देश भर में ओमीक्रोन के मामलों में तेजी आने की वजह से देश के अस्पतालों के बेड तेजी से बढ़ाए जा रहे हैं। ऐसे में विभिन्न राज्य और केंद्र सभी तरह का बैकअप विकल्प तैयार रख रहे हैं जिनमें अधिक आयुष केंद्रों को तैयार करना और रेलवे कोविड-केयर कोचों को तैयार रखना शामिल है जिसके बारे में काफी चर्चा हुई है जिनमें मध्यम, हल्के लक्षण वाले मरीजों का इलाज करना शामिल है। मुख्यधारा के अस्पताल पहले से ही सक्रिय हैं और अब अस्पताल अपने कोविड-19 वार्ड भी बढ़ा रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले हफ्ते कहा था कि भारत में देश भर में 18 लाख आईसोलेशन बेड उपलब्ध हैं जिनमें से लगभग 5 लाख बेड ऑक्सीजन वाले हैं। इसने निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को हर परिस्थिति के लिए 'तैयार' रहने को कहा है कि दवाओं, ऑक्सीजन आपूर्ति और बेड का ऑडिट शुरू करने को कहा है। जानकारी रखने वाले लोगों के मुताबिक अगर मामलों की संख्या में और वृद्धि होती है तब रेल मंत्रालय अनुसार 5,601 कोविड केयर कोच और करीब 89,500 बेड विकल्प के तौर पर रख़ा जाएगा। पिछले सात दिनों में बेड भरने की दर में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी हुई है और कई राज्यों में आयुष क्लीनिकों का विकल्प भी खुला रखा गया है ताकि सुरक्षा के तौर पर दूसरा विकल्प रखा जा सके। जनवरी और फरवरी में संक्रमण के मामलों में संभावित तेजी की आशंका की वजह से तमिलनाडु में पहले से ही 80 कोविड-विशिष्ट सिद्ध सेंटर तैयार किए जा चुके हैं। ये सेंटर दूसरी लहर के दौरान चालू थे और बाद में बंद हो गए क्योंकि राज्य ने कम मामलों की रिपोर्टिंग शुरू कर दी। उत्तर प्रदेश और मणिपुर में जहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इन राज्यों में पिछले 10 दिनों में आयुष अस्पतालों के उद्घाटन का सिलसिला देखा गया। उत्तर प्रदेश में 8 आयुष अस्पताल का उद्घाटन किया गया है जहां 50 बेड हैं वहीं मणिपुर में 15 आयुष डिस्पेंसरी और 7 आयुष हॉस्पिटल का उद्घाटन किया गया जिसमें 10 बेड हैं, इस तरह आपातकालीन स्थिति के लिए इन्हें खुला रखा गया है। जयपुर में नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद के निदेशक संजीव शर्मा ने कहा, 'मेरा मानना है कि आयुष को बैकअप के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि कम लक्षण वाले मरीजों के इलाज के लिए एक मुख्य विकल्प के रूप में देखा जाना चाहिए। हमने पहली और दूसरी लहर के दौरान नतीजे देखे थे।' शर्मा के संस्थान में पहले से ही कोविड मरीजों के लिए समर्पित 150 बेड हैं। वर्तमान में, भारत में लगभग 3,986 आयुष अस्पताल और 27,199 डिस्पेंसरी हैं। इस साल जुलाई के अंत तक देश में लगभग 1,206 नामित कोविड उपचार केंद्र थे जिनको अयूर रक्षा क्लीनिक कहा जाता था। अस्पताल मानते हैं कि मरीज के भर्ती होने में तेजी का रुझान है लेकिन उनका कहना है कि इसमें अभी तक घबराने की जरूरत नहीं है। मणिपाल हॉस्पिटल्स ने पिछले दस दिनों में अपने नेटवर्क में कोविड मरीजों की भर्ती की दर में 5 प्रतिशत तक की तेजी देखी है। देश के दूसरे सबसे बड़े हॉस्पिटल चेन मणिपाल हॉस्पिटल्स के एमडी और सीईओ दिलीप जोस ने कहा, 'पिछले कुछ महीनों में कोविड बेड की भर्ती की दर, नेटवर्क के 7600 बेड में 2 प्रतिशत की दर पर स्थिर था। दूसरी लहर के दौरान हमारे पास लगातार कोविड के लिए 90-95 फीसदी तक की बुकिंग थी।' मुंबई का हिंदुजा अस्पताल जरूरत पडऩे पर 90-100 कोविड बेड का इंतजाम कर सकता है। अस्पताल के मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) जॉय चक्रवर्ती ने बताया कि उन्होंने दूसरी लहर के बाद कोविड वार्ड को गैर कोविड वार्ड में नहीं बदला था और लोगों की भर्ती भी जारी रखी थी। हिंदुजा ने अस्थायी स्टाफ की भर्ती नहीं की थी बल्कि अपने कोविड स्टाफ को अपने वेतनमान पर रखा है। मुंबई के अस्पतालों का कहना है कि नागरिक निकाय ने उन्हें बेड की क्षमता को बढ़ाने के लिए कहा है जैसा कि उन्होंने दूसरी लहर के दौरान भी किया था। मुंबई के ग्लोबल हॉस्पिटल्स परिचालन प्रमुख अनूप लॉरेंस ने कहा कि मरीजों को भर्ती करते समय अस्पतालों को विवेकपूर्ण होने की जरूरत है। लॉरेंस ने कहा, 'ज्यादातर मरीजों के लक्षण हल्के हैं और इनका इलाज घर पर आसानी से हो सकता है। हमने अपने प्रत्यारोपण के मरीजों को भर्ती किया है क्योंकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता पहले से ही कम हो चुकी है।' उद्योग का मानना है कि छोटे नर्सिंग होम खुद को बेहतर तरीके से लैस कर चुके हैं ताकि मरीजों का इलाज कराया जा सके। दूसरी लहर के दौरान 1200-1300 कोविड मरीजों को भर्ती करने की क्षमता रखने वाले हैदराबाद के यशोदा अस्पतालों के चिकित्सा निदेशक लिंगैया अमियाला ने कहा कि छोटे नर्सिंग होम और अस्पताल अब कोविड रोगियों के इलाज के लिए आश्वस्त हैं क्योंकि इलाज प्रबंधन के नियमों पर अब अच्छी तरह काम किया जा चुका है। उन्होंने कहा, 'हम केवल वैसे मरीजों की भर्ती कर रहे हैं जो गंभीर हैं। हल्के से मध्यम लक्षण वाले रोगियों का इलाज आसानी से घर या छोटे अस्पतालों में किया जा सकता है। अभी तृतीयक स्तर वाले अस्पतालों पर भार नहीं बढ़ा है। डेल्टा स्वरूप की तुलना में ओमीक्रोन का प्रसार कम से कम तीन गुना अधिक होता है। अगर यह संख्या बढ़ती रहती है तब मुख्यधारा के स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे पर बड़ा दबाव पड़ेगा।'
