कपास पर आयात शुल्क हटाने की मांग | शाइन जैकब और संजीव मुखर्जी / चेन्नई/नई दिल्ली January 30, 2022 | | | | |
कपड़ा क्षेत्र के साझेदारों ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बैठक में सभी प्रकार के कपास पर या कम से कम अतिरिक्त लंबी स्टेपल कपास पर आयात शुल्क हटाने का दबाव बनाया है ताकि कीमतों में उछाल पर रोक लगाई जा सके और उन्होंने मंत्री के समक्ष कपास कंपनियों द्वारा तथाकथित जमाखोरी का मुद्दा भी उठाया।
कपास की एक कैंडी की कीमत अब 80,000 रुपये हो चुकी है जो 2020 में 37,000 रुपये थी। कपास की एक कैंडी 356 किलोग्राम के बराबर होती है। सामान्यतया प्रति कैंडी 1,000 रुपये कीमत बढऩे पर प्रति किलोग्राम सूत में 4 रुपये का इजाफा होता है।
घरेलू कच्चे कपास की कीमतें पिछले वर्ष जनवरी से इस साल तक करीब 69 फीसदी बढ़ी हैं जबकि अंतरराष्ट्रीय कीमतों में इस दौरान करीब 65 फीसदी की वृद्घि हुई है।
कपास और सूत के दामों में उछाल और वायदा कारोबार के अलावा कपास की तथाकथित जमाखोरी को लेकर उद्योग को चिंता है। उद्योग समूहों और तमिलनाडु सरकार ने कहा था कि बाजार में करीब 8 करोड़ गांठों (एक गांठ बराबर 170 किलोग्राम) की कमी है। यह कमी व्यापारियों या किसानों के पास हो सकती है। उद्योग संगठनों ने सीतारमण से कमोडिटी एक्सचेंजों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की साझेदारी के विनियमन में, बाजार में जगह नहीं पाने वाले कपास को बाहर लाने और भारतीय कपास निगम (सीसीआई) को न्यूनतम समर्थन मूल्य से थोड़ी अधिक कीमत पर कपास की खरीद करने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की है।
बैठक में मौजूद एक सूत्र के मुताबिक वित्त मंत्रालय इस बात से पूरी तरह अवगत नहीं था कि सीसीआई ने अब तक कपास की कोई खरीद नहीं की है। सूत्र ने कहा, 'ईएलएस कपास पर से भी आयात शुल्क को हटाने के मसले को लेकर मंत्रालय चिंतित था कि इससे किसानों पर किस प्रकार का असर पड़ेगा। मंत्री ने उद्योग के विचार जानने के बाद तुरंत एक प्रतिवेदन भेजने की सलाह दी जिस पर कि वह विचार करेंगी।'
भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ (सिटी) के चेयरमैन टी राजकुमार, तमिलनाडु स्पिनिंग मिल्स एसोसिएशन के प्रमुख सलाहकार के वेंकटचलम और फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशंस के चेयरमैन ए शक्तिवेल आदि ने उद्योग का प्रतिनिधित्व किया। इसमें तमिलनाडु सरकार के प्रतिनिधि भी शामिल रहे।
उद्योग की कंपनियों के मुताबिक कपास पर 11 फीसदी तक आयात शुल्क लगाए जाने के कारण शुल्क छूट योजना के तहत अग्रिम अधिकार पत्र को छोड़कर कपास का आयात संभव नहीं है। लिहाजा, अधिकांश घरेलू परिचालन अब केवल स्थानीय कपास पर ही निर्भर है। इसके कारण से मांग बढ़ गई है। कपास को एमसीएक्स/नैशनल कमोडिटी क्लियरिंग के तहत कारोबार के लिए सूचीबद्घ करने की अनुमति भी दी जा रही है और इसके कारण बड़े स्तर पर सट्टेबाजी हो रही है और कच्चे कपास की कीमतों में अवास्तविक कीमत वृद्घि के लिए जिम्मेदार कारणों में से यह भी एक है क्योंकि अधिकांश व्यापारी अनुमान पर कारोबार कर रहे हैं।
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