सरकार और देश की अग्रणी ऊर्जा कंपनियों ने कहा था कि वे वर्ष 2021 में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कम करते हुए हरित ऊर्जा के अधिक से अधिक इस्तेमाल की दिशा में कदम बढ़ाएंगी। यह वर्ष उस महत्त्वपूर्ण घोषणा के लिए भी जाना जाएगा, जब भारत ने कहा कि अगले 50 वर्षों में देश में कार्बन उत्सर्जन शून्य (संतुलित) हो जाएगा। इस घोषणा के बाद देश के ऊर्जा क्षेत्र की शीर्ष कंपनियों ने हरित ऊर्जा के क्षेत्र में एक दूसरे से प्रतिस्द्र्धा करनी भी शुरू कर दी है। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) ने हरित ऊर्जा परियोजनाओं पर 75,000 करोड़ रुपये निवेश करने की बात कही है तो अदाणी एंटरप्राइजेज 20 अरब डॉलर का दांव लगा रही है। इसी तरह टाटा पावर और जेएसडब्ल्यू एनर्जी ने भी शून्य कार्बन उत्सर्जन योजनाओं की घोषणाएं की है। सरकार के नियंत्रण वाली एक तेल कंपनी ने भी इलेक्ट्रिक वाहन तैयार करने की दिशा में आगे बढऩे की बात कही है। हालांकि सरकार ने जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल धीरे-धीरे कम करने की किसी समय सीमा का उल्लेख तो नहीं किया गया है मगर नीतिगत स्तर पर बदलाव और निजी निवेश हरित ऊर्जा अपनाने की दिशा में आगे बढ़ते हुए नजर आ रहे हैं। हरित ऊर्जा की ओर बढ़ते कदम तेल विपणन कंपनियों की मानें तो आने वाले समय में पेट्रोल पंप दिखने बंद हो जाएंगे। इस क्षेत्र की अग्रणी कंपनियां अब एकीकृत ऊर्जा स्टेशन स्थापित करने की तैयारी में जुट गई हैं। रिलायंस बीपी मोबिलिटी (आरबीएमएल) इसे 'मोबिलिटी स्टेशन' का नाम दे रही है। इन मोबिलिटी स्टेशनों पर पेट्रोल एवं डीजल देने वाली मशीनों के साथ ही इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग सुविधा या बैटरी बदलने की सुविधा भी होगी। सरकार नियंत्रित तेल विपणन कंपनियों इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन ने अगले तीन वर्षों में इलेक्ट्रिक वाहनोंं के 22,000 चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की बात कही है। भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक अरुण कुमार सिंह के अनुसार मौजूदा पेट्रोल पंप एनर्जी स्टेशनों में बदले जाएंगे। इन स्टेशनों पर कम से कम पांच ईंधन- पेट्रोल, डीजल, गैस, एथेनॉल और इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन उपलब्ध होंगे। इस वर्ष ग्लासगो में वैश्विक जलवायु सम्मेलन सीओपी26 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत वर्ष 2070 तक कार्बन का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर देगा। उन्होंने कहा कि तब तक भारत की हरित ऊर्जा उत्पादन क्षमता 500 गीगावॉट पर पहुंच जाएगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि 2040 तक देश में कुल बिजली उत्पादन का कम से कम 50 प्रतिशत हिस्सा गैर-जीवाश्म ईंधन से आएगा। प्रधानमंत्री की इस घोषणा को नीतिगत स्तर पर अमली जामा पहनाया जा रहा है और निजी क्षेत्र पहले ही मैदान में कूद चुका है। देश में बिजली उत्पादन करने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में एक टाटा पावर ने साफ कर दिया है कि वह अब कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों में निवेश नहीं करेगी और भविष्य में केवल अक्षय ऊर्जा एवं संबद्ध योजनाओं में ही भागीदारी करेगी। पर्यावरण पर शोध करने वाले संगठन डब्ल्यूआरआई इंडिया में प्रमुख (सबनैशनल क्लाइमेट एक्शन) चिराग गज्जर कहते हैं, 'भारत में असल चुनौती निजी क्षेत्र से जुड़ी नहीं है। निजी क्षेत्र जीवाश्म ईंधन से स्वयं अपने दम पर हरित ऊर्जा की तरफ बढ़ सकता है। काफी हद तक जिम्मेदारी सरकार की है, जिसे यह दिखाना होगा कि वह इस होड़ में पीछे नहीं है।' विशेषज्ञ मानते हैं कि हरित ऊर्जा अपनाने की दिशा में चुनौती निचले स्तर, खासकर राज्य स्तरीय विभागों एवं उपभोक्ताओं की तरफ से आएगी। बिजली क्षेत्र में वित्तीय रूप से तंगहाल हो चुकी बिजली वितरण कंपनियां बड़े पैमाने पर अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल की राह में प्रमुख बाधा हैं। हरित ऊर्जा एवं इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में राज्यों को नई तकनीकों के इस्तेमाल में पहल करनी होगी और सार्वजनिक परिवहन के जरिये लागत कम करनी होगी। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने भारत पर फरवरी, 2021 में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा कि देश में नई ऊर्जा का खाका तैयार करने का अवसर है। आईईए ने कहा कि भारत में ऊर्जा की दशा-दिशा उन इमारतों एवं कारखानों पर निर्भर हैं जो अभी तैयार नहीं हुए हैं और भविष्य में बनने वाले वाहन एवं उपकरण भी इसमें अहम किरदार निभाएंगे।
