ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) की खाइयों को पाटने के लिए कंपनी मामलों के मंत्रालय ने लेनदेन में टालमटोल करने, गलत तरीके से व्यापार करने और अत्यधिक देरी के खिलाफ सख्त मानदंडों का प्रस्ताव किया है। इसमें लुक-बैक अवधि में बदलाव करने और ट्रिब्यूनल द्वारा प्रस्ताव को मंजूरी देने अथवा अस्वीकार करने के लिए समय-सीमा निर्धारित करने जैसे उपाय शामिल हैं। मंत्रालय ने प्रस्ताव दिया है कि आईबीसी को धारा 31 के तहत किसी समाधान योजना को मंजूरी देने अथवा अस्वीकार करने के लिए एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी को 30 दिनों का समय देना चाहिए। यदि इस अवधि के दौरान किसी समाधान योजना पर फैसला नहीं सुनाया जाता है तो एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी को उसका कारण लिखित में दर्ज करना होगा। सरकार ने इस प्रस्ताव पर 13 जनवरी तक आम लोगों से सुझाव मांगे हैं। केंद्र सरकार का मानना है कि फैसले में देरी होने से कॉरपोरेट लेनदारों के लिए मूल्य में कमी आती है और यह संभावित समाधान आवेदकों को इस प्रक्रिया में भाग लेने से हतोत्साहित करती है। मंत्रालय ने कहा, 'इस प्रकार की देरी हितधारकों के लिए अधिकतम मूल्य सुनिश्चित करने संबंधी संहिता के उद्देश्य के खिलाफ है।' दो साल की लुक-बैक अवधि की शुरुआत दिवालिया आवेदन जमा करने की तारीख से शुरू होती है। इसके लिए तिथि को कॉरपोरेट दिवालिया समाधान आवेदन दायर किए जाने की तारीख तक विस्तारित करने का सुझाव दिया गया है। विशेषज्ञों ने कहा कि इस पहल से यह सुनिश्चित होगा कि आईबीसी में निर्धारित समय-सीमा का फायदा कोई नहीं उठा पाएगा। कॉरपोरेट प्रोफेशनल्स के पार्टनर मनोज कुमार ने कहा, 'गलत काम और हेराफेरी के स्पष्ट सबूत होने के बावजूद एनसीएलटी से संपर्क करने में रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल के अधिकारियों को कम कर दिया गया है क्योंकि लुक-बैक अवधि को घटा दिया गया है। सरकार को इसे ठीक करने की आवश्यकता पर ध्यान देना चाहिए।' लुक-बैक अवधि के दौरान रिजॉल्यून प्रोफेशनल एनसीएलटी की अनुमति के बाद गलत लेनदेन अथवा हेराफेरी की जांच कर सकते हैं। मंत्रालय ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि स्वैच्छिक परिसमापन के मामले में एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी से मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं होगी। इसके बजाय ऐसे मामलों को किसी विशेष समाधान अथवा सदस्यों के समाधान और ऋण के दो-तिहाई मूल्य को प्रतिनिधित्व करने वाले लेनदारों के प्रतिनिधियों की मंजूरी के जरिये निपटाया जा सकता है। प्रस्ताव में कहा गया है, 'परिसमापक को प्रक्रिया बंद करने की सार्वजनिक घोषणा करने और भारतीय ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया बोर्ड (आईबीबीआई) और रजिस्ट्रार जैसे संबंधित अधिकारियों को सूचित करने की आवश्यकता हो सकती है।' पीडब्ल्यूसी इंडिया के पार्टनर अंशुल जैन ने कहा, 'स्वैच्छिक परिसमापन के मामलों को एक या दो सुनवाई में निपटाया जा सकता है क्योंकि ऐसे मामले ट्रिब्यूनल की प्राथमिकता में नहीं हैं। स्वैच्छिक परिसमापन के मामलों को मंजूरी देने में कई महीने अथवा कुछ साल लग सकते हैं।' लेनदेन में टालमटोल करने के मामलों को निपटाने के लिए मंत्रालय ने सुझाव दिया है कि स्पष्टता संहिता में एक स्पष्टीकरण को शामिल किया जा सकता है कि समाधान योजना की मंजूरी के बाद भी लेनदेन में टालमटोल अथवा गलत तरीके से खरीद-फरोख्त के लिए कार्यवाही को जारी रखी जा सकती है।
