बैंकों ने 5 साल में वसूली राशि से दोगुनी बट्टे खाते में डाली | मनोजित साहा / मुंबई January 06, 2022 | | | | |
देश में वाणिज्यिक बैंकों ने पिछले पांच वर्षों में 9.54 लाख करोड़ रुपये के भारी-भरकम फंसे ऋण बट्टे खाते में डाले हैं, जिनमें 7 लाख करोड़ रुपये से अधिक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के हैं। बैंकों की तरफ से बट्टे खाते में डाली गई धनराशि इस अवधि में वसूली गई राशि की दोगुनी से अधिक है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में लोक अदालतों, कर्ज वसूली न्यायाधिकरणों, सरफेसी अधिनियम और ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) जैसे विभिन्न जरियों से वसूली गई राशि 4.14 लाख करोड़ रुपये रही।
आम तौर पर बैंक अधिकारी तर्क देते हैं कि बट्टे खाते में डालने का मतलब यह नहीं है कि उनके पास इन ऋणों की वसूली का विकल्प नहीं है क्योंकि इन्हें तकनीकी रूप से बट्टे खाते में डाला गया है। हालांकि आंकड़ों से पता चलता है कि बैंकों की वसूली बट्टे खाते में डाली गई राशि से आधी है, जबकि यह वसूली केवल बट्टे खाते से ही नहीं हुई है। बैंकों के कम फंसे ऋणों की एक प्रमुख वजह इन्हें बट्टे खाते में डाला जाना है। कुल फंसे ऋण मार्च 2018 में 11.8 फीसदी के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गए थे मगर मार्च 2021 में घटकर 7.3 फीसदी पर आ गए। आरबीआई ने कहा कि प्रारंभिक आंकड़ों से पता चलता है कि यह अनुपात सितंबर 2021 तक घटकर 6.9 फीसदी पर आ गया, जो पांच साल का सबसे निचला स्तर है।
बैंकों द्वारा पिछले पांच साल में बट्टे खाते में डाली गई धनराशि 31 मार्च 2021 को उनकी परिसंपत्तियों करीब 195 लाख करोड़ रुपये की 5 फीसदी से कम थी। वित्त वर्ष 2020-21 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों ने 2.08 लाख करोड़ रुपये के ऋण बट्टे खाते में डाले, जिनमें सरकारी बैंकों की हिस्सा 1.34 लाख करोड़ रुपये था। वहीं बैंकों द्वारा वसूल की गई राशि महज 64,228 करोड़ रुपये थी, जो वसूली के लिए विभिन्न चैनलों को संदर्भित राशि की 14.1 फीसदी थी। वित्त वर्ष 2021 में वसूली का प्रतिशत पिछले चार साल में सबसे कम है।
आईबीसी के तहत वसूली वित्त वर्ष 2021 में 2.73 लाख करोड़ रुपये थी, जो इस योजना में सदंर्भित राशि की 20.2 फीसदी थी। यह दिवालिया संहिता शुरू होने के बाद किसी वर्ष में सबसे कम वसूली थी। पहले तीन पूर्ण वित्त वर्षों में आईबीसी के तहत वसूली का प्रतिशत 45 फीसदी से अधिक था। सुस्त वसूली का प्रमुख कारण यह है कि सरकार ने कोविड-19 महामारी की वजह से 25 मार्च 2020 से 24 मार्च 2021 तक एक साल के लिए आईबीसी के कुछ प्रावधान स्थगित कर दिए। देश में 25 मार्च, 2020 से राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगा था। इस स्थगन अवधि में आईबीसी के तहत नई प्रक्रियाओं को मंजूरी नहीं दी गई।
आरबीआई की पिछले सप्ताह जारी रुझान एवं प्रगति रिपोर्ट में कहा गया, 'हालांकि ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के तहत नई दिवालिया प्रक्रियाओं की शुरुआत को मार्च 2021 तक एक साल के लिए स्थगित कर दिया गया और और कोविड से संबंधित कर्ज को डिफॉल्ट की परिभाषा से बाहर निकाल दिया गया, लेकिन उसने वसूली की राशि के लिहाज से वसूली का एक प्रमुख तरीका बनाया है।' रिपोर्ट में कहा गया, 'एमएसएमई के लिए प्री-पैक समाधान खिड़की को मंजूरी से एनसीएलटी के लिए लंबित मामलों का दबाव कम होगा, बकाया राशि पर छूट में कमी आएगी और घटती वसूली दर में सुधार आएगा।'
पिछले पांच साल के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने 7.07 लाख करोड़ रुपये के ऋण बट्टे खाते में डाले हैं। यह सरकार की तरफ से इन बैंकों में पिछले सात साल में झोंकी गई पूंजी से दोगुनेे हैं। सरकार वर्ष 2014 से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 3.43 लाख करोड़ रुपये की धनराशि झोंक चुकी है।
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