बिजली की मांग, जलवायु लक्ष्य के बीच बैठाया जाएगा संतुलन | श्रेया जय / नई दिल्ली December 26, 2021 | | | | |
केंद्र सरकार जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी प्रतिबद्घताओं के मद्देनजर नई राष्ट्रीय विद्युत नीति (एनईपी) लाने की तैयारी कर रही है। इस बीच प्रमुख मंत्रालयों का कहना है कि वे बिजली की बढ़ती मांग को टिकाऊ उपायों के साथ संतुलित करेंगे।
एक ओर जहां विद्युत मंत्रालय का विचार है कि बिजली उत्पादन हरित माध्यमों से किया जाना चाहिए वहीं कोयला मंत्रालय का मानना है कि कोयले के उत्पादन में कटौती नहीं की जाएगी क्योंकि काफी बड़ी मांग की पूर्ति करनी है।
नई एनईपी पर परामर्श के लिए बनाई गई एक विशेषज्ञ समिति ने अपने मसौदा रिपोर्ट में कहा है कि नया कोयला आधारित बिजली उत्पादन संयंत्र तब तक नहीं लाया जाना चाहिए जब तक कि उसकी जगह पुरानी इकाई को न हटा दिया जाए या फिर गैर-जीवाश्म स्रोतों से मांग को पूरा नहीं किया जा सके। पहली एनईपी 2005 में लाई गई थी।
वरिष्ठ अधिकारियों से बात करने पर उन्होंने कहा कि सिफारिशों को मांग अनुमानों और ईंधन अनुकूलन के साथ समग्र तौर पर देखा जाएगा।
विद्युत मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'विद्युत मंत्रालय विशेषज्ञ समिति की ओर से जमा कराए गए मसौदे पर विचार कर रहा है और जब परामर्श के लिए आधिकारिक मसौदा जारी किया जाएगा तब उसे उपयुक्त बदलाव के साथ लाया जाएगा।'
अधिकारियों ने कहा कि विशेषज्ञ समिति ने राज्य सरकारों, बिजली उत्पादकों, वितरण कंपनियों और ऋणदाताओं से परामर्श किया है। वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि कोयले के इस्तेमाल को पूरी तरह से बंद करने के संबंध में भारत के पास बिजली उत्पादन और मांग को पूरा करने की योजना पर विचार करने के लिए कई विकल्प मौजूद हैं। अधिकारी ने कहा, 'फिलहाल जहां मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त क्षमता है वहीं भविष्य की योजना बनाते समय हम सीओपी26 में तय किए गए लक्ष्यों को पूरा करने के प्रति प्रतिबद्घ रहेंगे।'
कोयला मंत्रालय का विचार है कि यदि यह निर्णय लिया जाता है कि देश को नए विद्युत संयंत्र की आवश्यकता नहीं है तब भी वह देश में कोयला उत्पादन को प्रभावित नहीं करेगा। मंत्रालय ने पिछले कुछ वर्षों में सरकारी कंपनी कोल इंडिया (सीआईएल) और निजी कंपनियों को प्रोत्साहित कर घरेलू कोयला उत्पादन को बढ़ाया है।
कोयला मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'ताप इकाइयों की मौजूदा पीएलएफ (परिचालन अनुपात) 55 फीसदी है, यदि इसे 65-75 फीसदी तक बढऩा हो तो इसके लिए कोयले की ही जरूरत पड़ेगी। कोयले का उत्पादन खतरे में नहीं होगा क्योंकि आगामी दशकों में बिजली की मांग बढ़ेगी।'
विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जब तक वाणिज्यिक तौर पर व्यावहारिक ऊर्जा भंडारण समाधानों का विकास नहीं हो जाता और बड़े पैमाने पर इसकी उपलब्धता नहीं हो जाती है तब तक आधार लोड को पूरा करने और संतुलन जरूरतों के लिए कोयला आधारित उत्पादन की आवश्यकता पड़ेगी। हालांकि, इसमें कहा गया है, 'जब तक पुरानी इकाइयों को बदलने की नौबत नहीं आए तब तक वितरण लाइसेंसधारकों को बिजली आपूर्ति करने के लिए नए कोयला आधारित क्षमता का निर्माण नहीं किया जाएगा।'
देश में मौजूदा स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 392 गीगावॉट है जिसमें 202 गीगावॉट के साथ कोयले की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है।
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