मणिपुर में अफस्पा कानून भाजपा के लिए बढ़ा रहा चुनौती | सियासी हलचल | | आदिति फडणीस / January 03, 2022 | | | | |
पूर्वोत्तर में हाल में हुए घटनाक्रम का मणिपुर विधानसभा चुनाव के नतीजों पर असर हो सकता है। मणिपुर में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) किसी भी दिन राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) निरस्त करने की मांग कर सकती है। भाजपा 2017 में कांग्रेस से टूटकर आए लोगों और नैशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के समर्थन से सरकार बनाने में सफल रही थी। इससे पहले राज्य की सत्ता पर पिछले 15 वर्षों से कांग्रेस काबिज थी। मणिपुर में 2004 में कांग्रेस के शासनकाल के दौरान राज्य में राज्य के सात विधानसभा क्षेत्रों से अफस्पा वापस ले लिया गया था। मणिपुर सरकार ने 1 दिसंबर, 2019 को इम्फाल नगर क्षेत्र को छोड़कर पूरे राज्य को अगले एक वर्ष के लिए 'अशांत क्षेत्र' घोषित कर दिया।
'अशांत क्षेत्र' घोषित किए जाने के बाद अफस्पा लागू करने की शर्त पूरी हो जाती है। पिछले वर्ष फरवरी में एन बीरेन सिंह के नेतृत्व में भाजपा सरकार नेे कहा था कि वह केंद्र सरकार से नागरिकों की स्वतंत्रता को खतरे में डालने वाले इस कानून को स्थायी तौर पर समाप्त करने की मांग करेगी। उन्होंने तब दावा किया था कि राज्य में शांति व्यवस्था कायम है और स्थिति नियंत्रण में है। नगालैंड के मोन जिले में 4 दिसंबर को हुई घटना के बाद अब उन पर अफस्पा निरस्त कराने के लिए दबाव बढ़ गया है। नगालैंड में हुई घटना में 14 लोगों की जान चली गई थी। थल सेना ने कोयला खदानों में काम करने वाले लोगों को उग्रवादी समझ कर उन पर गोलियां बरसा दी थीं। सेना ने माना कि उससे गलती हुई है मगर तब से पूरे पूर्वोत्तर भारत में रोष है।
मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं इसलिए अफस्पा और इसे समाप्त करने की मांग वहां एक अहम मुद्दा बन गई है। कांग्रेस पहले ही कह चुकी है कि अगर वह 2022 में सत्ता में आती है तो राज्य मंत्रिमंडल की पहली बैठक में पूरे राज्य से तत्काल अफस्पा हटाए जाने पर निर्णय लेगी। इस पहाड़ी राज्य में भले ही कांग्रेस की हालत ठीक नहीं लग रही है मगर यह मुद्दा काफी गरम हो गया है। भाजपा के लिए सिरदर्दी बढ़ाने वाली बात यह है कि इसकी सबसे अहम सहयोगी एनपीपी ने भी कह दिया है कि वह मणिपुर में चुनाव प्रचार के दौरान अफस्पा खत्म करने की मांग उठाएगी। पड़ोसी राज्य मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा एनपीपी के अध्यक्ष हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अफस्पा हटाए जाने के संबंध में कुछ नहीं कहा है मगर उन्होंने राज्य में चुनाव प्रचार अभियान जरूर तेज कर दिया है। भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डïा अक्टूबर से अब तक तीन बार मणिपुर का दौरा कर चुके हैं जबकि गृह मंत्री अमित शाह ने भी एक बार राज्य का दौरा किया है। भाजपा के लिए चिंता का विषय यह है कि मणिपुर में बीरेन सिंह सरकार की सभी उपलब्धियों पर विवादास्पद अफस्पा भारी पड़ रहा है।
सुशासन सूचकांक (गुड गवर्नेंस इंडेक्स) के आंकड़ों के अनुसार विभिन्न मानकों पर 2019 की तुलना में मणिपुर का प्रदर्शन 2020-21 में सुधरा है। राज्य में कृषि एवं सहायक क्षेत्रों का प्रदर्शन सालाना चक्रवृद्धि दर पर 0.3 प्रतिशत से बढ़कर 4.5 प्रतिशत हो गया है। फल एवं सब्जियों का उत्पादन पूर्वोत्तर भारत में कम हो रहा है मगर मणिपुर इसका अपवाद रहा है। राज्य में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर चिकित्सकों की उपलब्धता अब अधिक हो गई है। चिकित्सकों की उपलब्धता 2019 में दर्ज 81.5 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 में 182.9 प्रतिशत हो गई है। पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों की तुलना में स्थानीय कर राजस्व और कुल कर राजस्व अनुपात के मामले में मणिपुर सर्वाधिक इजाफा दर्ज करने वाला राज्य रहा है। यह अनुपात 2019 में 5.5 प्रतिशत था जो 2020-21 में बढ़कर 10.88 प्रतिशत हो गया।
राज्य में भाजपा का राजनीतिक वर्चस्व कांग्रेस के पतन के बाद स्थापित हुआ है। कांग्रेस 2017 में राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 28 सीट के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी मगर भाजपा एनपीपी सहित कुछ अन्य दलों के साथ सरकार बनाने में बाजी मार ले गई थी। उस चुनाव के बाद कांग्रेस से लोगों का निकलना जारी रहा। पिछले साल अगस्त में राज्य में पार्टी प्रमुख एवं पूर्व मंत्री गोविनदास कोंथूजम कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आ गए। कोंथूजम बिष्णुपुर से छह बार कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं।
भाजपा और उसके सहयोगी दलों के बीच भी सब कुछ ठीक नहीं है। राज्य सरकार में एनपीपी के चार मंत्री शामिल किए गए थे मगर उनमें दो हटाए जा चुके हैं। संगमा युवा होने के साथ ही महत्त्वाकांक्षी हैं और उन्हें पूर्वोत्तर भारत का एक उभरता सियासी चेहरा माना जा रहा है। उनकी पार्टी गैर-कांग्रेसी नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस की एक प्रमुख घटक है। भाजपा ने 2016 में असम विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद इस राजनीतिक मंच का गठन किया था। एनपीपी कह चुकी है कि वह मणिपुर के आगामी विधानसभा चुनाव में 60 में 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। अगर भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला कांटे का रहा तो वह राज्य में सरकार बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। मणिपुर के चुनाव से यह पता चलेगा कि भाजपा ने राज्य में अपनी राजनीतिक पैठ कितनी बढ़ाई है। इस चुनाव में एनपीपी जैसे क्षेत्रीय दलों की ताकत का भी अंदाजा मिलेगा।
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