कोविड की गोली मोलनुपिराविर इस हफ्ते खुदरा स्टोरों पर मिलनी शुरू हो जाएगी। कंपनियों ने देश के विभिन्न हिस्सों में दवा भेजनी शुरू कर दी है। इस बीच, कई कंपनियों के बीच कीमत को लेकर युद्ध छिड़ा हुआ है जो मर्क की ऐंटीवायरल दवा लॉन्च कर रहे हैं। मैनकाइंड फार्मा ने कहा कि वह अपने मोलनुपिराविर ब्रांड के मोलुलाइफ की कीमत 35 रुपये प्रति गोली या पूरे कोर्स के लिए 1,400 रुपये में पेश करेगी। बाजार में सबसे किफायती ब्रांड, हैदराबाद की दवा कंपनी डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज (डीआरएल) ने मंगलवार को इसी कीमत पर डीआरएल के मोलफ्लू की पेशकश की जिसकी कीमत 40 गोलियों के फुल कोर्स के लिए 1,400 रुपये होगी। मैनकाइंड फार्मा के अध्यक्ष आर सी जुनेजा ने कहा कि कुछ दवाओं को किफायती रखना महत्त्वपूर्ण था, न कि मुनाफा कमाना। जुनेजा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, 'हर कोई कोविड से संक्रमित हो सकता है चाहे वह गरीब ही क्यों न हो। हम चाहते थे कि हमारी दवा सस्ती हो ताकि हर कोई इसका इस्तेमाल कर सके। इसकी वजह से अस्पताल में भर्ती होने की संभावना कम हो जाती है। ऐसे में जरूरतमंदों के लिए अस्पताल में भर्ती करने के खर्च का बोझ कम हो जाता है।' उन्होंने कहा कि मोलुलाइफ को पहले दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में भेजा जाएगा जहां संक्रमण के मामले अधिक हैं। इसके बाद इसका वितरण छोटे केंद्रों में होगा। मरीजों को पांच दिनों तक एक दिन में आठ गोलियां लेने की आवश्यकता होती है। डीआरएल के एक प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी मोलफ्लू ब्रांड के तहत 'सबसे कम कीमत वाली मोलनुपिराविर' गोली 200 एमजी की पेशकश करेगी। डीआरएल ने मंगलवार को कहा, 'डॉ रेड्डीज के मोलफ्लू की एक गोली की कीमत 35 रुपये होगी और एक पत्ते में इसकी 10 गोलियां मिलेगी। पांच दिनों में 40 गोलियों के फुल कोर्स की कीमत 1,400 रुपये होगी जो मरीजों के लिए उपलब्ध सबसे किफायती इलाज विकल्पों में से एक है।' देश की सबसे बड़ी दवा निर्माता कंपनी, सन फार्मा ने अपने ब्रांड मोलक्सविर 38 रुपये प्रति गोली के हिसाब से पेश की है जिससे मरीजों के लिए इलाज की कुल लागत 1,520 रुपये हो गई है। सन फार्मा के प्रवक्ता ने कहा, 'हम पूरे भारत में डॉक्टरों और मरीजों को मोलक्सविर की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए टोल फ्री हेल्पलाइन शुरू कर रहे हैं।' पुणे का एमक्योर ग्रुप लिजुविरा नाम से मोलनुपिराविर गोली की पेशकश कर रहा है जिसकी मार्केटिंग इसकी सहयोगी कंपनी जुवेंटस फार्मा करेगी। इलाज के पूरे कोर्स के लिए लिजुविरा की कीमत 1,750 रुपये होगी। सिप्ला ने अपने ब्रांड सिपमोलनु की कीमत 2,000 रुपये प्रति कोर्स है। वहीं हैदराबाद की कंपनी हेटेरो ने पहले ही 40 गोलियों के कोर्स के लिए 2,490 रुपये में अपने ब्रांड मोवफॉर की पेशकश की है। स्टॉकिस्ट सूत्रों ने दावा किया कि अरबिंदो ने अपने-अपने ब्रांड मोलनुपिराविर के पूरे कोर्स की कीमत 2,000 रुपये तय की है। हालांकि मोलफ्लू जैसे कुछ ब्रांड दवा की दुकानों में अगले सप्ताह के शुरू में उपलब्ध हो जाएंगे। स्टॉकिस्टों का कहना है कि उन्हें कई ब्रांडों के माल मिलने शुरू हो गए हैं। देश में साढ़े छह लाख से अधिक खुदरा दवा विक्रेताओं के संगठन, ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स ऐंड ड्रगिस्ट्स (एआईओसीडी) के महासचिव राजीव सिंघल ने कहा, 'लागत और माल ढुलाई एजेंटों के स्तर पर पिछले कुछ दिनों में माल आए हैं। कई सौ पैकेट जिलों में भेजे गए हैं। उदाहरण के तौर पर मध्य प्रदेश के 56 जिलों में से लगभग 40 को अगले कुछ दिनों में मोलनुपिराविर का स्टॉक मिलेगा।' सिंघल ने कहा कि देश के करीब 600 जिलों में एक हफ्ते के भीतर स्टॉक मिलेगा। मुंबई की एक दवा कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 1,500 रुपये से कम कीमत वाले किसी भी ब्रांड में मार्जिन कम हो सकता है लेकिन तीसरी लहर के दौरान ज्यादा मात्रा की वजह से इसकी ज्यादा भरपाई होने की उम्मीद है। विश्लेषकों का मानना है कि तीसरी लहर के कम होने के बाद कीमतें और कम हो जाएंगी। एडलवाइस के विश्लेषक कुणाल रंधेरिया ने कहा, 'फेविपिराविर अब इलाज का मानक नहीं है। मोलनुपिराविर की कीमतें तुरंत 2,000 रुपये से कम नहीं होंगी क्योंकि मांग अधिक है। एक बार मांग घटने के बाद कीमत युद्ध होगा। मेरे विचार में इसे अब इस स्तर पर रहना चाहिए। जाहिर है सरकारी खरीद कम दरों पर होगी। मांग बढऩे पर कंपनियां इस गोली का उत्पादन बढ़ाने के लिए तैयार हैं। जुनेजा ने कहा कि वे ब्रांड अनुबंध को तैयार करने में जुटे हैं लेकिन अधिक मांग होने पर भी इसकी पूर्ति करने की पूरी तैयारी है।' 13 भारतीय कंपनियों को उच्च जोखिम वाली श्रेणी में कोविड-संक्रमित वयस्कों के लिए आपातकालीन स्थिति में सीमित इस्तेमाल के लिए मर्क और रिजबैक द्वारा तैयार ऐंटीवायरल दवा मोलनुपिराविर के निर्माण और उसकी मार्केटिंग के लिए 28 दिसंबर को दवा नियामक से मंजूरी मिल गई। मोलनुपिराविर के लिए मंजूरी मिलना अहम है क्योंकि यह कोविड के लिए किफायती दवा बन सकता है। यह दवा राइबोन्यूक्लिक एसिड पॉलिमरेज नामक वायरस के हिस्से को लक्षित करती है जो ओमीक्रोन स्वरूप में म्यूटेशन के बाद भी ज्यादा नहीं बदला है। दवा सार्स-कोव-2 वायरस की प्रतिकृति को रोकता है और इसे पहले से ही 4 नवंबर को ब्रिटेन एमएचआरए और 23 दिसंबर को अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा मंजूरी मिल गई है और इसकी सिफारिश वयस्क मरीजों के लिए की जाती है जिनमें गंभीर बीमारी के लिए कम से कम एक जोखिम कारक जुड़ा है। इस साल की शुरुआत में, डॉ रेड्डीज ने मर्क के साथ मोलनुपिराविर तैयार करने तथा भारत और 100 से अधिक कम और मध्यम आमदनी वाले देशों (एलएमआईसी) को आपूर्ति करने के लिए एक गैर-एक्सक्लूसिव स्वैच्छिक लाइसेंसिंग समझौता किया था। भारतीय दवा उद्योग में इस विशेष सहयोग के लिए टॉरेंट फार्मास्यूटिकल्स, एमक्योर फार्मास्यूटिकल्स, सन फार्मा और सिप्ला जैसी फार्मा कंपनियों के डॉ रेड्डीज के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम ने भारत में तीसरे चरण के क्लीनिकल परीक्षण को संयुक्त रूप से प्रायोजित, पर्यवेक्षण और निगरानी करने में सहयोग किया और एसईसी के सामने इन नतीजों को पेश किया। मार्च से अप्रैल के बीच इन पांच कंपनियों ने मोलनुपिराविर के निर्माण और आपूर्ति के लिए मर्क शार्प डॉमे (एमएसडी) के साथ निजी रूप से गैर-एक्सक्लूसिव स्वैच्छिक लाइसेंसिंग समझौते किए।
