5जी से राजस्व को कितनी मिलेगी धार | सुरजीत दास गुप्ता / नई दिल्ली January 13, 2022 | | | | |
यदि आपको लगता है कि 5जी सेवा शुरू होने से दूरसंचार कंपनियों के प्रति उपयोगकर्ता औसत राजस्व (एआरपीयू) में वृद्धि होगी और उन्हें अधिक मुनाफा कमाने का अवसर मिलेगा तो जरा नए सिरे से विचार करें। प्रमुख दूरसंचार कंपनी वोडाफोन आइडिया द्वारा हाल में दूरसंचार नियामक ट्राई को दी गई एक प्रस्तुति से पता चलता है कि 5जी सेवाओं के शुरू होने से ऑपरेटरों के एआरपीयू को कोई खास रफ्तार नहीं मिली है।
वोडाफोन आइडिया ने उन 23 देशों से आंकड़े जुटाए हैं जहां 5जी सेवाएं शुरू की गई हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि 5जी सेवा शुरू होने के बाद पहली छह से दस तिमाहियों के दौरान सकल भारित एआरपीयू में महज 1 फीसदी की वृद्धि हुई। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से 13 देशों में 5जी सेवाओं के लॉन्च होने के बाद ऑपरेटरों के एआरपीयू में गिरावट दर्ज की गई है। इन देशों में ऑस्ट्रेलिया (2 फीसदी की गिरावट), कनाडा (4.4 फीसदी की गिरावट), फ्रांस (1.7 फीसदी की गिरावट), चीन (0.7 फीसदी की गिरावट) आदि शामिल हैं। इनमें दक्षिण कोरिया का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा और वहा पहली आठ तिमाहियों के दौरान एआरपीयू वृद्धि 3.5 फीसदी पर सर्वाधिक रही।
वोडाफोन आइडिया ने यह भी कहा है कि ऐसी ही प्रवृत्ति उस दौरान भी दिखी थी जब वित्त वर्ष 2016 में भारतीय दूरसंचार कंपनियों ने 3जी से 4जी की ओर रुख किया था। वित्त वर्ष 2016 से वित्त वर्ष 2021 के दौरान सभी दूरसंचार कंपनियों के एआरपीयू का सीएजीआर 3.9 फीसदी नकारात्मक रहा जो वित्त वर्ष 2016 में 128 रुपये से घटकर वित्त वर्ष 2021 में 105 रुपये रहा गया।
कंपनी ने आगामी स्पेक्ट्रम नीलामी के दौरान 5जी स्पेक्ट्रम के आधार मूल्य में कमी किए जाने की आवश्यकता को उचित ठहराने के लिए यह प्रस्तुति दी है। उसका कहना है कि 5जी स्पेक्ट्रम के आधार मूल्य में कमी किया जाए ताकि दूरसंचार कंपनियां एक व्यवहार्य कारोबारी मॉडल तैयार कर सकें। उसने यह भी स्पष्ट किया है कि 5जी सेवाओं के शुरू होने से हेल्थटेक, कनेक्टेड कार्स, प्राइवेट नेटवक्र्स, ऑनलाइन रिटेल और एडुटेक जैसी नए जमाने की सेवाओं को रफ्तार मिलेगी। जाहिर तौर पर इससे स्मार्टफोन की बिक्री बढ़ेगी।
एयरटेल ने भी वोडाफोन आइडिया के रुख का समर्थन किया है। दूरसंचार नियामक को दी गई अपनी प्रस्तुति में दूरसंचार कंपनियों ने कहा है कि पिछले एक दशक के दौरान प्रति वर्ष प्रति मेगाहट्र्ज राजस्व प्राप्ति में गिरावट आई है। प्रस्तुति में स्पष्ट तौर पर सुझाव दिया गया है कि नीलामी वाले स्पेक्ट्रम के मूल्य में वृद्धि 2022 में पहले के मुकाबले कम होगा। उदाहरण के लिए, प्रति वर्ष प्रति मेगाहट्र्ज ऐक्सेस राजस्व 2014 में 76 करोड़ रुपये था जो नाटकीय तौर पर घटकर 2021 में महज 45 करोड़ रुपये रह गया।
दूरसंचार कंपनियों का कहना है कि इस तथ्य में इसकी झलक मिलती है कि अधिक आधार मूल्य होने के कारण काफी स्पेक्ट्रम की बिक्री नहीं हो पाई। उसने कहा कि 2014 में भी ऐसा ही हुआ और महज 18 फीसदी बिना बिके स्पेक्ट्रम की पेशकश की गई लेकिन धीरे-धीरे यह आंकड़ा बढ़कर 2021 में 63 फीसदी हो गया। साल 2010 की नीलामी के बाद से अब तक पेशकश किए जाने वाले कुल स्पेक्ट्रम में सभी बैंडों के बिना बिके स्पेक्ट्रम का औसत 41 फीसदी तक पहुंच गया।
रिलायंस जियो ने अपनी प्रस्तुति में स्पेक्ट्रम के कहीं अधिक तर्कसंगत मूल्य निर्धारण का आग्रह किया है। उसने कहा है कि वार्षिक आवर्ती राजस्व के प्रतिशत के तौर पर स्पेक्ट्रम लागत भारत में सर्वाधिक है। भारत में यह 32 फीसदी है जबकि चीन में महज 1 फीसदी, ब्रिटेन में 8 फीसदी, ब्राजील में 4 फीसदी और जर्मनी में 10 फीसदी है।
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