रोजगार सृजन की चुनौती से जूझ रहा भारत | श्रम-रोजगार | | महेश व्यास / January 06, 2022 | | | | |
दिसंबर 2021 में बेरोजगारी दर बढ़कर 9.7 प्रतिशत हो गई। नवंबर में यह दर 7 प्रतिशत रही थी। एक वर्ष पहले दिसंबर 2020 में बेरोजगारी दर 9.1 प्रतिशत के ऊंचे स्तर पर थी। विगत कुछ दिनों की तुलना में भारत में इस समय बेरोजगारी दर ऊंचे स्तर पर है। वर्ष 2018-19 में यह दर 6.3 प्रतिशत रही थी जबकि 2017-18 में यह 4.7 प्रतिशत दर्ज की गई थी। अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर इन तीनों महीनों में प्रत्येक में बेरोजगारी दर 7 प्रतिशत या इससे अधिक रही है। दिसंबर 2021 में समाप्त तिमाही में बेरोजगारी दर 7.6 प्रतिशत थी। इससे पहले सितंबर 2021 तिमाही में यह दर 7.3 प्रतिशत रही थी। देश में इस समय बेरोजगारी दर 7 प्रतिशत से अधिक है और महंगाई दर भी सहज स्तर यानी 4 प्रतिशत से अधिक (5 प्रतिशत) हो गई है। ये दोनों परिस्थितियां भारत के लिए एक के बाद एक चुनौती पेश कर रही हैं। निकट भविष्य में महंगाई में इजाफा होने का अंदेशा है, वहीं इस बात का भी कोई संकेत नहीं है कि बेरोजगारी दर में बहुत कमी आ सकेगी। इस वजह से मौजूदा स्थिति की तुलना में आने वाला समय आर्थिक परिदृश्य के लिहाज से और बदतर लगता है।
दो और स्थितियां बनती दिख रही हैं। पहली बात तो भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा नीतिगत दरें नहीं बढ़ाने के बावजूद दरें बढ़ रही हैं। बैंकों की उधारी दर तो कमोबेश स्थिर लग रही है मगर बाजार दरें बढ़ रही हैं। आधार दर और एमसीएलआर (बैंकों की उधारी दरें परिलक्षित करने वाली दरें) सभी लगभग स्थिर हैं या हाल के दिनों में कम हो रही हैं। मगर विभिन्न परिपक्वता अवधि वाले 'एएए' रेटिंग वाले कॉर्पोरेट बॉन्ड पर प्रतिफल बढ़ रहे हैं। इस बात की गुंजाइश कम ही है कि बैंक अब लंबे समय तक मौजूदा ब्याज दर बरकरार रख पाएंगे। दिसंबर मध्य में एसबीआई ने पिछले दो वर्षों में पहली बार आधार दर बढ़ा दी थी। दूसरी बात यह है कि 2021 में अधिकांश समय डॉलर की तुलना में रुपये में गिरावट देखी गई। दिसंबर 2021 तक डॉलर की तुलना में रुपया 75.5 प्रतिशत के स्तर तक पहुंच चुका था। जनवरी 2021 से यह 3 प्रतिशत लुढ़क चुका था।
घरेलू उपभोक्ताओं के स्तर पर मांग में कमी और क्षमता का इस्तेमाल कम रहने से भारत में निवेश पर प्रतिकूल असर हुआ है। अब ब्याज दरों में तेजी और रुपये के मूल्य में ह्रास हालात और कठिन बना सकते हैं। नए उद्यमों में निवेश में तेजी आने तक रोजगार में वृद्धि कमतर रहेगी। ढांचागत क्षेत्र में नए निवेश निर्माण खंड में रोजगार सृजन में मदद कर सकती है मगर यह मध्यम वर्ग के वेतनभोगी लोगों के लिए पर्याप्त रोजगार नहीं ला पाएगा। कोविड-19 महामारी से उत्पन्न हालात के बाद अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई थी। अब 18 महीने बीतने के बाद भी उपलब्ध रोजगार इस महामारी से पूर्व के स्तरों तक नहीं पहुंच पाए हैं। 2019-20 में भारत में 40.89 करोड़ लोग रोजगार में थे। मगर उस समय से देश में कुछ ही समय के लिए 40.6 करोड़ लोग रोजगार से जुड़े रहे हैं। भारत में कार्य करने लायक आबादी बढ़ी है मगर कोविड-19 महामारी के बाद यहां रोजगार के अवसर कम हुए हैं। यह एक मात्र त्रासदी नहीं है। हालात में सुधार तो जरूर हुए हैं मगर इससे रोजगार की संरचना ही बिगड़ गई है। 2019-20 में वेतनभोगी कर्मचाारियों की संख्या रोजगार में लगे कुल लोगों की संख्या की 21.2 प्रतिशत थी। दिसंबर 2021 में इनकी हिस्सेदारी केवल 19 प्रतिशत थी।
दिसंबर 2021 में रोजगार में लगे लोगों की संख्या 40.6 करोड़ थी। यह 2019-20 की संख्या से 29 लाख कम थी। रोजगार में कमी का कुछ खास खंडों पर अधिक असर देखा गया। सबसे अधिक कमी वेतनभोगी कर्मचारियों की संख्या में आई थी। इस खंड में 95 लाख नौकरियां गई थीं। उद्यमियों के खंड में 10 लाख नौकरियां चली गईं। इन 1.05 करोड़ रोजगारों की कमी की भरपाई दैनिक मजदूरी करने वाले श्रमिकों और कृषि क्षेत्रों में बढ़े रोजगारों से तो गई मगर गुणवत्ता प्रभावित हो गई।
विभिन्न उद्योगों में दिसंबर 2021 और 2019-20 के बीच रोजगार में अंतर दर्शाता है कि विनिर्माण क्षेत्र में 98 लाख नौकरियां गई हैं। मगर निर्माण क्षेत्र में नौकरियां 38 लाख और कृषि क्षेत्र में रोजगार 74 लाख बढ़ गए। सेवा क्षेत्र में 18 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं। सेवा उद्योगों में होटल एवं पर्यटन में 50 लाख नौकरियां गईं और शिक्षा क्षेत्र में 40 लाख रोजगार छिन गए मगर खुदरा कारोबार में 78 लाख रोजगार सृृजित हुए। वैसे तो सभी नौकरियां अपने आप में खास होती हैं मगर यह कहा जा सकता है कि विनिर्माण क्षेत्र की नौकरियां निर्माण एवं कृषि क्षेत्रों में रोजगारों की तुलना में अधिक गुणवत्तापूर्ण होती हैं। सेवा क्षेत्र में होटल पर्यटन या शिक्षा में रोजगार खुदरा कारोबार की तुलना में बेहतर गुणवत्ता वाले होते हैं। खुदरा कारोबार में लोग ज्यादातर डिलिवरी एजेंट के रूप में काम करते हैं। भारत तभी बेहतर गुणवत्ता वाले रोजगार सृजित कर पाएगा जब रोजगार सीधे सरकार या बड़ी निजी कंपनियों की तरफ से आएंगे।
बढ़ती महंगाई, ब्याज दरों में तेजी और रुपये में कमजोरी के साथ उपभोक्ताओं की तरफ से मांग में कमी बड़ी कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित करने की राह में सबसे बड़ी बाधा हैं। बड़ी कंपनियां निवेश नहीं करेंगी तो रोजगार की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी। वेतनभोगी नौकरियों में लगातार कमी चिंता का विषय है। ऐसी नौकरियां सितंबर और अक्टूबर 2021 में बढ़कर 8.4 करोड़ हो गई थीं मगर तब से नवंबर और दिसंबर में कम होकर 7.7 करोड़ रह गईं। दिसंबर 2021 में भारत में 39 लाख नए रोजगार सृजित हुए मगर वेतनभोगी नौकरियों में कोई इजाफा नहीं हुआ। इनमें गिरावट थामना और कुल रोजगार में इनकी हिस्सेदारी बढ़ाना जरूरी है। केवल रोजागर में मामूली बढ़ोतरी से काम नहीं चलेगा।
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