कोविड प्रतिबंधों ने उत्तर प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनावों की रौनक खत्म कर दी है। चुनावों के दौरान होने वाले पोस्टर, बैनर, चुनाव सामग्रियों से लेकर टैक्सी, टेंट जैसे कई धंधों पर इस बार के चुनाव में कोरोना का असर पड़ा है। प्रचार में भीड़ लेकर न चलने का प्रतिबंध, रैलियों, सभाओं पर रोक जैसे कई प्रावधानों के चलते कारोबार पर खासा असर पड़ा है। चुनावों के दौरान प्रचार सामग्री बेचने वाली दुकानों पर भी सन्नाटा नजर रहा है तो प्रिटिंग प्रेसों में दिखने वाली भीड़ और ऑर्डर नदारद हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी में भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी के कार्यालयों के बाहर प्रचार सामग्री बेचने वाली दुकानें सजी जरूर हैं पर धंधा बहुत कम हो रहा है। भाजपा व सपा कार्यालय के बाहर दुकानों पर कुछ चहल पहल है लेकिन ऑर्डर पहले के मुकाबले कम दिए जा रहे हैं। राजधानी में ज्यादातर पार्टी दफ्तरों के बाहर दुकान सजाने वाला केके प्रिंटर्स के रामजी लाल का कहना है कि इस बार पहले के मुकाबले धंधा आधा भी नहीं रह गया है। उनका कहना है कि प्रचार पर कोरोना के प्रतिबंध हावी हैं और चुनाव आयोग की सख्ती भी ज्यादा है। पिछले चुनावों में जहां पार्टीवार 50-60 करोड़ रुपये से ज्यादा के ऑर्डर मिल जाते थे, वहीं इस बार एक तिहाई कारोबार भी न हो पाने की उम्मीद है। हालांकि इस बार के चुनावों के लिए दिल्ली से कैप, बिंदी, टी-शर्ट जैसे फैंसी आइटम बन कर आए हैं पर बिक्री बहुत कम हो पा रही है। राजधानी के प्रमुख प्रिटिंग कारोबारी आलोक प्रिंटर्स के आलोक सक्सेना बताते हैं कि कोरोना प्रतिबंधों में ढील की आस लगाते कागज आदि का एडवांस ऑर्डर किया था पर चुनाव आयोग ने अब तक तो कोई सहूलियत नहीं दी है। उनका कहना है कि लेक्स बैनर, होर्डिंग और पोस्टर भी आयोग की सख्ती की वजह से कम ही बन रहे हैं। वैसे तो बीते कई चुनावों से आयोग की सख्ती के चलते लोकसभा व विधानसभा चुनावों में पोस्टर, कार्ड व हैंडबिल का चलन घटा है पर इस बार और भी कम हो गया है। सक्सेना कहते हैं कि प्रदेश में पहले व दूसरे चरण का चुनाव उफान पर है पर अभी तक कोरोना प्रतिबंध लागू हैं। उनकी कहना है कि अगर फरवरी के पहले हफ्ते में प्रतिबंधों में कुछ ढील भी दी जाती तो भी बाजार के उठने की उम्मीद कम ही है। लखनऊ में ट्रैवल्स का काम करने वाले धर्मेंद्र्र सिंह बताते हैं कि गाडिय़ों का काफिला लेकर चलने पर रोक है और रैलियां या बड़ी सभाएं नहीं की जा सकती हैं। इन सबके चलते टैक्सी की मांग न के बराबर है। उनका कहना है कि प्रत्याशी निजी गाडिय़ों से ही काम चला ले रहे हैं तो टैक्सी की मांग कहां से होगी। हां उनका कहना है कि इस बार शोरूमों से नयी गाडिय़ां धड़ल्ले से बिकी हैं और सबसे ज्यादा मांग में एसयूवी रही हैं।
