कच्चे तेल के उबाल से बढ़ेगी मुश्किल | कृष्ण कांत / मुंबई January 27, 2022 | | | | |
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गए हैं। ऐसे में भारत का 634 अरब डॉलर का रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा भंडार भी शायद भारतीय रुपये को तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के प्रतिकूल असर से बचाने में पर्याप्त साबित नहीं होगा। वित्त वर्ष 2022 के पहले 9 महीनों के दौरान भारत के कुल आयात में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, जिससे रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा भंडार होने के बावजूद आयात कवर घटा है।
दिसंबर 2021 के आखिर में विदेशी मुद्रा भंडार भारत के 12.8 महीनों के वस्तुगत आयात के बराबर था। यह वित्त वर्ष 2021 में 17.7 महीनों की रिकॉर्ड ऊंचाई से कम है। यह अनुपात आगे और घटने के आसार हैं क्योंकि वित्त वर्ष 2022 के पहले 9 महीनों में ब्रेंट क्रूड के दाम औसतन 74 डॉलर प्रति बैरल रहे हैं। यह स्तर तेल की मौजूदा कीमतों 90 डॉलर प्रति बैरल से करीब 18 फीसदी कम है।
बहुत से विश्लेषकों का कहना है कि भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के असर से प्रभावी तरीके से बचाने के लिए काफी अधिक विदेशी मुद्रा भंडार की दरकार है। जेएम फाइनैंस इंस्टीट््यूशनल इक्विटी के एमडी और मुख्य रणनीतिकार धनंजय सिन्हा ने लिखा, 'भारत का आवश्यक विदेशी मुद्रा भंडार का हमारा अनुमान चालू खाते के घाटे और और भारत-अमेरिका के बीच अल्पावधि की ब्याज दरों में बढ़ते अंतर के कारण अप्रैल 2020 में 270 अरब डॉलर के निचले स्तर से बढ़कर 659 अरब डॉलर पर पहुंच गया है।'
भारत का वास्तविक विदेशी मुद्रा भंडार न केवल इष्टतम भंडार से करीब 25 अरब डॉलर कम है बल्कि वह अक्टूबर 2021 के अंत में रिकॉर्ड ऊंचाई 642 अरब डॉलर से भी कम है। धनंजय ने कहा, 'नतीजतन विदेशी मुद्रा भंडार या मासिक आयात अप्रैल 2020 में 24 गुना से घटकर अब 12 गुना पर आ गया है।'
इससे विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये पर दबाव रहने के आसार हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'तेल की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच रही हैं, जिससे भारतीय रुपये पर नया दबाव आ सकता है। तेल की ऊंची कीमतों का मतलब है कि आयात बिल बढ़ेगा, जो भारतीय रुपये के लिए नकारात्मक है। हमारा अनुमान है कि तेल की कीमतों में 10 फीसदी बढ़ोतरी से चालू खाते के घाटे में 15 अरब डॉलर की बढ़ोतरी होगी।'
अगर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार ओर कच्चे तेल की कीमतों पर गौर करें तो इन दोनों के बीच ऐतिहासिक रूप से बहुत ज्यादा नकारात्मक सह संबंध रहा है। उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान इंपोर्ट कवर गिरकर 7.2 महीने के निचले स्तर पर चला गया था, जब भारत के क्रूड बास्केट की कीमत 112 डॉलर प्रति बैरल के सर्वोच्च स्तर पर था।
भारत का कच्चे तेल का आयात अप्रैल-दिसंबर 2021 के दौरान पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 119.2 प्रतिशत बढ़कर 118.3 अरब डॉलर पर पहुंच गया, जो वित्त वर्ष 2021 की समान अवधि में 54 अरब डॉलर था। इस दर के हिसाब से भारत का तेल आयात बिल वित्त वर्ष 2022 में करीब 158 अरब डॉलर रहने की संभावना है, जो वित्त वर्ष 2014 में रहे अब तक के सर्वाधिक आयात बिल 165 अरब डॉलर की तुलना में बहुत मामूली कम है। वित्त वर्ष 21 के 9 महीनों के 39.3 डॉलर प्रति बैरल की तुलना में भारत के क्रूड बॉस्केट की कीमत 85 प्रतिशत बढ़ी है और वित्त वर्ष 22 के पहले 9 महीनों में यह 72.8 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है।
तेल आयात का बिल ज्यादा होने का असर भारत के कुल आयात बिल पर भी पड़ा है। इसकी वजह से व्यापार घाटे और चालू खाते के घाटे में तेज बढ़ोतरी हुई है। भारत का कुल मिलाकर वस्तुओं का आयात वित्त वर्ष 21 के शुरुआती 9 महीनों के 263 अरब डॉलर की तुलना में 69 प्रतिशत बढ़कर चालू वित्त वर्ष के शुरुआती 9 महीनों में 444 अरब डॉलर हो गया है। कुल मिलाकर व्यापार घाटा वित्त वर्ष 22 के शुरुआती 9 महीनों में 142.4 अरब डॉलर हो गया, जो अप्रैल-दिसंबर 2020 में 61.4 अरब डॉलर था।
अब ज्यादातर विश्लेषक उम्मीद कर रहे हैं कि तेल के दाम बढऩे के कारण भारत के व्यापार घाटे और कुल मिलाकर चालू खाते के घाटे में तेज बढ़ोतरी होगी। बैंक आफ बड़ौदा के मदन सबनवीस को उम्मीद है कि भारत का चालू खाते का घाटा वित्त वर्ष 22 में जीडीपी के करीब 2 प्रतिशत बढ़ेगा, जो वित्त वर्ष 21 में अधिशेष था।
जेएम फाइनैंशियल के धनंजय सिन्हा ने कहा कि वित्त वर्ष 22 की दूसरी छमाही में चालू खाते का घाटा जीडीपी का 4 प्रतिशत रहेगा जो पहली छमाही में करीब 3 प्रतिशत रहा है।
चालू खाते का घाटा अधिक होना भारत की मुद्रा के लिए ऐसे समय में बुरी खबर है, जब विदेशी पूंजी का प्रवाह अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति में बदलाव के कारण कम रहने की संभावना है।
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