संकट गहराया तो कच्चा तेल पहुंचेगा 125 डॉलर | पुनीत वाधवा / नई दिल्ली January 27, 2022 | | | | |
यूकेन को लेकर रूस और नाटो के बीच बढ़ता तनाव पिछले कुछ दिनों से प्रमुख जिंसों खास तौर से कच्चे तेल पर असर डाल रहा है। विश्लेषकों ने कहा कि संकट गहराने की स्थिति में कच्चे तेलकी कीमतें 125 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं।
ब्रेंट क्रूड की कीमतें पहले ही 90 डॉलर के पार निकल चुकी है और एक महीने में यह 14 फीसदी चढ़ा है। विश्लेषकों को लगता है कि अगर मौजूदा तनाव युद्ध की ओर बढ़ता है तो तेल की कीमतें 125 डॉलर प्रति बैरल को छू सकती हैं, जो मौजूदा स्तर से करीब 40 फीसदी ज्यादा होगा।
राबोबैंक इंटरनैशनल के वैश्विक रणनीतिकार माइकल एवरी ने हालिया नोट में कहा है, युद्ध के कारण जोखिम प्रीमियम बढ़ेगा और परिवहन की लागत भी बढ़ेगी। इस आधार पर तेल की कीमतें 125 डॉलर पर पहुंच सकती हैं जबकि प्राकृतिक गैस की कीमतें 200 डॉलर प्रति बैरल के तेल भाव के समकक्ष होगी। यह मानते हुए कि सभी देश रूस से ऊर्जा खरीद बंद कर देंगे, कीमत का संभावित असर काफी ज्यादा होगा और तेल की कीमतें 175 डॉलर प्रति बैरल और यूरोपीय गैस 250 डॉलर पर होगी।
रूस विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस उत्पादक है और वैश्विक बाजार में उसकी हिस्सेदारी साल 2020 में क्रमश: 12 फीसदी व 17 फीसदी थी। यह जानकारी वल्र्ड एनर्जी के आंकड़ों से मिली। साल 2020 में यूरोपीय ओईसीडी देशों ने रूस के निया4त का 48 फीसदी कच्चा तेल व कंडन्सेंट खरीदा और प्राकृतिक गैस का 72 फीसदी खरीदा।
यूबीएस के विश्लेषकों ने हालिया नोट में कहा है, गंभीर परिस्थितियों में हम मानकर चल रहे हैं कि रूस के तेल उत्पादन व निर्यात का 10 से 20 फीसदी प्रभावित होगा, ऐसे में ब्रेंट की कीमतें 125 डॉलर या उससे ज्यादा हो जाएगी। ज्यादा कीमतें तेल की मांग पर असर डालती है। कीमत पर प्रतिक्रिया का स्तर उस पर निर्भर करेगा कि यह अवरोध कब पैदा होता है। ओपेक व अन्य के पास अभी खाली क्षमता है ऐसे में समूह उत्पादन बढ़ा सकता है और तत्काल अवरोध की भरपाई कर सकता है। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि कूटनीतिक कोशिशों से स्थिरता आएगी और इसके परिणामस्वरूप तनाव घटेगा, लेकिन ऐसा होने में कई महीने लग सकते हैं और इस दौरान कच्चे तेल की कीमतों पर नकारात्मक असर दिख सकता है। रिपोर्ट से पता चलता है कि पश्चिमी देश पहले ही सैन्य तैयारी बढ़ा चुके हैं और ऊर्जा आपूर्ति के संभावित झटके से यूरोप को बचाने की योजना बना चुके हैं।
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