ब्याज दरों में इजाफा | संपादकीय / January 11, 2022 | | | | |
मुद्रा की लागत में इजाफा हो रहा है। 10 वर्ष अवधि के सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल बीते दो वर्षों के उच्चतम स्तर पर है और सितंबर 2021 से इसमें 40 आधार अंक की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि प्रतिफल का सामान्यीकरण जरूरी भी है और अच्छा भी है लेकिन इसका असर सरकार और वित्तीय बाजार दोनों पर पड़ेगा। मुद्रा की लागत बढऩे की कई वजह हैं। सरकार की ऋण संबंधी आवश्यकताएं बढ़ी हुई हैं जिससे बॉन्ड की आपूर्ति ऊंचे स्तर पर बनी रहेगी। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर नीचे आई है और अब वह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के तय दायरे के भीतर है, लेकिन कीमतों पर दबाव बरकरार है और वह थोक मूल्य सूचकांक आधारित दो अंकों की मुद्रास्फीति में परिलक्षित हो रहा है। बहरहाल, बॉन्ड कीमतों में तेजी का सबसे बड़ा कारक है आरबीआई द्वारा नकदी की स्थिति को सामान्य बनाना।
आरबीआई बाजार की ब्याज दरों को कम रखने तथा कोविड-19 के कारण मची उथलपुथल को सीमित रखने के लिए नकदी की स्थिति को अपेक्षाकृत ऊंचा रख रहा था। उसने कम दरों पर सरकारी ऋण का स्तर भी काफी ऊंचा रखा। बहरहाल, लंबे समय तक नकदी का स्तर ऊंचा बनाए रखने के जोखिम हैं। इससे उपभोक्ता और परिसंपत्ति कीमत दोनों जगह महंगाई बढ़ सकती है। कम ब्याज दरें और मुद्रा की आसान उपलब्धता के कारण शेयर कीमतें भी बढ़ती रहीं। परंतु आरबीआई ने सामान्यीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी है और अब वह अतिरिक्त नकदी भी कम कर रही है। उसने बॉन्ड खरीद कार्यक्रम बंद कर दिया है और वह रिवर्स रीपो दर जैसे उपायों के माध्यम से व्यवस्था से नकदी निकाल रहा है। अर्थव्यवस्था पर बने हुए मुद्रास्फीतिक दबाव तथा अतिरिक्त नीतिगत समायोजन के साथ जुड़े खतरों को देखते हुए कहा जा सकता है कि आरबीआई को यह प्रक्रिया काफी पहले शुरू कर देनी थी।
आरबीआई इकलौता ऐसा केंद्रीय बैंक नहीं है जो सामान्यीकरण की नीति अपना रहा है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दिसंबर में हुई बैठक से पता चलता है कि वहां भी ब्याज दरें अपेक्षा से पहले बढ़ाई जा सकती हैं। अधिकांश कारोबारी मानते हैं कि पहली बढ़ोतरी मार्च में की जा सकती है। गोल्डमैन सैक्स का अनुमान है कि फेड इस वर्ष चार बार दरों में इजाफा करेगा। अमेरिका में महामारी के कारण मची उथलपुथल से निपटकर आर्थिक सुधार की प्रक्रिया अनुमान से तेज है। वहां बेरोजगारी दर भी घटकर 4 फीसदी से नीचे आ चुकी है। परंतु मुद्रास्फीति की दर लक्ष्य से काफी ऊंची है। अनुमान है कि दिसंबर में यह 7 फीसदी पहुंच गई है। अनुमान तो यह भी है कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक अपनी बैलेंस शीट का आकार कम करना शुरू कर देगा। महामारी की शुरुआत के बाद से इसका आकार दोगुना हो चुका है।
अमेरिका में ब्याज दर के ऊंचा होने और वैश्विक वित्तीय हालात के तंग होने के कारण उभरते बाजारों से पूंजी एक बार फिर बाहर जा सकती है। 2021 की अंतिम तिमाही में भारतीय बाजारों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का रुख बिकवाली का रहा। उच्च ब्याज दरें शेयर कीमतों को भी प्रभावित करेंगी क्योंकि कर्ज अपेक्षाकृत आकर्षक हो जाता है। महामारी ने भारत समेत दुनिया भर में सार्वजनिक ऋण में इजाफा किया है। उच्च सरकारी व्यय और ब्याज दरें सरकारों की व्यय क्षमता को प्रभावित करेंगी जिससे मध्यम अवधि में शेयर बाजार मूल्यांकन और वृद्धि प्रभावित होंगे। हालिया तिमाहियों में लागत कटौती और करों में कमी की बदौलत आय में वृद्धि हुई है लेकिन यह मजबूत राजस्व वृद्धि के अभाव में इसमें स्थायित्व नहीं होगा। आने वाले महीनों में शेयर बाजार को वित्तीय परिस्थितियों में कड़ाई से निपटना होगा। इससे मूल्यांकन में कमी आ सकती है।
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