर वित्त वर्ष 23 में 3.18 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के आवंटन में भी वित्त वर्ष 23 में 25.5 प्रतिशत कमी करने का फैसला किया है और यह वित्त वर्ष 22 के संशोधित अनुमान 98,000 करोड़ रुपये की तुलना में घटकर 73,000 करोड़ रुपये रह गया है। जेएम इंस्टीट्यूशनल इक्विटी के एमडी और मुख्य रणनीतिकार धनंजय सिन्हा ने कहा, 'बजट में उठाए कदमों का असर ग्रामीण इलाकों में महसूस किया जाएगा, जहां परिवारों की आमदनी में सब्सिडी प्रमुख है। खाद्य व उर्वरक सब्सिडी में कटौती और रोजगार गारंटी योजना में आवंटन कम किए जाने से सस्ते उपभोक्ता सामान जैसे दोपहिया वाहनों की मांग कम होने की संभावना है।'
इन कदमों की वजह से केंद्र सरकार के कुल मिलाकर राजस्व व्यय में वित्त वर्ष 23 में सिर्फ 0.9 प्रतिशत बढ़ोतरी होगी, जो कम से कम 52 साल की सबसे सुस्त वृद्धि है। सार्वजनिक ऋण पर ब्याज भुगतान को निकाल दें तो केंद्र का शुद्ध राजस्व व्यय वित्त वर्ष 23 में पिछले साल से 4.2 प्रतिशत कम हुआ है। 1971-72 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है, जब राजस्व व्यय में गिरावट आई है।
वित्त वर्ष 23 में सब्सिडी में कटौती वित्त वर्ष 22 में तेज कटौती की तरह ही है। केंद्र सरकार का खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम सब्सिडी पर व्यय वित्त वर्ष 22 में 33.24 प्रतिशत गिरने का अनुमान लगाया गया है। इसका असर पहले ही निजी अंतिम खपत व्यय (पीएफसीई) पर दिख रहा है, जो अर्थव्यवस्था में निजी खपत का योग होता है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में पीएफसीई का हिस्सा वित्त वर्ष 22 में 9 साल के निचले स्तर 57.5 प्रतिशत पर रहने की संभावना है। ऐतिहासिक रूप से देखें तो सब्सिडी में बढ़ोतरी और कल्याणकारी योजनाओं जैसे मनरेगा पर ज्यादा व्यय से पीएफसीई को समर्थन मिला है, खासकर ऊर्जा की कीमत में बढ़ोतरी जैसे वृहद आर्थिक दबाव के दौरान यह समर्थन नजर आया है।
सब्सिडी में कटौती ऐसे समय में की गई है, जब ईंधन और जिंसों के दाम बढऩे से परिवारों की आजीविका का खर्च बढ़ा है। बैंक आफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'कच्चे तेल में हाल की बढ़ोतरी से महंगाई बढ़ेगी और परिवारों को विवेकाधीन खर्च टालने पर बाध्य होना पड़ेगा क्योंकि उन्हें खाने, यात्रा और अन्य अहम जरूरतों के लिए नकदी बचानी होगी। इसकी वजह से जीडीपी में पीएफसीई की हिस्सेदारी और कम होगी।'
पिछली बार जब वित्त वर्ष 10 से 14 के बीच तेल के दाम में भारी बढ़ोतरी हुई थी तो सरकार ने पेट्रोलियम सब्सिडी बढ़ाकर इसकी भरपाई की थी। इस बार ऐसा कुछ नहीं किया गया है।
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